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ना सुदामा ना कृष्ण बस भाव 





✍️माया मालवेन्द्र बदेका

जब भी अपने दादा के गाँव में हमारा जाना होता, वह तुरन्त ही हमारे यहां आ जाती .मेरी काकी जी गुस्से से उसे डाँटती -''क्यो री तू फिर आ गई ,तुझे क्या हवा बता देती है की ,बहन आई है।

वह मुस्कुराती कहती ,बस मुझे तो जीजी कों देखना है ।

काकी जी हर बार यही करती और वह हर बार मुझे मिलने जरूर आती ।काका जी समृद्ध ,वैभव शाली और वह बेचारी एकदम सामान्य । लेकिन उसका प्यार उसका भाव मुझे भी बहुत अच्छा लगता ।

मुझे भी उससे उतना ही प्यार ।मेरी और उसकी उम्र में बहुत फासला रहा पर मन आत्मा बहुत गहरे जुड़े ।

हर बार उसका आग्रह -'जीजी घर पधारो'

और हर बार की तरह मेरी काकी जी का उसे डाँटना ,तेरे घर क्यों आएगी जीजी ,चल जा यहां से ।में भावनात्मक रूप से उससे गहरे रूप से जुड़ती चली गई। .मुझे उसका बुलाना और मेरा न जाना मुझे अंदर से बहुत कचोटता । मेंने ठान लिया में राजुड़ी के घर जाउंगी ।

राजकुमारी नाम था और उसे सब 'राजुड़ी 'कहते ।

मेंने कहा चल 'राजुड़ी 'तेरे घर चलते है , यह सुनकर वह प्रसन्नता से उछल पड़ी और कसकर  मेरा हाथ पकड़ दौड़ने की कोशिश करने लगी की फिर मुझे कोई उसके घर जाने से रोक न ले ।में उसके साथ गई तुरन्त अपनी ओढ़नी के पल्लू से उसने पाट पोंछा, मुझे कहा- जीजी बैठो में चाय बनाऊं ।उसकी दस साल की उम्र  में  उसकी माँ उसे और तीन बहन भाई को छोड़ स्वर्गवासी हो गई ।यह अकेली छोटी सी बच्ची ,नितांत गरीबी ,न पढना लिखना न खेल कूद लेकिन समझदारी आश्चर्य में डालने वाली ।

उसने चूल्हे में  लकड़ी डाल कर आग़ जलाई ,कढाई में आटा डाला ।

मैने कहा ये क्या कर रही है वह बोली - आज मेरे घर सूरज उगा मेरी जीजी आई है तो हलवा खिलाउंगी ।

मेरे लाख मना करने पर भी वो नही मानी ।आटा डाला तेल और पानी डाल कर गुड़ डाल दिया सब मिलाया गरम  किया ।

फिर कही से चाय की तश्तरी लाई ,ओढ़नी के पल्लू से पोछा उसमे हलवा डाला और कहा की आप खाओ ये सब आपको खाना है । वह मेरे सामने बैठ गई। में उस पल को बयाँ नही कर सकती की उस नन्हे से लम्हें में मैंने जैसे पूरी जिन्दगी जी ली ।उसका भाव उसका प्यार आज अभी तक मेरे साथ है ।कितनी गहराई थी उस रिश्ते में यह आज भी महसूस होती है । अब वह बड़ी और में बुजुर्ग की श्रेणी में पर वह आज भी  गाँव आती है तो मुझे याद करती हैं  - जीजा कैसी है।

बड़े आयोजन ,समारोह ,उत्सव ,देश, विदेश में मेहमानी , आतिथ्य  सत्कार हार फूल सब कुछ पर उसकी आँखों का नेह  अभी भी  अन्तर्मन बसा मेरे! काश,  हर कोई प्रीत की रीत जान ले!

 

उज्जैन मध्यप्रदेश

 


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