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आधुनिकता के साथ संस्कृति की जड़ों से जुड़े रहने का मंत्र दिया गांधी जी ने 

महात्मा गांधी : शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाएं पर केंद्रित दो दिवसीय संगोष्ठी सम्पन्न 



उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह वाग्देवी भवन में आयोजित किया गया। महात्मा गांधी : शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाएं पर केंद्रित इस संगोष्ठी में दस से अधिक राज्यों के विद्वान और अध्येताओं ने भाग लिया। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं गांधी अध्ययन केंद्र तथा हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, दिल्ली के संयुक्त  तत्वावधान में आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन डॉ मुक्ता, गुरुग्राम, हरियाणा की अध्यक्षता में 22 सितम्बर को वाग्देवी भवन स्थित राष्ट्रभाषा सभागार में हुआ। आयोजन की विशिष्ट अतिथि साहित्यकार डॉ सरिता गुप्ता, नई दिल्ली एवं वरिष्ठ शिक्षाविद एवं लेखक डॉ ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन थे। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने संगोष्ठी की संकल्पना और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। 


विशिष्ट अतिथि डॉ सरिता गुप्ता, नई दिल्ली ने कहा कि महात्मा गांधी ने आधुनिकता के साथ संस्कृति की जड़ों से जुड़े रहने का मंत्र दिया, जो आज अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने बहुत बड़े जन समुदाय को प्रभावित किया था। आजादी की चिंगारी को मशाल बनाने का श्रेय उन्हें जाता है। 


 अध्यक्षीय उद्बोधन में हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला की पूर्व निदेशक डॉ मुक्ता ने कहा कि कस्तूरबा गांधी ने गांधी जी की निर्मित में योगदान दिया था। दोनों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। गांधी जी में गहरी वैचारिक दृढ़ता थी। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना होगा।


विशिष्ट अतिथि डॉ ब्रजकिशोर शर्मा  ने कहा कि गांधीजी मनुष्यता के प्रति आस्था और आशा का भाव लिए हुए हैं। गांधी जी ने स्वस्थ समाज के निर्माण और मनुष्य के समाजीकरण में शिक्षा की विशिष्ट भूमिका को पहचाना था। 
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि गांधी जी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक है। उन्होंने जिस लड़ाई को लड़ा था, वह अहिंसक तो थी, किंतु निष्कर्म और अनाक्रमक जरा भी नहीं थी। उनकी शांति बड़ी ताकत के सामने किसी लाचार की शांति नहीं थी, उसमें सत्य, नीति और धर्म का आधार था।  जितने भी प्राणी है उन्हें अपने ही समान प्रेम करना, इस गहरी आध्यात्मिक दृष्टि पर टिकी है उनकी विश्व दृष्टि। विकास के नए प्रतिमान हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि और पर्यावरणीय सरोकारों को बेदखल कर रहे हैं। सर्वहारा की चिंता और लोकतांत्रिक मूल्यों के सामने चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। नवपूंजीवाद, उदारवाद और उपभोक्तावाद के रहते आज सब कुछ भौतिकता की तराजू पर तोला जा रहा है। यह समस्या जितनी आर्थिक है, उससे अधिक मनोवैज्ञानिक और मूल्यपरक है। ऐसे में गांधी मनुष्य को यंत्र की जगह फिर से मनुष्य होने की राह दिखाते हैं।


हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली द्वारा जारी गतिविधियों का परिचय संस्था अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक ने दिया। 
स्वागत मुख्य समन्वयक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ सुधाकर पाठक, प्रो प्रेमलता चुटैल एवं प्रो गीता नायक, समन्वयक डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ रमेश तिवारी, दिल्ली आदि ने किया। आयोजन में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना का सहयोग था।
प्रारंभ में स्वागत भाषण डॉक्टर गीता नायक ने दिया। संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया एवं आभार प्रदर्शन डॉ प्रेमलता चुटैल ने किया।


समापन दिवस पर तीन तकनीकी सत्रों में प्रस्तुत किए गए बीस से अधिक शोध पत्र
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन दिवस पर तीन तकनीकी सत्र हुए। इन सत्रों में बीस से अधिक शोधकर्ताओं ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए। सत्रों की अध्यक्षता श्रीमती सुरेखा शर्मा, गुरुग्राम, डॉ विजय शर्मा, नई दिल्ली और डॉ मुक्ता, हरियाणा ने की। इन सत्रों में श्रीमती शकुंतला मित्तल, नई दिल्ली, डॉ रमेश तिवारी, नई दिल्ली, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, राजकुमार श्रेष्ठ, दिल्ली, डॉ दीनदयाल बेदिया, श्रीमती मनीषा शर्मा, श्री दीपक विजयरण, नई दिल्ली आदि ने विचार व्यक्त किए। 
विभिन्न शोधपत्रों में महात्मा गांधी के विचार और कार्यों पर विमर्श किया गया। शोध पत्रों में गांधी विचार में स्वावलम्बन, शिक्षा, युवा चेतना, कुटीर उद्योग, स्वच्छता, साहित्य पर प्रभाव आदि की चर्चा की गई। 
विभिन्न सत्रों का संचालन श्री संदीप पांडेय एवं डॉ श्वेता पंड्या ने किया। आभार डॉ अजय शर्मा ने माना। 


महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी को काव्यांजलि अर्पित की गई



काव्यांजलि सत्र में देश के अनेक कवियों द्वारा गांधी जी और कस्तूरबा गांधी को काव्यांजलि अर्पित की गई। काव्यपाठ पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव, श्रीराम दवे, डॉ देवेन्द्र जोशी, डॉ पुष्पा चौरसिया, श्रीमती मनीषा शर्मा, नई दिल्ली, श्रीमती सीमा जोशी,  श्रीमती सुषमा भंडारी, नई दिल्ली, सुश्री सरोज शर्मा, डॉ नीतू पांचाल, दिल्ली, श्री संदीप सृजन, डॉ राजेश रावल सुशील, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा आदि ने किया।


एक ब्रश राष्ट्र के नाम चित्रकला प्रदर्शनी संयोजित की गई 



संगोष्ठी के दौरान सुधी चित्रकार डॉ मुक्ति पाराशर, कोटा के संयोजन में एक ब्रश राष्ट्र के नाम समूह चित्रकला प्रदर्शनी संयोजित की गई। प्रदर्शनी में देश विदेश के कलाकारों की चालीस से अधिक चित्र कृतियों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के अविस्मरणीय पृष्ठों को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी में किशोर से लेकर वरिष्ठ आयु वर्ग के 30 से अधिक कलाकारों के चित्र और शिल्प प्रदर्शित किए गए। 
आयोजन में दस से अधिक राज्यों के विद्वान, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, समाजसेवी, शिक्षाविद् और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।


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