यादें शेष-
पत्रकार, लेखक, कवि, शिक्षाविद्, समाजसेवी और जिंदादिल इंसान डॉ देवेन्द्रजी जोशी के आगे स्वर्गीय शब्द लिखना आज भी गले नहीं उतर रहा है। एक मुस्कुराता चेहरा, रोबदार आवाज और उनका आत्मीय भाव से मिलना सब आंखों के सामने आते है और उनको स्वर्गीय कहने से रोक रहे है। वे जिंदा है उनके चाहने वालों के बीच जो कभी उनको भूलाना चाहे तो भी नहीं भूल पाएंगे। उनकी तीन दर्जन किताबों में से अधिकांश किताबों के विमोचन का मैं साक्षी रहा हूँ। उनकी जो छवि दिल दिमाग में बसी है, वो ये कहती है, डॉ देवेन्द्रजी जोशी कहीं नहीं गये, वे भौतिक रूप से न सही पर आत्मीय रूप से हमारे पास ही है उनकी किताबों के माध्यम से। अपनी खुद की किताब के विमोचन के अवसर पर खुद ही संचालन करना बहुत कठिन कार्य होता है। जो कि वे हर बार करते थे।
डॉ जोशी जी अपनी धुन के इतने पक्के थे कि कोई कुछ भी कहे, प्रशंसा करे या निंदा उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था। जिस काम को करने का संकल्प जोशी जी मे लिया वो करके दिखाते थे। वे जितने सहज और सरल थे उससे कईं गुना प्रखर थे। 2019 में उज्जैन में नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुस्तक मेले का आयोजन किया था। उस में देशभर से पुस्तक विक्रेता आये थे। जब पांडाल तैयार हो रहा था तब एक प्रेस कांफ्रेस हुई थी जिसमें डॉ जोशी ने दिल्ली से आए एनबीटी के मेला संयोजक से मांग रखी की उज्जैन के लेखकों की भी सैकड़ों पुस्तकें निकली है। उनको भी पुस्तक मेले में निशुल्क जगह मिलनी चाहिए। उनकी इस मांग का मैने और अन्य पत्रकार मित्रों ने भी समर्थन किया। तो मेला अधिकारियों ने कहा कि ये हमारे हाथ में नहीं है, जो पुस्तक विक्रेता आते है वे पांडाल में अपनी दूकान लगाने का किराया देते है। और इसकी अनुमति दिल्ली ऑफिस ही दे सकता है। हम तो व्यवस्था जमाने के लिए आए है। आप लोग दिल्ली ऑफिस को पत्र लिखकर मेल कर दिजिए। और फोन पर बात कर लिजिए।
डॉ जोशीजी ने प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुझे और डॉ हरीशकुमार सिंह को बुलाया और बोला तुम्हारें शब्द प्रवाह साहित्य मंच के लेटर हेड पर आवेदन बनाओ और मेल करो मैं अभी दिल्ली बात करता हूँ। मैंने वहीं बैठ कर लेटर बनाया और मेल किया । डॉ जोशी जी ने थोड़ी देर बाद फोन पर दिल्ली बात करी तो उनको आश्वासन दिया गया कि उज्जैन के लेखकों की किताबों को भी जगह हम देने ये कोशिश करेंगे। दिल्ली से आए मेला संयोजक लालित्य ललितजी और मयंक जी भी जोशी जी की भावना को समझ रहे थे। जोशी जी चाह रहे थे कि उज्जैन में भी सैकड़ों लेखक है ये जानकारी उज्जैन के लोगों तक पहुंचना चाहिए। आखिरकार जोशीजी का प्रयास सफल हुआ और अनुमति मिल गई कि उज्जैन के कलमकारों की पुस्तके भी मेले में एक स्टॉल पर रहेगी। पुस्तक मेले में उज्जैन के लेखकों को स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका डॉ जोशी जी की रही। जोशी जी के आदेश पर तत्काल उज्जैन साहित्यकार मंच का बैनर बनाया गया। उज्जैन के लेखकों से अपनी किताबें मेले में भेजने का निवेदन किया गया। सौ से अधिक किताबें मेले के पहले दिन पहुंच गई। उज्जैन के अधिकांश लेखकों ने अपनी किताबें प्रदर्शन और आधे मूल्य पर विक्रय के लिए दी। सात दिन तक चले पुस्तक मेले में उज्जैन के लेखकों को एक ठिया डॉ जोशी प्रयास और मेरे सहयोग से मिल गया था। उज्जैन के कुछ कलमकारों के इंटरव्यु भी हमने इस स्टॉल पर लिए। जिनकी विडियों यूट्यूब पर उपलब्ध है। सात दिनों में लगभग चालीस हजार रुपये की किताबें उज्जैन के लेखकों की बिकी जो कि छोटी सही पर एक उपलब्धि वाली बात थी। पुस्तक मेले के समापन पर सभी पुस्तक भेजने वाले लेखकों का एनबीटी के अधिकारीयों के द्वारा सम्मान भी करवाया गया। जो कि यादगार रहा। ये पुस्तक मेला मेरे और जोशीजी की आत्मीय निकटता को एक नयी ताजगी दे गया।
आवाज़ और कलम दोनों पर समान अधिकार डॉ देवेन्द्र जी जोशी का था। उन्हें कभी भी किसी आयोजन में मैने नोटपेड लेकर बैठे हुए नहीं देखा। साहित्य कला और संस्कृति के लिए पूरे समर्पित मन से वे आयोजन में आते, ढाई-तीन घंटे तक पूरे समय बैठते, आनंद लेते और अपने दिल दिमाग में उस आयोजन को बसा कर साथ ले जाते और दूसरे ही दिन दैनिक उज्जैन सांदीपनी के पूरे पेज का समाचार लोगों के सामने होता। उनकी स्मरण शक्ति कमाल की थी। आज के युग में ऐसे पत्रकार और लेखक शायद ही कहीं दिखें। एक वक्ता के रूप में डॉ जोशी जी की बुलंद आवाज हर किसी को प्रभावित करती थी, किसी भी विषय को परावर्तन करना हो उनके लिए सहज काम होता था। शब्द और वाक्य विन्यास तो उनके रग-रग में समाये थे ही, आत्मविश्वास भी उनका बहुत मजबूत था। हजारों संचालन कर चुके थे पर कभी किसी बात का दोहराव उनके शब्दों में नहीं होता था। वे जब भी बोलते नया चिंतन देते, नयी बात श्रोताओं को सुनने को मिलती जो की उनकी वक्तव्य शैली की सबसे बड़ी विशेषता थी। कोई भी सभा हो, आयोजन हो अपने प्रभावी संचालन से अंत तक लोगों को जोड़े रखने की कला में वे निपुण थे। लेखनी का वरदान तो उनके साथ था ही तभी तो मात्र पॉच साल तीस किताबें उनने लिख डाली जो की अभूतपूर्व घटना से कम नहीं है। डॉ जोशी जी के साथ रहे पलों के संस्मरण इतने है कि लिखता ही रहूँ। 19 नवम्बर 1962 को जन्में और 10 नवम्बर 2024 को अनंतयात्री हो गये डॉ देवेन्द्र जोशी जी सदैव स्मरणीय रहेंगे।
संदीप सृजन
संपादक- शब्द प्रवाह डॉट पेज
0 टिप्पणियाँ