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साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन चुनौती पूर्ण कार्य है


पत्रिका अनुस्वार का लोकार्पण सम्पन्न

उज्जैन । वर्तमान में जब अधिकतर साहित्यिक पत्रिकाएं बंद हो रही हैं ऐसे में साहित्यिक पत्रिका अनुस्वार का प्रकाशन स्वागत योग्य है। अनुस्वार का पहला अंक साहित्यकार लालित्य ललित जी पर केंद्रित है क्योंकि ललित जी इस समय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। डॉ. संजीव कुमार जी ने प्रेम जनमेजय जी को लालित्य ललित केंद्रित अंक के सम्पादन का भार देकर अच्छा ही किया क्योंकि वे उनके लेखन के सही विश्लेषक हैं। यह पत्रिका साहित्य का दर्पण हैं। साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन चुनौती पूर्ण कार्य है। प्रधान संपादक डॉ. संजीव कुमार जी की समर्पण भावना तथा कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है।

ये विचार व्यंग्यकार डा हरीशकुमार सिंह ने 21वीं सदी के साहित्यकार समूह के विशेष आयोजन के अंतर्गत आज 'अनुस्वार पत्रिका- एक बेहतरीन शुरुआत' शीर्षकीय राष्ट्रीय वेबिनार में वक्ता के रूप में व्यक्त किये। इस वेबिनार में देश के अलग अलग राज्यों के विशिष्ट साहित्यकारों की भागीदारी रही।


कार्यक्रम के अध्यक्ष और प्रसिद्ध नाटक साहित्यकार प्रताप सहगल के अनुसार – "सभी वक्ताओं ने अपने-अपने वक्तव्यों में अनुस्वार पत्रिका के बारे में बहुत बढ़िया विचार रखा। साहित्य का मूल्यांकन करने के लिए भारतीय और पाश्चात्य निकषों की आवश्यकता पड़ती है। अब भी नई-नई साहित्यिक जानकारियों को पढ़ने की आवश्यकता है। ललित ने बच्चों के लिए साहित्य, व्यंग्य और कविता में स्वयं को सिद्ध किया है। उन्हें अन्य विधाओं में भी हाथ आजमाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ललित में वृहद और विशाल साहित्य लिखने की क्षमता है। डॉ.सहगल ने यह भी कहा कि संजीव कुमार इस विषय में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी भाषा होनी चाहिए। ललित इस मामले में धनी हैं। मैं ललित, प्रेम जी और डॉ. संजीव को ढेर सारी बधाई देता हूँ।"

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अनुस्वार के अतिथि संपादक और व्यंग्य यात्रा के यशस्वी संपादक व्यंग्य पुरोधा प्रेम जनमेजय ने इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए कहा – "पत्रिका निकालना एक चुनौतीभरा काम है। पत्रिका की प्रसवपीड़ा असह्य होती है। उसे मंच देना, उसका प्रचार-प्रसार करना और दायित्व निभाना बहुत बड़ी चुनौती है। कई पत्रिकाएँ निकालने को तो निकाली जाती हैं, लेकिन समर्पण भावना की कमी के चलते पनप नहीं पातीं। ऐसे कई लोगों के अनुभवों को मैंने करीब से देखा है। जब तक आप यह तय नहीं करते कि पत्रिका क्यों पढ़ी जाए तब तक पत्रिका निकालने का कोई अर्थ नहीं है। पत्रिका को मिशनरी सोच से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। लालित्य ललित को मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, समझता हूँ। इसलिए मुझे अतिथि संपादन करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। आज के समय में ललित महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं। ललित चुंबक हैं और विषयों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उन्होंने कहा कि इंडिया नेटबुक्स के सौजन्य से ललित की कई पुस्तकें आ चुकी हैं, इसलिए उन पर केंद्रित अनुस्वार अंक न्यायोचित है।"

