मुरादाबाद के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाज द्वारा विश्वविख्यात साहित्यकार कीर्तिशेष माहेश्वर तिवारी जी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन
मुरादाबाद। ‘याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे, जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे’, अब तो केवल यादें ही शेष रह गई हैं सुप्रसिद्ध गीतकार कीर्तिशेष दादा माहेश्वर तिवारी जी की। लोगों की जुबान पर बसे उनके गीत, सभी के प्रति उनकी आत्मीयता, उनकी मनमोहक छवि, उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व और उनके चिर-परिचित ठहाके, सभी कुछ जीवित है, जीवंत है यत्र-त़त्र-सर्वत्र। उनकी यादें तैरती रहेंगी उन्हीं के शब्दों में, ‘...पत्ता-पत्ता नम है, ये सुबूत क्या कम है।’
मुरादाबाद के समूचे साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाज द्वारा दादा की स्मृति में आज एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन महानगर स्थित स्वतंत्रता सेनानी भवन पर किया गया, जिसमें महानगर के साहित्यिक, शैक्षिक, संगीत एवं सांस्कृतिक समाज सहित हर वर्ग से जुड़ी विभूतियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
श्रद्धांजलि सभा में ‘एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है, बेजुबान छत-दीवारों को घर कर देता है’ सहित दादा तिवारी जी की कुछ लोकप्रिय रचनाओं का ऑडियो प्रस्तुतिकरण भी किया गया। दादा को याद करते हुए डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि ‘दादा न केवल एक महान साहित्यकार थे अपितु एक महान चिन्तक भी थे जिन्होंने अपनी विचारधारा से समाज को उन्नति की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।’
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी का कहना था कि ‘दादा एक बड़े गीतकार तो थे ही, बहुत बड़े इंसान भी थे। वह अपने उच्च विचारों एवं साहित्यिक समर्पण के चलते हम सभी के दिलों में हमेशा उपस्थित रहेंगे।’ वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. के.के. मिश्रा ने भाव अर्पित करते हुए कहा कि ‘दादा माहेश्वर जी जीवन पर्यन्त साहित्य एवं संस्कृति की सेवा में तत्पर रहे। उनका यह समर्पण एवं साधना समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।’
वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने अपने श्रद्धाभाव अर्पित करते हुए कहा कि ‘देश के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाज की चर्चा जब भी होगी, वह तिवारी जी की चर्चा के बिना अधूरी ही रहेगी।’ नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था कि ‘दादा माहेश्वर तिवारी जी भौतिक रूप से भले ही हमारे बीच उपस्थित न हों परंतु अपने रचनाकर्म एवं प्रेरक जीवन शैली के माध्यम से वह हम सभी के हृदय में सदैव उपस्थित रहेंगे।’
धर्मगुरू एवं कथा वाचक आचार्य धीरशांत दास ने कहा कि ‘माहेश्वर तिवारी जी जैसा कवि युगों के बाद जन्म लेता है, वह सदा अपने गीतों में जीवित रहेंगे।’ डॉ. मनोज रस्तोगी ने अत्यधिक भावुक होते हुए कहा कि ‘दादा की साहित्यिक यात्रा एक अद्भुत व प्रेरक दस्तावेज बनाकर हमें उनका स्मरण कराती रहेगी।’ वरिष्ठ लेखक एवं शिक्षाविद् डॉ. रामानंद शर्मा का कहना था कि ‘कीर्तिशेष माहेश्वर जी का सृजन देश एवं देश से बाहर भी साहित्य साधकों के लिए अनुकरणीय रहा।’
