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भैया मैं तो कठपुतली हूँ (व्यंग्य) -डॉ रमेशचन्द्र


अब आपसे क्या छिपाना, जो सच है वो तो बताना ही पड़ेगा न..! वरना आप मेरे बारे में पता नहीं क्या क्या धारणा बना लेंगे।

तो मैं अपने बारे में बता रहा था कि मैं कठपुतली हूं। अब आप सोच रहे होंगे कि एक अच्छा खासा इंसान कठपुतली कैसे हो सकता है तो मैं उसका खुलासा कर देता हूँ। मैं इंसान ज़रूर हूं, लेकिन मैं कठपुतली की तरह काम करता हूं। कठपुतली तो काठ की होती है फिर वह बेज़ान होती है और मैं जानदार हूं। भला कठपुतली से मेरा संबंध ही क्या? लेकिन ऐसी बात नहीं है। जिस तरह कठपुतली को कोई और नचाता है उसी तरह मैं भी किसी और के कहने पर नाचता हूं। यहां नाचने से मतल़ब़ डांस से नहीं है बल्कि हर उस काम से है, जिसे कोई कराता है। और मैं खुशी खुशी करता हूँ।

अब मैं थोड़ा सा विस्तार से बता कर आपका ज्ञान वर्धन कर देता हूँ। वह यह कि मैं जब छोटा बालक था तब से ही मैं अपने मां बाप का हर कहना मानता था। उनके बताए हर काम अधिकारियों के करता था। धीरे धीरे मैं समझ गया कि मां-बाप की आज्ञा मानने से वे बड़े खुश होते हैं। बस, तबसे मैंने यह मूल मंत्र अपना लिया। मां बाप ने शिक्षा भी यही दी कि हर बड़े व्यक्ति की बात मान लो। वह जो भी कह रहा है या आज्ञा दे रहा है उसका पालन कर लो। इससे सब आपकी प्रशंसा करेंगे और आप पर कभी कोई संकट नहीं आएगा।

जब मैं स्कूल जाने लगा, तब मास्टर साहब का हर कहा मान लिया करता था। जैसा वे कहते मैं करता। इससे वे बड़े प्रसन्न रहते। मैं बड़ा हुआ और कालेज जाने लगा तो वहां के प्रोफेसर जो काम देते, मैं खुशी खुशी कर लेता। चाहे पढ़ाई हो, खेल कूद हो या अन्य कुछ। पढ़ाई के बाद जब मैं नौकरी करने लगा तब अपने अफसर और सभी बड़े अधिकारियों के आदेश को मान कर चलता। इससे वे मुझे बड़ा नेक, भला और अच्छा मानने लगे।

इसके बाद जब मेरी शादी हो गयी तब मैं अपनी पत्नी के हर हुक्म की तामील करने लगा। पत्नी बड़ी खुश होती। वह कहती - "आप कितने अच्छे हो !"

मैं शर्म से लाल हो जाता और वह प्यार से मुझे देखती। वह घर के छोटे मोटे काम का करने का कहती तो मैं खुशी खुशी कर देता। बर्तन, झाड़ू यहां तक कि कभी कभी कपड़े धोने का कहती तो उसे करने में भी मैं नहीं सकुचाता था। भला घर का काम करने में कैसी लाज और शर्म। पत्नी के अलावा जब कभी सास ससुर भी कोई काम करने का कहते तो मैं उसे भी कर देता। वे बड़े खुश होते और कह बैठते - "ज़माई हो तो ऐसा..! "

शादी के एक साल बाद बच्चे हुए तो उनकी सेवा सुश्रुषा करने का पत्नी कहती तो उसे भी कर देता। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक मैं पत्नी, सास और ससुर के अलावा अपने पड़ोसियों के आदेश का भी पालन करने में नहीं हिचकिचाता था।

जब बच्चे बड़े हो गये तब मैं उनके आदेश का पालन करने लगा। मुझे न कभी किसी से लड़ने का अवसर मिला और न भिड़ने का। मैं सबका चहेता बन कर रहा। जब मेरे बच्चों की शादी हुई और बहुएं आई तब मैं उनकी हर बात और आदेश मान कर चलता। एक दो बार मेरी पत्नी ने मुझे डाटा और कहा कि बहुओं का कहना मानने की ज़रूरत नहीं है। तब मैंने कहा - " मैं ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि मैं "न" कहने का आदी नहीं हूं। मुझे हर किसी की आज्ञा का पालन करना बड़ा अच्छा लगता है। चाहे तुम हो या बहू। "

यह सुन कर पत्नी ने अपना माथा ठोक लिया और बोली - " हे भगवान! किस आदमी से मेरा पाला पड़वा दिया।" फिर मुझे ज़ोरदार फटकार लगाते हुए कहा - " क्या बहुओं की भी कठपुतली बने रहोगे..! "

मैंने कहा - " जो आनंद कठपुतली बने रहने में है वह कुछ और बनने में नहीं है। "

-डॉ रमेशचन्द्र, इंदौर

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