श्री लालित्य ललित ने इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रेम जनमेजय, ज्ञान चतुर्वेदी, हरीश नवल जैसे दिग्गज साहित्यकारों ने मुझमें कविता के अतिरिक्त व्यंग्य की प्रबल संभावना देखी। उन्हीं के मार्गदर्शन पर चलते हुए मैं आगे बढ़ने का प्रयास करता हूँ। प्रेम जी मेरी कविता में व्यंग्य के कॉम्बो देखते हैं। मैं भवानी प्रसाद मिश्र से अत्यंत प्रेरित हूँ। मैं डॉ. संजीव कुमार और प्रेम जनमेजय जी का कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझे अंक का केंद्र मानकर जो सौभाग्य दिया है, उसके लिए ऋणी हूँ। अनुस्वार के प्रकाशक, इंडिय़ा नेटबुक्स के स्वामी तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ संजीव कुमार ने कहा – " नए स्वर को मंच देने के उद्देश्य से अनुस्वार पत्रिका का आरंभ किया गया। प्रेम जनमेजय जी वास्तविक रूप से ऐसे मार्गदर्शक हैं, जिनकी संपादन, लेखन व आलोचकीय दैवीय क्षमता से हम अभिभूत हैं। यह पत्रिका नवलेखकों को मंच देने के उद्देश्य से आरंभ की गई है। पत्रिका में बीच-बीच में पुस्तकों का जो विज्ञापन दिया गया है वह इंडिया नेटबुक्स के प्रसार-प्रसार के रूप में है। किसी भी पत्रिका का पहला अंक हमेशा चुनौती भरा होता है। कोई भी रचनाकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी नहीं होता। नवोदित रचनाकार, नवोदित ही होता है। ऐसे में उसे स्थान देने की जिम्मेदारी किसी न किसी को उठाना चाहिए। वही जिम्मेदारी मैं निभा रहा हूँ। ललित जी की गतिशीलता, रचनाधर्मिता, सक्रियता में उनका कोई सानी नहीं है। यही कारण है कि ललित केद्रित प्रवेशांक नई पीढ़ियों का प्रेरणास्रोत बन सके, इसी मंशा से यह अंक निकाला गया है। भविष्य में इस पत्रिका को और अधिक समृद्ध करने का प्रयास किया जाएगा। वैसे इंडिया नेटबुक्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप बनाने में सफल हो रहा है। अगला अंक वरिष्ठ साहित्यकार प्रताप सहगल जी पर केंद्रित होगा। अतिथि संपादन पुनः प्रेम जनमेजय जी करेंगे। इस अवसर पर डॉ संजीव ने कहा कि बहुत जल्द इंडिया नेटबुक्स साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार देने का चलन आरंभ करेगा।"

वरिष्ठ साहित्यकार राजेशकुमार के अनुसार – "अनुस्वार में स्वर को व्यंजित करने का तत्व विद्यमान होता है। जिस तरह से फिल्म में बड़े स्टार को ले लिया जाता है तो लोग फिल्म की कम, स्टार की ज्यादा बात करते हैं।उसी तरह ललित जी और प्रेम जी जैसे बड़े स्टारों से सजी यह पत्रिका डॉ.संजीव कुमार जी के बैनर तले इसका प्रवेशांक शानदार है। डॉ. संजीव कुमार जी अपनी उम्र से होड़ लगाते हुए दिखाई देते हैं। वे बड़े संवेदनशील, मानवतावादी तथा समर्पित व्यक्तित्व हैं। ऐसे वरिष्ठ साहित्यकार के प्रकाशन में इस पत्रिका का आना शुभ संकेत है। वे निस्वार्थ भाव से हिंदी साहित्य में समर्पित भावना से काम कर रहे हैं। अंक में व्यक्ति केंद्रित विशेष पुस्तकों की छवि के चलते कभी-कभी पत्रिका विज्ञापन-सा प्रतीत होने लगती है। इससे बचना चाहिए। भविष्य में इसमें और अधिक विविधता भरी साहित्यिक सामग्री को स्थान दिया जाएगा। इसकी रूपसज्जा पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।"

विशेष वक्ताओं में चेन्नई से वरिष्ठ व्यंग्यकार बी.एल.आच्छा जी के अनुसार – "अनुस्वार पत्रिका के साथ डॉ. संजीव कुमार ने साहित्य का आगाज किया है। प्रेम जनमेजय के अतिथि संपादन में इस पत्रिका ने अपने पहले ही अंक में क्रांतिकारी शुरुआत की है। ललित जी का चयन सबसे उपयुक्त है। जिस तरह से कुंकुम के साथ किसी का घर में कन्या का स्वागत किया जाता है, ठीक उसी तरह ललित जी इस पत्रिका के कुंकुम के रूप में शुभचिह्न साबित हुए हैं। ललित और प्रेम जी का घनिष्ठ संबंध है। लालित्य ललित जी की रचनाधर्मिता प्रशंसननीय है। ललित की छवि लंबी छलांग पसंद करती है। अनुस्वार पत्रिका निराशाओं के बीच आशा की उभरती किरण है। प्रेम जी नए लेखकों को अपने सा रखने का प्रयास करते हैं। सरस्वती पत्रिका ने पश्चिम के आलोचकों को स्थान दिया। यही काम अज्ञेय जी ने भी किया। अनुस्वार पत्रिका में पश्चिमी आलोचनाओं को भी स्थान भी मिलना चाहिए। तब यह पत्रिका अंतर्राष्ट्रीय कहलाएगी।" कुल्लू के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सूरत ठाकुर जी के अनुसार, "अनुस्वार पत्रिका बहुत अच्छी पहल है। ललित जी हमेशा प्रेरणा की मूरत हैं। यह पत्रिका उन पर केंद्रित होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। अनुस्वार पत्रिका के संपादक, अतिथि संपादक व प्रकाशक को ढेर सारी बधाई।"

