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अधिकार(लघुकथा)


 

 *डा. चंद्रा सायता*

 

 "आप विगत दो वर्षों से मि. शान्तनु के साथ रह रही हैं।" जज साहब ने कठघड़े में खड़ी अनीता से कहा ।

" जी मिलार्ड ‌"

" दो वर्षों बाद आप मि. शान्तनु पर आरोप लगा रही हैं कि उन्होंने आप के साथ बलात्कार किया है और अपने पक्ष में फैसला चाहती हैं- यह कैसा विरोधाभास है?" 

    अनिता स्थिर भाव तथा दृढ़तापूर्वक अपना बयान दे रही थी ।

   " मिलार्ड।आजकल लिव-इन रिलेशनशिप  किसी भी वैवाहिक संकल्पना से कम नहीं है। शान्तनु का व्यवहार मेरे प्रति अत्यधिक कटु हो चला था। मैंने उससे अलग रहना शुरू कर दिया था।अलग रहते हुए मैंने इन्हें एक पत्र भी लिखा था कि अब मुझसे सम्पर्क करना बेकार है।अब तुम्हारे साथ मेरा रहना नामुमकिन है। पत्र में मैंने अन्य कारणों का भी उल्लेख किया था।" कहते-कहते अनीता ने उस पत्र की फोटोकॉपी जज साहब की ओर ‌बढ़ा दी।

       जज साहब भी सोचने को मजबूर हो गए कि विवाहोपरांन्त तलाक की प्रक्रिया जटिल ही सही, किन्तु है तो, पर लिव-इन रिलेशनशिप में स्त्री-पुरुष के बीच एक अलिखित समझौता होता है। इसमें साथ रहते-रहतेअचानकक किन्हीं कारणों से संबंध- विच्छेद भी परस्पर रजामंदी से हो जाते हैं।

 शान्तनु पहले ही अपने बयान में स्वीकार कर चुका है कि अनीता के साथ उसके संबंध पति-पत्नी के नहीं रह गए थे। किन्तु बलातकार  की धटना पिछले तीन महिनों के दौरान ही हुई थी, जब से अनीता शन्तनु से अलग रहने लगी थी।।

        बलात्कार की पुष्टि तथा शान्तनु के मौन को मद्देनज़र रखते हुए जज साहब ने अनीता के पक्ष में फैसला देते हुए मि. शान्तनु को यथानियम कारावास तथा अर्थदण्ड की सज़ा सुनाई ।

 

 *डा. चंद्रा सायता 19 श्रीनगर कालोनी, मैन,इंदौर452018मो.9329631619

 


 


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