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व्यावसायिक प्रगति के लिए अहिंसा और नैतिकता का संदेश देती कृति - मूल्यात्मक अर्थशास्त्र


भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण कल्याणक वर्ष के शुभारंभ के साथ ही मनीषीप्रवर डॉ. दिलीप धींग द्वारा लिखित पुस्तक ‘मूल्यात्मक अर्थशास्त्र (जैन आगम साहित्य के आलोक में)’ का प्रकाशन एक विशिष्ट उपलब्धि है। इसका प्रकाशन अभुषा फाउंडेशंस, चेन्नई द्वारा किया, जिसमें जीतो अपेक्स चेयरमैन सुखराज नाहर (मुंबई) सहभागी बने हैं।

पुस्तक के प्रथम आवरण पर प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान ऋषभदेव की प्रतीकात्मक छवि के साथ उनके द्वारा प्रतिपादित असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प का संकेत किया गया है तथा व्यावसायिक प्रगति के लिए अहिंसा और नैतिकता का संदेश दिया गया है।

अंतिम आवरण पर अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर का वह रूपांकन दर्शाया गया है, जो भारतीय संविधान की लिखित प्रति में है। साथ ही भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित पाँच व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के जरिये अर्थव्यवस्था में मूल्यों की प्रतिष्ठा की प्रेरणा दी गई है। लेखक डॉ. धींग ने जैन प्रतीक के साथ अंकित वाक्य परस्परोपग्रहो जीवानाम् की व्याख्या अर्थशास्त्र में पारस्परिक निर्भरता के सिद्धांत के रूप में की है, जिसे पाँच व्रतों के मध्य अंकित किया है।

अपने प्रकाशकीय में चेयरमैन अभय श्रीश्रीमाल जैन ने लिखा कि भगवान महावीर के सिद्धांत समृद्धिदायक अर्थव्यवस्था और समतामूलक समाजव्यवस्था की स्थापना में सहयोगी बनते हैं। डॉ. धींग ने इस ग्रंथ में एक ऐसी ही मूल्यात्मक अर्थव्यवस्था की वकालात की है। अर्थशास्त्री प्रो. सीएस बरला ने आमुख में सुझाव दिया कि जिनके मानस पटल पर जैन आगमों का केवल आध्यात्मिक पक्ष अंकित है उन्हें डॉ. धींग के इस ग्रंथ का आद्योपांत पठन करना चाहिए।

लेखकीय में डॉ. धींग लिखते हैं कि भगवान महावीर का मूल्यात्मक अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर श्रम और स्वतंत्रता, कौटुंबिक स्तर पर स्नेह और सहयोग, सामाजिक स्तर पर समता और समानता, व्यावसायिक स्तर पर निष्ठा और प्रामाणिकता, राष्ट्रीय स्तर पर कर्तव्य और कुशलता तथा वैश्विक स्तर पर शांति और पर्यावरण-संरक्षण को सुनिश्चित करता है।

आकर्षक मुद्रण के साथ बड़े आकार की 360 पृष्ठों की यह पुस्तक जैनागमों के अनेक अज्ञात व अल्पज्ञात तथ्यों से अवगत करवाती है। निश्चित ही, यह पुस्तक पठनीय, मननीय एवं जीवन की पथ-प्रदर्शक होने से सहेजने योग्य है।

-डॉ पारस संचेती, चेन्नई
(लेखक सा. चंदन तिलक के संपादक है)

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