अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला के छठे दिवस पर न्यायवेत्ताओं ने रखें अपने विचार
उज्जैन। न्यायिक सक्रियता का उद्देश्य न्यायपालिका को सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सशक्त बनाना है। इसके तहत न्यायपालिका उन मुद्दों पर हस्तक्षेप करती है, जहां कार्यपालिका और विधायिका विफल हो जाती हैं। हालांकि, न्यायिक संयम का पालन करना उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि न्यायपालिका अपनी सीमाओं में रहते हुए काम करे और लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखे। यदि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है, तो ऐसी स्थिति में न्यायिक सक्रियता के साथ न्यायिक संयम आवश्यक हो जाता है । यह समन्वय ही न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और संतुलन सुनिश्चित करता है।
उक्त विचार पूर्व प्रमुख लोकायुक्त माननीय न्यायमूर्ति श्री टी पी शर्मा, ने भारतीय ज्ञानपीठ (माधव नगर) में कर्मयोगी स्व. कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा एवं पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल 'सुमन' की स्मृति में आयोजित 22 वीं अ.भा.सद्भावना व्याख्यानमाला के छठवें दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए ।
"न्यायिक सक्रियता व निर्णयों का समाज पर प्रभाव" विषय पर व्यक्त अपने विचारों में माननीय न्यायमूर्ति शर्मा जी, ने कहा कि ईश्वर के बाद न्याय का सबसे पवित्र कार्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जो समाज में सत्य और न्याय की स्थापना का दायित्व निभाता है। एक न्यायाधीश के लिए यह आवश्यक है कि वह पूरी तरह निष्पक्ष, ईमानदार और किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव से मुक्त हो। उसमें सभी के प्रति समानता का भाव हो, जिससे वह पक्षपात रहित निर्णय ले सके। न्यायाधीश की योग्यता, विवेक और कर्मठता ही उसकी पहचान होती है, जो उसे जटिल परिस्थितियों में भी सटीक और न्यायसंगत निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। सत्य और न्याय के प्रति उसकी निष्ठा ही समाज में कानून और विश्वास का आधार बनती है।
न्यायमूर्ति टीपी शर्मा ने कहा कि न्यायिक सक्रियता के माध्यम से न्यायपालिका समाज में जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर हस्तक्षेप करती है, जिससे गहरे और स्थायी प्रभाव उत्पन्न होते हैं। न्यायिक सक्रियता न केवल समाज में जागरूकता बढ़ाती है, बल्कि लोगों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करती है। ऐसे निर्णय न केवल जनहित को प्राथमिकता देते हैं, बल्कि समाज में समता, न्याय और नैतिकता की भावना को भी मजबूत करते हैं।
न्यायमूर्ति टीपी शर्मा ने बताया कि न्याय का समय पर होना अत्यंत आवश्यक है। समय पर न्याय से न केवल पीड़ित को उचित समाधान मिलता है, बल्कि यह समाज में कानून और व्यवस्था पर विश्वास बनाए रखने में भी सहायक होता है। न्यायाधीशों का प्राथमिक दायित्व जनता के अधिकारों की रक्षा और न्याय की स्थापना है। उन्हें आलोचना या बाहरी दबाव की परवाह किए बिना निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व न्यायधीश, उच्च न्यायालय, भोपाल माननीय न्यायमूर्ति आलोक वर्मां ने कहा कि न्याय व्यवस्था का मूल उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना है। सामान्यतः न्यायालय में वही व्यक्ति याचिका दायर करता है, जो स्वयं पीड़ित हो या जिससे अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। किंतु लोकहित याचिका के माध्यम से न्याय व्यवस्था ने एक नई दिशा प्रदान की है। इसमें कोई भी व्यक्ति, चाहे वह स्वयं प्रभावित न हो, समाज के किसी वर्ग के हित में याचिका दायर कर सकता है। यह विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है, जहां पीड़ित व्यक्ति असमर्थ हो या न्यायालय तक पहुंचने में अक्षम हो। इस प्रक्रिया ने न्याय को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने में सहायता की है।
न्यायमूर्ति आलोक वर्मा जी ने कहा कि न्यायिक सक्रियता के चलते समाज में कई जनहितकारी निर्णय लिए गए हैं। महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकने, पर्यावरण संरक्षण, बच्चों की शिक्षा और पोषण, बंधुआ मजदूरी समाप्त करने, और कमजोर वर्गों को सामाजिक पहचान देने जैसे कई मामलों में न्यायपालिका ने सक्रिय भूमिका निभाई है। ऐसे निर्णय न केवल प्रशासन और सरकार को जवाबदेह बनाते हैं, बल्कि समाज में सुधार और जागरूकता को भी बढ़ावा देते हैं। न्यायिक सक्रियता ने समय-समय पर जनता के अधिकारों की रक्षा और समाज में समता और न्याय स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी गई। वरिष्ठ शिक्षाविद श्री दिवाकर नातु , संस्थान प्रमुख श्री युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ , श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कविकुलगुरु डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और कर्मयोगी स्व. श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में डिजिटल व्याख्यानमाला को सुनने के लिए एडवोकेट अशोक यादव, एडवोकेट हरदयाल सिंह ठाकुर, एडवोकेट दिनेश पंडया, एडवोकेट रघुनंदन पाटीदार, एडवोकेट अरूण देशपांडे, एडवोकेट मुकेश उपाध्यानय, श्री भवानी शंकर भार्गव, भुवनेश रामदास, श्री मोहन चौधरी, यतेंद्र कुमार द्विवेदी, एन के नागर, डॉ. रामेश्वर परमार, श्याम सिंह सिकरवार, कृष्णपाल सिंह गोहिल सहित विभिन्न पत्रकारगण, शिक्षकजन एवं बौद्धिकजन उपस्थित थे। व्याख्यानमाला का संचालन संस्थान की डायरेक्टकर श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ ने किया।
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