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अस्तित्व(कविता)







 


*राजेश राज़*



अजीब सी हलचल
पल प्रति पल
होती रही मन में
पता नहीं
क्या मेरी पहचान ?
और क्या है
मैरा निशान ?
क्या पता ?
किस मोड़ पर रह गया
मैं और मेरा अस्तित्व
हर पल तलाश करता
ज़िन्दगी को
दौडने लगा मैरा आज ,
और
लंगडाता रहा
मैरा आने वाला
कल
न जाने क्यूँ
फिर भी
जारी थी तलाश
दर-ब-दर
हर राह भटक मैनें
पा लिया मंजिल को
जब सो गया
चिर निंद्रा में
वहाँ
मैं और मेरा अस्तित्व
स्पष्ट झलक रहा था
मरघट की भूमि में
मैरा
बीता हुआ
कल जल रहा था ।

*राजेश राज़,41, अरविन्द नगर उज्जैन,मो.09907472342



 


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