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अखंड भारत के पक्षधर - सरदार पटेल


भारत की स्वतंत्रता के प्रमुख योद्धा व स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री व प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल चाहते थे कि भारत का विभाजन नहीं हो तथा भारत की अखंड़ता बनी रहे। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से मिल कर द्विराष्ट्र सिद्धान्त को न मानने के लिए भी आग्रह भी किया था। सरदार पटेल भाव, विचार और क्रिया तीनों ही दृष्टियों से भारतीयों को गुलामी की मानसिकता से पूर्णतः मुक्त करना चाहते थे परन्तु दुर्भाग्यवश वर्तमान में भी कुछ लोगों के मन में गुलामी के अंश बचे हुए है तथा वे एक परिवार विशेष की गुलामी करने में ही तल्लीन है जबकि अखंड भारत को सर्वोपरि रखना चाहिए। भारत में स्वतंत्रता भारत के एक परिवार के ही कारण नहीं आयी परन्तु अधिसंख्य भारतीयों के द्वारा किये गये संघर्ष व सहयोग से प्राप्त हुई है ।

भारत को एकजुट रखने वाले ऐसे महापुरुष का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के बोरसद ताल्लुक के करमसद गांव में हुआ था। 1897 में मैट्रिक तथा 1900 में ड़िस्ट्रिक्ट प्लीड़र (जिला अधिवक्ता) की परीक्षाऐं उत्तीर्ण करके वे 1910 में कानून की पढ़ाई करने के लिए लन्दन चले गये तथा प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की।

स्वतंत्रता से पूर्व 1946 में ही पं. नेहरु की अंतरिम सरकार में गृह और सूचना एवम् प्रसारण विभाग का कार्यभार संभाल कर उच्च कोटि के प्रशासक के रुप में प्रसिद्ध हो गए। स्वंतत्रता के पश्चात् देश की 550 से अधिक रियासतों को एक सूत्र में बांध कर भारत की एकता व अखंड़ता को बनाने का भागीरथ प्रयास किया। कालान्तर में उन्हें लौह पुरुष उपनाम से संबोधित किया जाने लगा। उनकी मृत्यु दिसम्बर 15, 1950 को हो गई।

पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत के स्वतंत्रता के आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की एकता तथा महानता ही उनके जीवन का एक मात्र ध्येय व मार्गदर्शक सिद्धान्त बना रहा। लार्ड़ माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत के बंटवारे की योजना की घोषणा कर दी जिससे वे अत्यन्त दुखी हुए परन्तु उन्होंने दुखी मन से इस योजना को इसलिए स्वीकृति दी कि ‘शेष भारत को संयुक्त रखने के लिए इसे अब विभाजित कर दिया जाना चाहिए‘। मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस ने लार्ड माउंटबेटन की भारत के विभाजन की इस योजना स्वीकार कर लिया था।

कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय देश में स्वतंत्रता के लिए घनघोर संधर्ष चल रहा था तथा जनता में सरदार भगत सिंह की फांसी को लेकर आक्रोश था परन्तु तब तक सरदार पटेल एक कुशल राजनेता तथा जन-नायक के रुप में आम जनता में अपनी स्वीकार्यता और दक्षता बना चुके थे। इससे पूर्व इतिहास के सबसे बड़े किसान आंदोलन - बारदौली किसान सत्याग्रह के नायक रह चुके थे तथा 1918 में गुजरात के अहमदाबाद के प्रथम म्यूनिसिपल कमिश्नर के रुप में किसानों के हित में जन-आंदोलन खड़ा कर दिया था जो बांबे प्रेसीड़ेंसी की सरकार के निर्णय के विरुद्ध था।

