तत्पश्चात् परिचर्चा गोष्ठी के विषय- 'नई पीढ़ी के नव निर्माण में महिलाओं की भूमिका' विषय पर अपने विचार रखते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि स्त्री जननी है, जन्मदात्री है इसलिए संतान के व्यक्तित्व निर्माण में उसकी भूमिका उस दिन से ही प्रारम्भ हो जाती है, जिस दिन एक जीव उसके गर्भ में प्रवेश करता है। एक अजन्मे शिशु का संस्कार बोध उसके माता के गर्भ में आने से ही शुरू हो जाता है। धनुर्धारी अर्जुन और सुभद्रा पुत्र वीर अभिमन्यु की कथा तो हम सबने पढ़ी है कि कैसे अभिमन्यु ने माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह में घुसने की विधि जान ली थी लेकिन बाहर निकलने की नहीं जान पाए क्योंकि उनकी माता को निद्रा आ गई थी। गर्भस्थ शिशु को माता द्वारा सुनाई गई वीरगाथाएं, स्तुतियां और अन्य प्रेरणास्पद कथाएं उसके अवचेतन मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। यह बात अब तो वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रमाणित हो चुकी है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई पीढ़ी के नव निर्माण में महिलाओं की भूमिका काफी चुनौतीपूर्ण है। ग्लोबलाइजेशन के इस युग में जहां कदम-कदम पर चुनौतियां हैं, संघर्ष और प्रतिस्पर्धा है, ऐसी स्थिति में बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाना माता का ही कर्त्तव्य है। आज मोबाइल और लैपटॉप की एक क्लिक में पूरी दुनिया समाई हुई है। अपने बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स देने से पूर्व उन्हें उनका सही उपयोग कैसे करना है, यह बताना माता-पिता का कर्त्तव्य है, नहीं तो वे उसका दुरुपयोग करने लगते हैं और राह से भटक जाते हैं। आज की नौकरीपेशा महिलाओं को घर और बाहर दोनों जगह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ता है और इसी वजह से वे अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाती हैं। बहुतों के बच्चे तो आया के भरोसे पलते हैं, फिर उनमें आपके संस्कार कहां से आयेंगे? उन्हें सोचना चाहिए कि भौतिक सुख-सुविधाएं तो कभी भी जुटाई जा सकती हैं लेकिन बच्चे का बचपन वापस नहीं लौटाया जा सकता।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. बीना शर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में हमारी भूमिका कई गुना बढ़ गई है, हमें और अधिक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है। एक मां ही पिता और पुत्र के बीच सेतु का काम कर सकती है। आज की महिलाएं शिक्षित हैं, आत्मनिर्भर हैं लेकिन कुछ डिग्रियां लेकर चार पैसे कमाने से इंसान बड़ा नहीं हो जाता। हमें हमारी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए। एक गृहिणी की भूमिका को किसी भी दृष्टि से कम नहीं आंकना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आज हम मां को पूजने तो वैष्णोदेवी मंदिर जाते हैं लेकिन अपनी मां को प्रताड़ित करते हैं और उसे वृद्धाश्रम भेज देते हैं। इसके पीछे निश्चित रूप से हमारी परवरिश में कोई कमी रही होगी। हमें किताबें सिर्फ परीक्षा में पास होने के लिए नहीं पढ़नी चाहिए बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि परिचर्चा का विषय बहुत ही गम्भीर एवं ज्वलन्त है और इस परिचर्चा ने महिलाओं के कन्धों पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी डाल दी है। मैं यहां पर अध्यक्षीय वक्तव्य नहीं दे रही अपितु अपने मन की बात कह रही हूं।
