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नवपद ओली तप (कविता)


मैनासुंदरी पुत्री थी उज्जयनी के राजा प्रजापाल की ।
हे गाथा बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के समय की ।।

थी मैनासुन्दरी बहुसंस्कारी, सुशिक्षित व स्वावलंबी विचार की।
धर्म पर रखती थी अटूट श्रद्धा,आराधक सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र की ।।

पिता ने कुष्ठ रोगी संग विवाह कर दिया था अभिमान में ।
ना टूटा मनोबल फिर भी ,था विश्वास कर्म सिद्धांत में।।

आचार्य मुनिचन्द्रसूरी की आज्ञा से नवपद की साविधि की आराधना।
मन, वचन, काया की पवित्रता से की उत्साहपूर्वक धर्म साधना।।

चैत्र ,आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होता है यह शाश्वत ओली तप।
सप्तमी से पूनम तक नव दिन किया जाता है यह आयम्बिल तप।।

सप्तमी के दिन राग -द्वेष के विजेता अरिहंत की है उपासना ।
श्वेत रंग है अरिहंत का, आयम्बिल चावल से है करना।।

अष्टमी के दिन सभी कर्मों से मुक्त सिद्ध की है उपासना ।
लाल रंग है सिद्ध भगवंत का, आयंबिल गेहूं से है करना ।।

नवमी के दिन छत्तीस गुणों के धारक आचार्य जी की है उपासना।
पीला रंग है आचार्य जी का, आयम्बिल चने से है करना।।

दशमी के दिन पच्चीस गुणों के धारक उपाध्यायजी की है उपासना।
हरा रंग है उपाध्यायजी का, आयंबिल मूंग से है करना ।।

एकादश का दिन सत्ताइस गुणों के धारक साधु की है उपासना।
काला रंग है प्रतीक साधु जी का, आयम्बिल उड़द से है करना।।

द्वादशी से पूनम सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र,तप की है आराधना।
सफेद रंग है प्रतीकात्मक आयम्बिल चावल से है करना।।

सिद्धचक्र आराधना से श्रीपाल मैनासुन्दरी का पुण्योदय हो गया।
श्रीपाल राजा का क्रोड़ सात सो कोड़ी संग मिट गया ।।

श्रीपाल , मैनासुन्दरी ने नवपद आराधना कर जीवन सुधारा।
तपस्या से अंतर्मन को निर्मल, पवित्र कर अशुभ कर्म क्षय कर डाला।।

मोक्ष का मार्ग बताता है यह नवपद ओली तप।
भवसागर से तिराता है यह नवपद ओली तप ।।

पंचपरमेष्ठी की आराधना व सम्यकत्व की प्राप्ति है यह तप।
आत्मा को परमात्मा बनाता है यह नवपद ओली तप।।

-डॉ. खुशबू बाफना ,उज्जैन (म.प्र )

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