उज्जैन । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व बहुत व्यापक है। उनका जीवन दर्शन हमें कई महत्वपूर्ण सूत्र देता है । गांधीजी ने यह सिद्ध किया कि राष्ट्र की बड़ी से बड़ी समस्या को हल करने के लिए जनमानस की जड़ों तक पहुंचना आवश्यक है। चंपारण सत्याग्रह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें गांधीजी ने किसानों के मन को समझा और किसानों को भी लगने लगा कि हम अपनी समस्या ऐसे नेता के सामने रख सकते हैं। इस विश्वास के आधार पर गांधीजी ने एक ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया जो कृषि के कंपनीकरण और किसानों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का सबसे बड़ा उदाहरण है। आज भी कई समस्याओं का निदान जनमानस की जड़ों तक पहुंचने से ही संभव है।
उक्त विचार महाराष्ट्र के वरिष्ठ नाट्यकर्मी एवं समाजसेवी श्री अमृत महाजन ने भारतीय ज्ञानपीठ में कर्मयोगी स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा और डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन की स्मृति में आयोजित अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के दूसरे दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किये। श्री अमृत महाजन ने कहा कि गांधीजी एक अलग ही दृष्टिकोण के साथ निर्णय लेते थे। किसी ने सोचा भी नहीं था कि मुट्ठीभर नमक वाले एक विचार से नमक कानून तोड़कर अंग्रेजों की गुलामी को अमान्य किया जा सकता है, किंतु गांधीजी ने यह संभव किया। इस आंदोलन से उन्होंने ऐसी चेतना जागृत की जिससे अंग्रेजों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनना शुरू हो गया। ऐसे कई अभिनव प्रयोगों से गांधी जी ने स्वतंत्रता के प्रति भारतीय जनमानस के मन में एक चेतना जागृत कर दी थी। वह जिस भी गांव से गुजरते थे, वहाँ हजारों की संख्या में लोग गांधी जी से मिलने पहुंच जाते थे।
गांधीजी के नेतृत्व का प्रमुख गुण यह था कि वह कार्यकर्ता से विशेष रूप से जुड़ाव रखते थे। हर कार्यकर्ता उनकी बात को सम्मान देते हुए आंदोलन को सफल बनाता था। गांधीजी राम नाम लेकर गांव में लोगों को एकत्र करते थे। गांधीजी में परिस्थिति के हिसाब से आंतरिक और बाह्य रूप से बदलाव करने की क्षमता थी। यदि हम गांधी के व्यापक दृष्टिकोण में से कुछ अंश भी ग्रहण कर लें तो हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। गांधी के मार्ग पर चलते हुए न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को हल किया जा सकता है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए संयुक्त आयुक्त मध्य प्रदेश शासन एवं प्रख्यात साहित्यकार श्री प्रतीक सोनवलकर ने कहा कि गांधीजी के लिए धर्म का अर्थ आत्मज्ञान होता था। विविध विषयों और क्षेत्रों में गांधी जी के विविध दृष्टिकोण वाले विचार दिखाई देते हैं, जो उनके व्यक्तित्व को व्यापक बनाते हैं। गांधी जी ने सर्वोदय के साथ सामंजस्य बनाने का कार्य किया। गांधी जी ने ग्रामीण भारत को सशक्त बनाया। हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था भी गांधी जी के जीवन दर्शन पर आधारित है। वर्तमान में हमारी प्रशासनिक व्यवस्था ग्राम पंचायत पर आधारित है, जिसकी कल्पना गांधी जी ने की थी। जहां उन्होंने स्वदेशी को अपनाने की बात कही तो वहीं शिक्षा को सार्वभौमिक बनने पर जोर दिया। गांधी जी ने हमेशा ऐसी शिक्षा की कल्पना की जिसमें विद्यार्थियों का मानसिक विकास के साथ शारीरिक विकास भी हो। गांधी जी का मानना था कि विकास का सच्चा मार्ग यह है कि समृद्धि सभी वर्गों तक पहुंचे। जहां वह एक कुशल नेता थे तो वह एक सच्चे साधक भी थे। खादी, हस्तशिल्प और कुटीर को बढ़ावा देने में गांधीजी का विशेष योगदान है। गांधी जी के मार्ग पर चलना किसी व्रत के पालन करने की तरह है। गांधी जी हमेशा कहते थे कि अहिंसा एक प्रकार से उच्च कोटि का साहस है। गांधी जी ने हमें प्रार्थना की शक्ति से परिचय करवाया। उनका कहना था कि प्रार्थना में हृदयहीन शब्दों के होने से शब्दहीन हृदय होना ज्यादा बेहतर है।
कार्यक्रम के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावनापूर्ण गीत की प्रस्तुति दी गई। व्याख्यानमाला को सुनने के लिए भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में श्री शेख न्याज मोहम्मद, आनंद विभाग के जिला संयोजक श्री प्रवीण जोशी, पूर्व संयुक्त संचालक शिक्षा, श्री बृज किशोर शर्मा, श्री मथुरा प्रसाद शर्मा, श्री अजय तिवारी, डॉ. पुष्पा चौरसिया, श्रीमती उमा भट्ट, श्री अजय मेहता, श्री उमेश गुप्ता, श्री संजय कुलकर्णी, श्री क्रांतिकुमार वैद्य, श्री अनिल गुप्ता संस्था की डायरेक्टर श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ, महाविद्यालयीन प्राचार्य डॉ नीलम महाडिक, विद्यालयीन डायरेक्टर डॉ तनुजा कदरे सहित बड़ी संख्या में बौद्धिकजन एवं पत्रकार उपस्थित थे। व्याख्यानमाला को उज्जैन के पहले कम्युनिटी रेडियो दस्तक 90.8 एफ एम पर भी लाखों श्रोताओं द्वारा सुना गया। संचालन डॉ. सीमा दुबे ने किया।
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