स्वतंत्रता से पूर्व बांबे की चौपाटी पर एक विशाल भीड़ के सम्मुख अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा था कि जिन्ना किसी समझौते के लिए तैयार ही नहीं थे और सिर्फ मनः कल्पित पाकिसतान पर ही अड़े रहे। जिन्ना यह विश्वास करते है, नहीं जिद करते है कि केवल वे मुसलमान, जो लीग में या लीग के साथ है, वे ही वास्तव में मुसलमान है, अन्य सभी मुसलमान, मुसलमान है ही नहीं। इस सभा में सरदार पटेल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त की यह कह कर हंसी उड़ाई थी कि एक ही देश में दो राष्ट्रों के विचार का यह अर्थ होगा कि पिता एक राष्ट्र का होगा और उसके बच्चे दूसरे राष्ट्र के। कुछ लोग तो नो मैंस लैंड़ के भी होंगे । इसका जो तात्पर्य था और उससे जो प्राप्त हुआ, वह था - सिर्फ विनाश, घोर विपत्ति, विकृति और अनादर।

सरदार पटेल ने 9 मई 1946 को सर चिमन लाल सी तलवाड़ को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने साफ लिखा कि ब्रिटिश सत्ता को भारत से निकालने मात्र के लिए ऐसा कुछ भी स्वीकार नहीं किया जायेगा जो भविष्य में देश की सुरक्षा और समृद्धि को खतरे में ड़ाल सकता है. जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है, वह एक कमजोर और ढ़ीले ढ़ाले केन्द्र के लिए अथवा किसी ऐसी व्यवस्था, जिसमें भारत का बंटबारा धार्मिक वर्गो के आधार पर होता हो, बंगाल, पंजाब व असम के वर्तमान प्रान्तों को तथाकथित पाकिस्तान के क्षेत्र में देने के लिए कभी सहमत नहीं होगी। 13 मई 1946 को आसाम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री सिद्धिनाथ शर्मा को सरदार पटेल ने पत्र में लिखा कि लीग तथा कांग्रेस के बीच लीग के प्रस्तावों के आधार पर कोई समझौता नहीं होने वाला है। कांग्रेस एक सुदृढ़ केन्द्र सरकार की पक्षधर है और इसलिए भारत के विभाजन का कोई प्रश्न ही नहीं है।

पटेल भारत की अख्ंड़ता के पक्षधर थे. वे समस्त राष्ट्रवादी शक्तियों के समन्वयक थे. उन्होंने घोर पीड़ा सहन करके भारत के विभाजन को स्वीकार किया होगा। 30 अक्टूबर 1948 को बम्बई में दिये अपने भाषण में कहा कि जब मैने विभाजन स्वीकार किया, एक तरह से मैं अनिच्छुक और काफी दुखी था। यह मेरी अंतरात्मा की भावनाओं के विरुद्ध था। हम लोगों के जीवन के सिद्धांतों और आकांक्षाओं के विरुद्ध था परन्तु एक दूसरी दृष्टि से हम लोगों को जानबूझ कर और इसके परिणामों को अच्छी तरह सोच समझ कर विभाजन को स्वीकार किया था। हम लोंगों ने महसूस किया कि यदि हम एकजुट होकर नहीं रह सकते तो हमें अलग हो जाना चाहिए। हम भारत की स्वाधीनता को किसी दूसरे तरीके से प्राप्त नहीं कर सकते थे।

हम पटेल की निष्ठा, त्याग और समर्पण पर कभी भी सन्देह नहीं कर सकते । वे भारत के राजनीतिक एकीकरण के मूर्तिमान स्वरुप थे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्य काल में गुजरात के केवड़िया में विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टेच्यू आफ यूनिटी‘ अर्थात एकात्मता की मूर्ति का निर्माण करवाया जो ऐसे सच्चे राजनेता को दी जाने वाली सच्ची व सार्थक श्रद्धांजलि कही जा सकती है। प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य हो जाता है कि वह इस मूर्ति के दर्शन कर भारत की एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करे न कि उस मूर्ति को पर्यटन की दृष्टि से ही देखने जाये।

-डा. सूर्य प्रकाश अग्रवाल(डी.लिट्.)
(अदिति फीचर)

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