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खिलौना (कहानी)


जून की कड़कती दोपहरी में आग बरसाता सूरज मानो सड़क पर खड़ी बस यहीं पिघल कर सड़क में ही मिल जाएगी। ट्रेन की टिकट ना मिलने से नूतन को बस में सफर करने पर मजबूर किया था । जाना भी इस क़दर जरूरी था कि इस भीषण गर्मी में भी नॉन एसी का सफर करने को मजबूर थी।

अभी सुबह के दस ही बजे थे और सूरज दादा मानो सिर के ऊपर ही तांडव कर रहे थे और ऊपर से सड़क का लंबा जाम मन को और बेचैन किए जा रहा था।विंडो सीट होने से नूतन को थोड़ी राहत थी। 

बाहर के नजारें देख उसका समय काटना कुछ सहज हो गया था। सड़क किनारे बैठे यह फेरी वाले रोजमर्रा की जिंदगी से दो-दो हाथ करते हुए भी कितने सामान्य लगते हैं। गुब्बारे वाला इसके गुब्बारे में शायद सारे रंग है पर क्या इसके जीवन के भी सारे रंग है ? तरह-तरह के रंग बिरंगे खिलौनों से फुटपाथ भरा पड़ा था। इस चिलचिलाती धूप में सब खुद को तपा रहे थे जिससे उनके घरों में दो वक्त की रोटी बन सके। अजीब विडंबना थी मौसम बदलता है, समय बदलता है पर यदि कुछ नहीं बदलता है तो वो है फुटपाथ पर चलती इनकी जिंदगानी। 

बस में बैठे बैठे नूतन ने जिंदगी के जाने कितने ही रंग देख लिए थे । बस अभी भी जाम में फंसी थी,सभी गर्मी से बेहाल थे कोई पानी पीकर खुद को शांति दे रहा था तो कोई शीतल पेय से मन को शीतल कर रहा था। उसका भी मन हुआ कुछ खाया जाए, पास ही फुटपाथ पर खड़े आइसक्रीम वाले को इशारा कर एक आइसक्रीम मंगाया । उसने आइसक्रीम को अभी मुंह से लगाया ही था कि उसकी नजर वहीं प्लास्टिक की बनी झुग्गी पर गई जहां एक महिला अपने बच्चे को सिर्फ इसलिए डाँट और मार रही थी क्योंकि उसके बच्चे आधुनिक खिलौनों से खेल रहे थे, जिन्हें बेच कर महिला उन्हें रोटी खिलाती थी। महिला जोर-जोर से चिल्ला रही थी, जितनी जोर से वो चिल्ला रहीं थी उतनी ही जोर से रोए जा रही थी ।

अपनी वेदना को छिपाने का असफल प्रयास करते हुए अपने ही वेग में बोले जा रही थी "आज कितना नुकसान कर दिया तुम दोनों ने सौ रुपया कितना मुश्किल से आता है पता भी है "? तुम दोनों की खेलने के लिए नहीं है । ये दूसरे बच्चों के खेलने के लिए है । तभी एक बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा "हम भी तो बच्चे हैं" | मां का कलेजा मुँह को आया। वोो कैसे समझाएं यदि इन खिलौने से तुम दोनों खेलोगे तो भूखे सोना पड़ेगा । बच्चों को गले से लगाते हुए खूब लाढ़ करते हुए उसने कहा "ये खिलौने बड़े घर के बच्चों के लिए है, हम इन्हें बेचेंगे तभी तो पैसे आएंगे " फिर मैं तुम्हारे लिए दूसरे खिलौने लाऊंगी। माँ ने बच्चों को थाली में चांद दिखा दिया था और बच्चे भी सहज भाव से मान गए थे ।

आपने आंसुओ को फटे और मैले कुचैले पल्लू से पोंछते हुए महिला ने कुछ टेबलेट (आधुनिक खिलौना )उठाया और सड़क पर खड़ी लगभग हर गाड़ी के पास जाकर बेचने का प्रयास कर रही थी दो-तीन खिलौने बेंच भी दिया था। घूमते-घूमते वो नूतन के पास भी आई और खरीदने का आग्रह किया, ले लो ना मेम साब, बच्चे खुश हो जाएंगे देखो ना कंप्यूटर जैसा चलता है, नूतन आंखों की नमी छुपाते हुए दो टैबलेट खरीद लिया और साथ ही आइसक्रीम वाले को दो आइसक्रीम लाने का इशारा किया। दोनों खिलौने और आइसक्रीम उस महिला को देते हुए नूतन ने कहा "यह खिलौने आपके बच्चों के लिए मेरी तरफ से और यह आइसक्रीम भी और हां खेलने का हक़ सभी बच्चों को है, चाहे वो बड़े घर के हो या अन्य, ईश्वर ने सबको एक जैसा बनाया है।" उस महिला ने नूतन को ढेरों दुआएं दी, दोनों के आँखों के आंसू रुक नही रहे थे ।

अब जाम खुल चुका था और इस भीषण गर्मी में भी नूतन के हृदय में शीतलता थी। क्या अजीब असंतुलन है मर्सिडीज कार का ड्राइवर चंद पैसे बचाने के लिए पैदल चलता है। करोड़ों के बंगले का चौकीदार झोपड़ी में रहता है। खिलौने बेचने वालों के बच्चे मिट्टी और टूटे बर्तनों से खेलते है। जाने कब ख़त्म होगा ये असंतुलन, नूतन की आंखें नम थी। आँख बंद कर वो अपनी बेबसी को पीने लगी, बस अब रफ़्तार पकड़ चुकी थी अपने गंतव्य की ओर जाने को.... |

-दामिनी ठाकुर, इंदौर (म.प्र)

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