प्रभात गोस्वामी, जयपुर के अनुसार – "किशोरावस्था में नंदन, युवावास्था में कादंबिनी, धर्मयुग पढ़कर साहित्य का लुत्फ उठाया है। लेकिन जैसे-जैसे बड़े प्रकाशक अपने प्रकाशन बंद करने लगे या नियमितता के चलते कुछ पत्रिकाएँ अपनी चमक खो बैठी हैं। प्रेम जनमेजय जी की व्यंग्य यात्रा पत्रिका नियमित पत्रिकाएँ नवीन पत्रिकाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना है। आजकल पत्रिकाओं का अकाल चल रहा है। ऐसे में डॉ. संजीव कुमार ने अनुस्वार पत्रिका को चुनौती के रूप में लेकर एक साहसिक कार्य किया है। पत्रिका निकालना और उसे पाठक तक पहुँचाना भी चुनौती भरा कार्य है। ललित जी पर केंद्रित अनुस्वार का प्रथम अंक नवयुवा रचनाकारों के लिए प्रेरणास्रोत है। वरिष्ठ साहित्यकारों पर केंद्रित यह अंक सबके लिए प्रेरणास्पद है।"

दिल्ली की व्यंग्यकार सुनीता शानू के अनुसार – "ललित जी पर केंद्रित अनुस्वार पत्रिका बहुत बढ़िया है। यदि एक-एक लेखक दस-दस प्रतियाँ भी लेता है और उन्हें पाठकों तक पहुँचाते हैं, तो इस पत्रिका के बारे में बहुत सी अच्छाइयाँ पता चलेंगी। संपादक और प्रकाशक का अभिनंदन करती हूँ।"

वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूख अफरीदी, राजस्थान मुख्यमंत्री के विशेष अधिकारी के अनुसार – "अनुस्वार पत्रिका एक धमाका है। भारत में आए दिन पत्रिकाएँ बंद होती जा रही हैं। ऐसे में यह अनुस्वार पत्रिका एक क्रांतिकारी पहल है। डॉ. संजीव कुमार जी ने अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया है। उन्होंने देशभर के लेखकों को जोड़ने वाले सेतु के रूप में काम किया है। लालित्य ललित का बहुपक्षी रंग प्रेम जनमेजय अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए उनका अतिथि संपादन श्रेष्ठ है। लालित्य ललित लेखन के प्रति समर्पित हैं। वे अपनी कर्मठता के बल पर रचनाधर्मिता की उपासना करते हैं। ललित जी देश और दुनिया को जोड़ने की अपार क्षमता रखते हैं। प्रेम जनमेजय और ललित दोनों एक-दूसरों को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। ललित जी पर केंद्रित यह अंक शानदार है।"

रांची से दिलीप तेतरबे जी के अनुसार – "ललित जी की कलम कलम नहीं है, वीडियो कैमरा है। वे साहित्यिक उत्पादन के चैंपियन हैं। पेट्रोल की बढ़ती कीमत की तरह उनकी साहित्यिक क्षमता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। उनका शब्द-भंडार विशाल है। अक्षर के आरंभकाल में उसके पास व्यंजन थे, स्वर नहीं था। इसे चिह्नित करना, ककहरा बनाना, भाषा बनाने का काम मनुष्य ने किया। ललित जी पर केंद्रित अनुस्वार के अंक का संपादन प्रेम जनमेजय ने कर इसे साहित्यिक परिमल दिया। शब्द और साहित्य को नया अर्थ देना मनुष्य का काम है। अनुस्वार इसी काम का समिष्टि रूप है। पत्रिका को पाठक, छात्रों, भाषाप्रेमियों तक पहुँचाना बहुत जरूरी है। आशा है अनुस्वार पत्रिका हिंदी साहित्य को सर्वोन्नत स्थान पर ले जाएगा।"

कार्यक्रम का सफल संचालन युवा और सक्रिय साहित्यकार रणविजय राव ने किया। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत तेलंगाना सरकार के हिंदी अकादमी सम्मान से सम्मानित युवा रचनाकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सक्रिय रचनाकार विवेकरंजन ने किया।

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