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प्रभावी रही ‘शब्द’ की ऑनलाइन रचनागोष्ठी


बेंगलूरु । दक्षिण भारत की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था 'शब्द' की मासिक रचना गोष्ठी बीते रविवार को ऑनलाइन आयोजित हुई । वरिष्ठ कवि अनिल विभाकर की अध्यक्षता में आयोजित रचना गोष्ठी में मुख्य अतिथि अवधि भाषा के मीमांसक रामबहादुर मिश्र थे। 

इस आभासी रचना गोष्ठी में पटना से कवि शिवदयाल और मुजफ्फरपुर से युवा कवि सौरभ पांडेय जुड़े थे । इसी तरह अल्मोड़ा से शशि जोशी, गाजियाबाद से शैलजा सिंह, हैदराबाद से आशा मिश्रा और पुणे से प्रतिभा प्रभा की सहभागिता उल्लेखनीय रही । गोष्ठी में वरिष्ठ कवि शिवदयाल की कविताओं के स्वर सामाजिक चेतना से ओतप्रोत थे, जिन्हें प्रतिभागियों ने खूब सराहा।

'शब्द’ की कार्यकारी अध्यक्ष नलिनी पोपट, सचिव डॉ उषारानी राव, कार्यक्रम संयोजक श्रीकांत शर्मा और युवा गीतकार लोकेश मिश्र की कविताएँ एवं गीत भी खूब सराहे गये । गोष्ठी में कवयित्री शैलजा सिंह और शशि जोशी की सस्वर प्रस्तुतियों का प्रतिभागी श्रोताओं पर जादुई असर देखा गया । कवयित्री प्रतिभा प्रभा की कविता ‘जिद्दी लड़की’ भी प्रतिभागियों द्वारा खूब पसंद की गयी । युवा कवि सौरभ पांडेय और गजलगो इफ्फ़त फरीदी की गजलें काफी मानीखेज थीं । हैदराबाद की युवा कवयित्री आशा मिश्रा एवं बेंगलुरू की युवा कवयित्री कविता भट्ट की कविताओं में नारी मन की कोमल भावनाएं मुखर थीं । वरिष्ठ कवयित्री रचना उनियाल, गीता चौबे गूँज और अचला प्रवीण की कविताओं में शक्ति की आराधना के स्वर थे, जबकि ऋताशेखर मधु ने कुंडलियाँ सुनाईं । गोष्ठी में शिवनंदन सिन्हा एवं रामरतन सिंह की कविताएं भी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहीं ।

मुख्य अतिथि भाषाविद रामबहादुर मिश्र लखनऊ के बजाय उत्तर प्रदेश के एक गाँव से ऑनलाइन जुड़े थे । उन्होंने ‘शब्द’ साहित्यिक संस्था की गतिविधियों की सराहना की तथा साहित्य चेतना के निर्माण तथा संवर्द्धन में ‘शब्द’ के प्रयासों को मूल्यवान बताया । रचनागोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि अनिल विभाकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि निस्वार्थ भाव से किया गया काम व्यर्थ नहीं जाता । ‘शब्द’ के आयोजनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका मैं अभिरुचि के परिष्कार में देखता हूँ । उदाहरण कर रूप में इस ऑनलाइन काव्यगोष्ठी को लिया जा सकता है, जिसकी गुणवत्ता प्रशंसनीय है । उन्होंने इस मौके पर अपनी दो सामयिक कविताएं सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही भी बटोरी ।

आभासी गोष्ठी की शुरुआत में ‘शब्द’ के अध्यक्ष डॉ श्रीनारायण समीर ने उपस्थित रचनाकारों का स्वागत करते हुए कविता को आत्मा की पुकार बताया और कहा कि कविता निष्काम नहीं होती । वह अपने समय के घट-अघट, अच्छाई-बुराई, संघर्ष और उत्कर्ष का लेखा-जोखा होती है । ऐसे में सवाल बनता है कि कविता की दखल हमारे जीवन में है भी या नहीं ? यदि नहीं तो कवियों को इस बारे में विचार करना चाहिए ।गोष्ठी का प्रभावी संचालन युवा कवि दीपक सोपोरी ने किया । गोष्ठी का समापन ‘शब्द’ की कार्यकारी अध्यक्ष नलिनी पोपट के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ ।

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