Subscribe Us

वे जानते हैं कि आप कुछ नहीं जानते - कमलेश व्यास 'कमल'


प्रत्येक शहर, गाँव, मोहल्ले, कालोनी, सोसाइटी में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सब कुछ पहले से जानते हैं। किसी भी घटना-दुर्घटना अच्छे-बुरे प्रसंग में उनका एक ही जवाब होता है-"मैं तो पहले से जानता था।" या "मुझे तो पहले से पता था कि ऐसा कुछ होगा।" मान लो किसी कालोनी में कोई लड़का-लड़की भाग गए, सब परेशान हैं, लोगों द्वारा तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं ऐसे में कुछ लोगों की आपसी बातचीत के दौरान एकाध त्रिकालदर्शी निकल ही आता है जो यह कहता है कि "मैं तो पहले से ही जानता था, फलाने जी की लड़की या लड़का एक न एक दिन भाग जाएगा।"

रूस-युक्रेन का युद्ध हो या फिलिस्तीन-इजरायल का उसकी तमाम गतिविधियों के ये चश्मदीद गवाह होते हैं। किसी के बेडरूम में होने वाली नोकझोंक, इन्हें हमेशा पहले से पता होती है। वैसे कभी-कभी ऐसे लोगों को शेखी बघारने वाला यह अंदाज भारी भी पड़ जाता है। कुछ साल पहले जब आतंकवाद का बोलबाला था तब शहर में बम ब्लास्ट की घटना होने पर ऐसे ही आम नागरिकों के किसी झुंड में बातचीत के दौरान इनके मुँह से निकला जुमला-"मैं तो पहले से जानता था।" पास से गुजरते किसी पुलिस वाले ने सुन लिया जिसके बाद थाने ले जाकर इनकी जो खातिरदारी हुई उसके बाद कईं महीनों तक ये अपना नाम तक भूल गए थे...!!

इसी प्रजाति की एक किस्म और होती है जो किसी घटना या दुर्घटना के घट जाने के बाद बड़े ही गर्व के साथ यह घोषणा करते हैं कि मैंने फलाने को पहले ही कह दिया था कि ऐसा होगा। उदाहरण के लिए जैसे चुनाव आयोग ने घोषणा की कि फलां फलां तारीखों पर आम चुनाव होंगे। इसके बाद ये त्रिकालदर्शी अपने जान-पहचान वालों के बीच सगर्व घोषणा करते हैं कि "मैंने मुकेस को तीन दिन पेलेज बता दिया था की इत्ती तारीख को चुनाव हैं।" फिर वे मुकेश की ओर देखकर दुगने उत्साह से कहते हैं "क्यों मुकेस नरसूं टंटू की दुकान पे चाय पीती टेम नी बोला था मैंने कि चुनाव कब होंगे,बोला था कि नी बोला था।" मुकेश भी भिया के समर्थन में बस अपनी मुण्डी हाँ में हिला देता है। ऐसे जीव आपको हर मोड़ पर एक न एक मिल ही जाएँगे।

'मैं सब जानता हूं।' 'मैं तो पहले से ही जानता था।' 'मुझे मालूम था, ऐसा ही होगा।' यह और इन जैसे वाक्य अक्सर सुनने में आए होंगे। इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग करने वाले अधिकांश लोग वास्तव में अपनी कमजोरी छुपाने या शेखी बघारने का प्रयास कर रहे होते हैं, जिनका उन्हें भान भी नहीं होता। अक्सर ऐसे लोग 'बहुत कम जानते हैं', लेकिन 'मैं सब जानता हूँ' 'मेनिया' की वजह से जीवन में बहुत कुछ सीखने-समझने से वंचित रह जाते हैं। उनकी प्रगति एक निश्चित सीमा से आगे नहीं बढ़ पाती। कभी-कभी तो ऐसे लोग जीवन भर प्रतिस्पर्धा में फिसड्डी ही बने रहते हैं, लेकिन इसे स्वीकार नहीं कर पाते एवं दोषारोपण के लिए किसी न किसी का सर तलाशते रहते हैं।शेक्सपियर का कथन है- 'जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए।'

इसमें कुछ वह लोग होते हैं जो यह जानते हैं कि "वे नहीं जानते" लेकिन लोग यह न समझ ले कि "वे नहीं जानते" इसलिए कहते रहते हैं कि "मैं सब जानता हूँ" जबकि जानने वाले जान जाते हैं कि "वे नहीं जानते" फिर भी सभ्यता या सौजन्यता वश यह नहीं कह पाते कि "वे जानते हैं कि आप कुछ नहीं जानते।"

यदा कदा ऐसा भी होता है जब आप आगे रहकर किसी को कोई जानकारी जो आपको मालूम है कि उसे इसका इल्म नहीं है, देना चाह रहे हो और वह बड़ी तल्खी से कह देता है- "रहने दो, मुझे मालूम है।" ऐसे में आपके पास खून का घूँट पीकर रह जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता। आप तो मन-मसोस कर रह जाते हैं लेकिन वह नहीं जानता कि उसने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।

जीवन में आगे बढ़ाना है तो सदैव जिज्ञासु बने रहना अत्यंत आवश्यक है। सिर्फ जिज्ञासु नहीं, अपितु "मैं जानना चाहता हूँ।" कहने का हौसला होना भी आवश्यक है। कहते हैं "ज्ञान कचरे में भी पड़ा हो तो उठा लेना चाहिए।" ऐसा होना दुर्लभ है परंतु ज्ञान और उसको हासिल करने के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए ही उक्त कथन किसी ने कहा होगा। हो सकता है आप किसी विषय में ज्यादा जानकारी सकते हों, मगर कोई उसी विषय में आपसे कुछ कह रहा हो तो उसे भी ध्यानपूर्वक सुने। हो सकता है वह आपसे अधिक जानता हो, या उसके अनुभव से उस विषय में कोई नया दृष्टिकोण आपको हाँसिल हो। इस जानने-समझने की प्रक्रिया में अपनी उम्र का अहं आड़े न आने दें। हो सकता है आपसे कम उम्र का व्यक्ति भी किसी विषय में आपसे अधिक जानकारी-अनुभव रखता हो। किसी साहित्यकार का कथन है कि सौ पृष्ठ पढ़ना या एक किलोमीटर घूमना, बराबर होता है। इसका मतलब यह नहीं की बस आप घूमते ही रहें और पढ़े नहीं। अध्ययन और अनुभव दोनों का समन्वय हो और उस पर किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन मिल जाए सोने पर सुहागा हो जाता है। अगर जीवन भर कूपमंडूक नहीं बने रहना है तो "मैं सब जानता हूँ" नहीं "मैं जानना चाहता हूँ" कहना सीखें। या शेख सादी के कथनानुसार "अज्ञानी के लिए मौन से श्रेष्ठ कुछ नहीं है, और यदि वह यह युक्ति समझ ले तो अज्ञानी ना रहे।" पर लोग तो मौन रहने वाले को भी "एड़ा बन के पेड़ा खाने वाला" समझते हैं...!!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