अ. भा. सद्भावना व्याख्यानमाला के चौथे दिवस पर रखे वक्ताओं ने अपने विचार
उज्जैन । महात्मा गांधी की अहिंसा कायरता का नहीं, बल्कि असीम साहस और आत्मबल का प्रतीक थी। गांधी जी के पास ऐसे अनगिनत अनुयायियों की फौज थी जो उनके एक बार कहने भर से ही उनका अनुसरण कर लिया करती थी। अनुयायियों की ऐसी शक्ति मिलने के बाद गांधी जी चाहते तो उन्हें शस्त्र थमाकर आजादी के आंदोलन में कूदने का कह सकते थे , किंतु गांधी जी ने उस जनशक्ति का प्रयोग अहिंसात्मक रूप से किया। यह गांधी जी के साहस का प्रतीक था। उनकी अहिंसा का यह सिद्धांत देश को शांति और सद्भाव के साथ स्वतंत्रता तक ले गया। गांधी जी के लिए 'राम' सिर्फ दशरथ पुत्र नहीं थे , बल्कि गांधी के लिए राम तो सच्चे अर्थों में सत्य, धर्म, और नैतिकता के प्रतीक थे। उनका मानना था कि सत्य और सन्मति का पालन ही राम की वास्तविक उपासना है।
उक्त विचार आंतरभारती, पुणे की अध्याक्ष श्रीमती अंजली कुलकर्णी, ने भारतीय ज्ञानपीठ (माधव नगर) में कर्मयोगी स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा एवं पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल 'सुमन' की स्मृति में आयोजित 22 वीं अ.भा.सद्भावना व्याख्यानमाला के चतुर्थ दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए। "आधुनिक समाज की समस्याएं और गांधी के विचारों में उनके निदान" विषय पर व्यक्त अपने विचारों में श्रीमती कुलकर्णी ने कहा कि गांधी जी का आर्थिक दृष्टिकोण सामाजिक न्याय पर आधारित था। वे ऐसे अर्थशास्त्र के पक्षधर थे जो कमजोरों के हितों की रक्षा करे। उनका कहना था कि मशीनों के बढ़ते उपयोग से रोजगार छिनता है और इससे गांवों का विकास रुक जाता है। आज के समय में, जब हमारे शहर भीड़ और तनाव से भर गए हैं और गांव विकास से वंचित हैं, गांधी जी के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।
श्रीमती कुलकर्णी ने बताया कि आज, जब दुनिया एक वैश्विक गांव बन गई है, तो गांधी जी के विचार नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं। उनके आदर्शों को अपनाकर एक ऐसा भारत बनाया जा सकता है जो आधुनिक, नैतिक और समृद्ध हो। शांति, एकता और आत्मनिर्भरता का संदेश गांधी जी के सपनों का गांव ही साकार कर सकता है। गांधीजी ऐसे समाज का सपना देखते थे जो अपनी संस्कृति में रचा-बसा हो और दूसरों की संस्कृति का सम्मान भी करता हो। गांधी जी का राष्ट्रवाद केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि मानवता के लिए था। उनकी दृष्टि में, भारत को एक ऐसी पहचान स्थापित करनी थी, जिसमें विविधता, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों का स्थान हो।
श्रीमती कुलकर्णी ने कहा कि गांधी जी स्वतंत्रता से अधिक स्वराज और सुशासन को महत्व देते थे। यही कारण है कि जब देश को स्वतंत्रता मिली तो पूरा देश इसका जश्न मना रहा था, किंतु गांधी जी उस समय पुणे के पास किसी छोटे से अंचल में उस व्यवस्था को बनाने में लगे थे कि आजाद भारत में लोगों की स्वास्थ्य की देखभाल कैसे की जाए ।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद माननीया डॉ.नीता तपन चौरे,ने कहा कि वैश्विक, स्थानीय और व्यक्तिगत स्तर पर गांधी जी सदैव प्रासंगिक रहेंगे। जिस पीढ़ी में हम जन्म लेते हैं, उसकी सोच और बाहरी परिस्थितियाँ हमारी मानसिकता को आकार देती हैं। इसी से हमारी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और उनके समाधान भी। लेकिन कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनके समाधान सार्वभौमिक होते हैं, और ऐसे में गांधी जी के विचार अत्यंत प्रासंगिक हो जाते हैं।
गांधी जी के अनुसार, अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति का विकास ही सच्चा विकास है। उनके विचारों पर आधारित कई सरकारी योजनाएँ संचालित की जा रही हैं, जिनके माध्यम से जनता को लाभ पहुँचाया जा रहा है। गांधी जी के सिद्धांत और विचार अनायास ही हमारे कार्यों और विचारों में परिलक्षित हो जाते हैं।कोविड महामारी के दौरान हमने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की सेवाओं का एक उदाहरण देखा, जो गांधी जी के सेवा भाव के सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है। वे हमेशा महामारी के समय सेवा की आवश्यकता पर जोर देते थे। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज विश्व में अशांति बढ़ रही है, जो गांधी जी के विचारों से दूर जाने का संकेत है। हमें संसाधनों का त्यागपूर्ण उपभोग करना चाहिए। गांधी जी का यह विचार कि हमें अपने से छोटे लोगों का भी सम्मान करना चाहिए, उनके गुणों को प्रोत्साहित करना चाहिए और अपनी कमियों का आकलन करना चाहिए, आज भी कई सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी गई। वरिष्ठ शिक्षाविद श्री दिवाकर नातु, संस्थान प्रमुख श्री युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ , श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कविकुलगुरु डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और कर्मयोगी स्व. श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में डिजिटल व्याख्यानमाला को सुनने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया, डॉ एचएल महेश्वरी , डॉ स्मिता भवालकर, सुश्री शीला व्यास, डॉ सदानंद त्रिपाठी, डॉ राजेंद्र नागर 'निरंतर' , डॉ संतोष पंडया, डॉ पुष्पा चौरसिया, श्री नितिन डेविड, श्री अमिताभ त्रिपाठी, अजय धूलेकर, श्री अक्षय अमेरिया सहित विभिन्न पत्रकारगण, शिक्षकजन एवं बौद्धिकजन उपस्थित थे। व्याख्यानमाला का संचालन डॉ. चैताली वेद ने किया।
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