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‘बच्चों का देश’ बाल मासिक की रजत-यात्रा का स्वर्णिम दस्तावेज- डॉ. दिलीप धींग


बच्चों का संसार बड़ा प्यारा और न्यारा होता है। जैसा बच्चों का संसार, वैसा ही उनका साहित्य और उनके लिए लिखा गया साहित्य भी दिलचस्प होता है। यदि अच्छे बाल-साहित्य के प्रति ईमानदारी से ध्यान दिया जाए तो यह राष्ट्र निर्माण में बुनियादी भूमिका निभाता है। गंभीर और दार्शनिक साहित्य से हटकर बाल साहित्य बालकों जैसा ही सरल-तरल और उमंग से भरा होना चाहिये। सरल साहित्य लिखना शायद उतना ही कठिन है, जितना सरल होना। बालमन को समझने वाला रचनाकार ही बच्चों के लिए प्रबोधक, प्रेरणादायी और ज्ञानवर्धक लिख सकता है।

लिखने वाले लिख भी दे तो बच्चों तक वह साहित्य पहुँचाए कौन? बाल पत्रिकाएँ यह कार्य कर सकती हैं। मौजूदा डिजिटल दौर में किसी बाल पत्रिका का नियमित प्रकाशन और उत्साहवर्धक प्रसार संख्या के साथ उसका देश-विदेश में प्रतिमाह वितरण चुनौती भरा, किंतु अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है। ऐसा सारस्वत कार्य यदि ढाई दशक से निरंतरता बनाए हुए है तो यह निश्चित ही अभिनंदनीय है। यह शानदार रजत-यात्रा पूरी की है राष्ट्रीय बाल मासिक ‘बच्चों का देश’ ने। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी (अणुविभा), राजसमंद (राजस्थान) से अक्टूबर-2024 में इस बालपत्रिका का बहुरंगी सचित्र रजत जयंती विशेषांक प्रकाशित हुआ है।

किसी बाल पत्रिका की शुरूआत और उसे सफलतापूर्वक निरंतर बनाए रखने में कितने महानुभावों का संकल्प, परिश्रम और आशीर्वाद जुड़ा होता है, इसे जानने के लिए इस विशेषांक में प्रकाशित ‘सफर 25 वर्षों का ..’ पठनीय है। 53वें स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त 1999 को प्रख्यात बालसेवी श्री मोहनलाल जैन (मोहन भाई) ने भागीरथी सेवा संस्थान, जयपुर से इसका शुभारंभ किया था। श्री मोहनभाई के पवित्र संकल्प के साथ उनके परिवार की निष्ठापूर्ण सेवाएं भी इससे जुड़ीं।

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण का मंगल आशीर्वाद भी इसे मिला और मिल रहा है। अपनी गुणवत्ता और उद्देश्यपरकता के कारण यह पत्रिका समाज से भी प्रचुर स्नेह व सहयोग पा रही है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह पत्रिका बच्चों, अभिभावकों और शिक्षक वर्ग द्वारा खूब पसंद की जाती रही है।

बाल पत्रिका होने के बावजूद यह युवाओं और बड़ों को भी उपयोगी पठनीय सामग्री उपलब्ध कराती है। हर परिवार और विद्यालय में ‘बच्चों का देश’ जैसी साफ-सुथरी पत्रिका पहुंचनी चाहिये। अभिभावकों और शिक्षकों को चाहिये कि वे बच्चों को ऐसी पत्रिकाएँ पढ़ने की प्रेरणा दें।

जो बालक-बालिकाएं अच्छी पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों से दोस्ती रखते है, वे अपने जीवन में आत्महत्या और अपराध जैसे गलत कदम उठाने से बच सकते हैं। व्यवस्था के लिए कानून आवश्यक है, परंतु व्यक्ति के सद्गुण और सुसंस्कार ही उसे संकट से बचा सकते हैं। बचपन और किशोरावस्था में सुसंस्कारों के बीजारोपण में ऐसी पत्रिकाएँ प्रभावी भूमिका निभा सकती है। वस्तुतः बच्चों के जीवन-निर्माण और बच्चों के साहित्य-निर्माण के लिए किया गया खर्च, खर्च नहीं, अपितु निवेश होता है।

राष्ट्रीय और मानवीय भावनाओं की संवाहक लोकप्रिय बाल पत्रिका ‘बच्चों का देश’ के इस ढाई सौ पृष्ठीय विशेषांक में सभी वर्गों और क्षेत्रों के लगभग दो सौ रचनाकारों से रूबरू होना सचमुच एक सुखद अहसास है। लेख, कहानी और कविता के अतिरिक्त बालकोपयोगी विविध प्रकार की सामग्री से यह विशेषांक सज्जित और सुरभित है।

संपादक श्री संचय जैन, सहसंपादक श्री प्रकाश तातेड़, अणुविभा के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, महामंत्री श्री भीखम सुराणा और उनकी टीम के अथक श्रम का सुफल है यह सुंदर विशेषांक। ‘बच्चों का देश’ पत्रिका की सफल रजत-यात्रा का स्वर्णिम दस्तावेज है यह संग्रहणीय विशेषांक। यह विशेषांक बाल पत्र-पत्रिकाओं और बाल साहित्य जगत में अपना विशेष स्थान बनाएगा।

डॉ दिलीप धींग
(लेखक अंतरराष्ट्रीय प्राकृत केन्द्र चैन्नई के पूर्व निदेशक है)


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