अति विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित बैंगलुरू की प्रतिष्ठित कंपनी त्रिमूर्ति ग्रुप ऑफ कंपनीज की युवा डायरेक्टर सुश्री एकता चन्दन ने अपने उद्बोधन में कहा कि नई पीढ़ी के नव निर्माण में महिलाओं की भूमिका काफी अहम है। लड़कियों को आगे बढ़ने में दिक्कतें आती हैं, वे आने वाली पीढ़ी को न आएं, हमें इस बात का ध्यान रखना है। जैसे रुका हुआ पानी सड़ जाता है और बहता हुआ पानी स्वच्छ रहता है, उसी तरह हमारे जीवन में प्रवाह बना रहना चाहिए। विशेष आमंत्रित वक्ता के रूप में हरियाणा से विश्व भाषा अकादमी, गुरुग्राम की अध्यक्ष डॉ. बीना राघव ने कहा कि मां के सात्विक विचारों और भावनाओं का संतान पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जब हम खाना बनाते हैं तो उसमें हमारा प्यार छिपा रहता है, कोमल भावनाएं समाहित रहती हैं तो वह खाना सात्विक गुणों से भरपूर होता है। दूसरी ओर वही खाना जब एक आया गुस्से में आकर बनाती है तो उसका दुष्प्रभाव उसे खाने वाले पर पड़ता है। तभी तो कहा जाता है कि 'जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन'। उन्होंने कहा कि मां की गोद में सारा संसार पलता है। पैसे तो बाद में भी कमाए जा सकते हैं लेकिन संतति के व्यक्तित्व का निर्माण बाद में नहीं किया जा सकता।
कार्यक्रम में पधारी हुई एक और विशेष वक्ता हैदराबाद की प्रसिद्ध पोषण विशेषज्ञ डॉ. अंकिता गुप्ता ने अपने सम्बोधन में कहा कि ईश्वर ने महिलाओं को मातृत्व का वरदान दिया है। एक मां को नई पीढ़ी के नव निर्माण में तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, वे हैं- शिक्षा, संस्कार और स्वास्थ्य। शहरी क्षेत्र की महिलाओं को आगे बढ़ने के मौके अधिक मिलते हैं और ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को कम। इसीलिए शहरी क्षेत्र की महिलाएं उच्च पदों पर आसीन हैं। फिर भी आज महिलाएं हेल्थ कांशियस हैं और उनसे खान-पान के संबंध में सलाह लेती हैं। इसी तरह उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के खान-पान का ध्यान रखना चाहिए। कटक, उड़ीसा से विशेष वक्ता के रूप में जुड़ी प्रसिद्ध लेखिका और शिक्षिका रिमझिम झा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं शिवेन्द्र जी को एक सार्थक मुहिम चलाने के लिए बधाई देती हूं। उन्होंने कहा कि जीवन में विपदाएं तो आएंगी, आप उनसे डरिए मत। हवा के वेग को गुजर जाने दीजिए, फिर अपना वक्त भी आएगा। अपनी क्षमताओं और सीमाओं को पहचानिए, वही देखिए जो आपको देखना है।
कार्यक्रम में शामिल डॉ.आर सुमन लता ने पौराणिक उद्धरणों के माध्यम से अपनी बात रखी और मधुबाला कुशवाहा ने अपने अनुभवों को सबके साथ साझा किया। आर्या झा ने कहा कि आज की परिचर्चा में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है। साक्षी समाचार से जुड़े प्रसिद्ध पत्रकार के. राजन्ना ने कहा कि माताओं को अपने बच्चों को मातृभाषा के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी भाषाएं भी सिखानी चाहिए ताकि आगे चलकर उन्हें रोजगार प्राप्ति में कोई बाधा नहीं आए और कोई बच्चा बेरोजगार न रहे। प्रसिद्ध स्तम्भकार और पूर्व आईएएस अधिकारी श्री आर विक्रम सिंह, कोलकाता से प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुरेश चौधरी, विमल जैन, लक्ष्मण प्रसाद, चिरंजीव लिंगम, रुकिया प्रवीण, प्रदीप देवीशरण भट्ट, सविता मिश्रा, मंजुला दूसी, प्रो.अंजना गर्ग और रूपा मैती ने भी परिचर्चा गोष्ठी में भाग लिया। सरिता सुराणा ने शिवेन्द्र जी का विशेष आभार व्यक्त किया, जिनके सहयोग से एक विशेष परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। संगीता जी.शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
0 टिप्पणियाँ