भोपाल। 'साहित्य में ताजी हवा के लिए खिड़की खोलता है पुस्तक पखवाड़ा,पुस्तकों को पाठकों से जोड़ने उनसे पुस्तकों का परिचय करवाने का यह काम बहुत महत्वर्ण है। 'यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक डॉ. अशोक भाटिया के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा आयोजित पुस्तक पख़वाड़े के नवम् दिवस की अध्यक्षता करते हुए अपनी बात बोल रहे थे।
पुस्तक पख़वाड़े के इस आयोजन में वरिष्ठ लघुकथाकर डॉ. बलराम अग्रवाल की आलोचना कृति 'लघुकथा का साहित्य दर्शन' पर विमर्श करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक डॉ. उमेश महादोषी ने इस कृति को लघुकथा विधा के लिए आवश्यक पुस्तक बताया जिसमें लघुकथा सृजन की यात्रा के सभी विविध और आवश्यक पहलुओं को समेटा गया है।
कृति विमर्श के इस आयोजन में वरिष्ठ समीक्षक और आलोचक डॉ. मिथिलेश अवस्थी की कृति 'कहाँ हो नदी माई ' (लघुकथा संग्रह )पर चर्चा करते हुए समीक्षक डॉ. ईश्वर पंवार, पुणे ने इन लघुकथाओं को प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ी पाठक के हृदय में उतर जाने वाली महत्वपूर्ण लघुकथाएं बताया। इसके साथ ही डॉ. मिथिलेश अवस्थी जी की दूसरी कृति 'अवगुंठन' (हायकु संग्रह) पर चर्चा करते हुए समीक्षक डॉ. चंद्रशेखर सिंह रायगढ़ (छत्तीसगढ़) ने संग्रह के हायकुओं को दर्शन, प्रकृति और प्रेम की त्रिवेणी बताते हुए, इसे लघुकथा विधा के पाठकों एवं शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण ग्रन्थ बताया।
इस अवसर पर समीक्षित कृति के लेखक डॉ बलराम अग्रवाल ने समय के अनुसार लघुकथा में नए विषयों के प्रतिपादन की आवश्यकता पर बल देते हुए लघुकथा को कहानी की तरह सुगठित तथा भाव में उपन्यास की तरह विस्तारित लिखने को कहा। डॉ मिथिलेश अवस्थी ने मन की छटपटाहट को अक्षर के रूप में साहित्य सृजन की बात कही। कार्यक्रम में स्वागत उदबोधन घनश्याम मैथिल अमृत ने दिया, तथा कार्यक्रम का सफल संचालन राजश्री शर्मा (खंडवा )ने किया, अंत में केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने उपस्थित जनों का आभार प्रकट किया।
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