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मॉ तुझे प्रणाम (कविता)


बसाता हूँ दिल में मैं तेरे सुखन माँ
हैं मिश्री से मीठे ये तेरे वचन माँ
करूँ क्यों न तुझको हजारों नमन मैं
सदा ही रहूँ मैं तुम्हारीं शरण माँ

बड़े नाम वाला है मेरा वतन माँ
सदा इसमें महके खुशी के चमन माँ
तुम्हारी दया पर निर्भर है सब कुछ
है अमृत के प्याले तुम्हारे नयन माँ

है तीरथ हमारे ये गंगो-जमन माँ
करें इसकी मौजों को क्यों न नमन माँ
तुम्हारें नयन के उजालें है इसमें
सदा इन पे रखना ये प्यारे नयन माँ

रहे हम सदा बन के शाने वतन माँ
कभी कम न हो ये हमारी लगन माँ
किसी से ये दुनिया हमें कम न आंके
कदम बढ़ के चूमें हमारे गगन माँ

-मनोज जैन 'मनोकामना',झाबुआ

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