लेखक संघ की ग़ज़ल गोष्ठी में बिखरे ग़ज़ल के रंग
भोपाल।"ग़ज़ल मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का प्रभावी और लोकप्रिय माध्यम है" यह कहना है उर्दू अकादमी की निदेशक एवं प्रसिद्ध शायरा डाॅ. नुसरत मेंहदी का जो मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक ग़ज़ल गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन दे रही थीं ।
आपने कहा कि सामाजिक सरोकारों के साथ अनेक विषयों को स्वयं में समाहित करने वाली शायरी का नाम ग़ज़ल है।" गोष्ठी के सारस्वत अतिथि श्री संतोष जैन ने कहा कि शेर अरबी और फ़ारसी से चलकर उर्दू में रची बसी ऐसी पद्य संरचना है जो रदीफ़, क़ाफ़िया एवं बहर के अनुशासन से अस्तित्व में आता है । ऐसे पाँच या अधिक शेर मिलकर एक ग़ज़ल को रूपायित करते हैं इसकी अदायगी , बात कहने का सलीक़ा और अंदाज़ ही इसे ख़ास बनाता है ।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे संघ के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने कहा कि ग़ज़ल की लोकप्रियता का ही परिणाम है कि अब हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं ही नहीं लोकभाषाओं में भी ग़ज़लें कही जा रही हैं । गोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण के पश्चात श्री ऋषि श्रंगारी ने स्वागत वक्तव्य दिया।
गोष्ठी में पढ़े गये ये शेर बेहद सराहे और पसंद किये गये -
डाॅ. नुसरत मेंहदी
हक़परस्तों की जहां राय शुमारी होगी,
सबसे पहले वहां आवाज़ हमारी होगी ।
संतोष जैन
मिलते हैं संगदिल ही नहीं ग़मगुसार भी,
रस्ते में धूप है तो शजर सायादार भी ।
डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
खाली बर्तन इन्तज़ार में रखे हुए हैं बस्ती में,
मगर योजनाएँ पानी की बँधी हुई हैं नस्ती में ।
ऋषि श्रंगारी
लिखे जो चंद मिसरे बेवजह तारीफ में मेरी,
मुझे वो गुनगुनाते तो ग़ज़ल कुछ और ही होती ।
डाॅ. अशोक गोयल
बदनाम तो मुझे तेरी आदत ने कर दिया,
बाक़ी रहा जो काम महब्बत ने कर दिया।
डाॅ. प्रभा मिश्रा
कोई सोचता ही न हो जहाँ
मेरे सोचने से बबाल है,
रहूँ बेख़ुदी में तो क्या बुरा
जो खुदी में जीना मुहाल है ।
वृन्दावन राय 'सरल'
खून को कुछ लोग पानी लिख रहे हैं,
आंसुओं से हम कहानी लिख रहे हैं।।
मनीष श्रीवास्तव 'बादल'
आज के माहौल में भी हिचकिचाता है बहुत,
खुल के कहता है नहीं वो बुदबुदाता है बहुत ।
शकील खान 'शकील'
यही दिल सोच के डरता बहुत है,
सुना है प्यार में धोखा बहुत है ।
हरि वल्लभ शर्मा 'हरि'
जो चला नहीं है खड़ा वहीं, उसे हादसों का पता नहीं।
उसे मंजिलें क्या नसीब हों, जिसे रास्तों का पता नहीं।
मधु शुक्ला
सपनों के मोर पंख जो सिरहाने धर गया,
खोली जो आँख शख्स वो जाने किधर गया ।
शफ़ी लोदी रतलामी
इस से पहले की बरसात का पानी आये,
मेरी आंखों में अश्क़ों की रवानी आये ।
अरुण 'अपेक्षित'
मोह भंग हो गया सुनहरे सपनों से,
मित्रों से, रिश्तों से, सारे अपनों से ।
आरती डोंगरे
इस कदर जख्म को मत हवा दीजिये,
हो सके तो दवा या दुआ दीजिये ।
नीता सक्सेना
ज़िन्दगी की डगर ढूँढतीं बेटियाँ,
हौसलों का सफ़र कर रहीं बेटियाँ ।
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