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के धवल दीक्षित ने कहा कि ‘कीर्तिशेष माहेश्वर दादा की सीधी-सरल जीवन शैली एवं कठिन साधना संपूर्ण साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।’ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा एवं दादा की धर्मपत्नी श्रीमती बाल सुंदरी तिवारी जी ने भावुक होते हुए कहा कि ‘विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक रहना दादा की विशेषता थी।’ कला भारती के संस्थापक बाबा संजीव आकांक्षी ने दादा का भावपूर्ण स्मरण करते हुए कहा कि ‘दादा जीवन पर्यन्त समाज के प्रत्येक वर्ग के हितार्थ अपना सृजन करते रहे। एक आम व्यक्ति का जीवन उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देता है।’
वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. प्रदीप शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘दादा माहेश्वर जी साहित्य के साथ-साथ रंगमंच में भी रुचि लेते थे। उनके सानिध्य में महानगर में कई रंगमंचीय प्रस्तुतियां हुईं।’ वरिष्ठ गजलकार डाॅ. कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि ‘दादा तिवारी जी के साथ बैठकर बतियाने का मतलब साहित्य के एक युग के साथ बतियाना था।’ वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई ने कहा कि ‘विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य रखना दादा की विशेषता रही।’
दोहाकार राजीव प्रखर ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि ‘व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों ही दृष्टियों से इतनी ऊँचाई पर होते हुए भी दादा आजीवन अपनी जड़ और जमीन से जुड़े रहे। इस महान गौरवशाली यात्रा को चंद शब्दों में समेट पाना संभव नहीं, वह हमेशा हमारे दिलों में अमर रहेंगे।’ शायर जिया जमीर ने कहा कि ‘वह एक महान गीतकार होने के साथ-साथ बहुत अच्छे गजलकार भी थे। उनके जाने के पश्चात् हम सभी का यह दायित्व बनता है कि उनके अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करा कर साहित्यिक समाज के सम्मुख लाया जाए।’
कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि ‘मेरी साहित्यिक यात्रा में कीर्तिशेष दादा की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही और मेरा मानना है कि मेरे प्रत्येक गीत में उनकी सुगंध बसती है।’ गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि ‘दादा माहेश्वर जी वरिष्ठ एवं कनिष्ठ सभी में समान रूप से लोकप्रिय रहे।’ कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि ‘छोटे-बड़े सभी रचनाकारों से स्नेह करना दादा की विशेषता थी। उनका जाना समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए एक अपूर्णीय क्षति है।’ कवि दुष्यंत बाबा का कहना था कि ‘साहित्य एवं संस्कृति के प्रति दादा का प्रेम उनकी रचनाओं में मुखर होकर हमारे समक्ष आता है। साहित्य जगत् में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा चुका है।’
नवोदित कवयित्री अभिव्यक्ति सिन्हा ने अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि ‘महानगर में किसी मार्ग का नाम कीर्तिशेष माहेश्वर दादा के नाम पर रखा जाना चाहिए।’ सुप्रसिद्ध संगीतकार आदर्श भटनागर का कहना था कि ‘दादा मुरादाबाद एवं यहाॅं के लोगों से बेहद स्नेह करते थे। एक उच्च कोटि का साहित्यकार होने के साथ-साथ उन्हें संगीत की भी गहरी जानकारी थी।’
इसके अतिरिक्त धनसिंह धनेंद्र, पूजा राणा, राशिद हुसैन, सरदार गुरविंदर सिंह, राम सिंह निशंक, नेपाल सिंह, रामदत्त द्विवेदी, विजय दिव्य, डॉ. शलभ गुप्ता, मनोज व्यास, राहुल श्रीवास्तव, सरिता लाल, डॉ. आसिफ हुसैन, फरहत अली खान, श्रीकृष्ण शुक्ल, शिवम वर्मा, शुभम कश्यप आदि ने भी दादा का भावपूर्ण श्रवण करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अंत में कीर्तिशेष माहेश्वर तिवारी जी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखते हुए सभा समापन पर पहुंची। श्रद्धांजलि सभा का संचालन संयुक्त रूप से डॉ. मनोज रस्तोगी एवं धवल दीक्षित ने किया।
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