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हिंदी भाषा, अधिकार और सम्मान



✍️राखी सरोज


हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। देश भर में प्रकाशित होने वाले पत्र-पत्रिकाओं की संख्या 1 लाख 14 हजार 8 सौ 20 है जिसमें सर्वाधिक संख्या हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं की है । भारतीय समाचार पत्र पंजीयन की भारतीय प्रेस-2016-17 रिपोर्ट के अनुसार देश में 46 हजार 587 हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य भाषाओं में अंग्रेजी का नंबर है जिसमें 14 हजार 365 पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है । 


हिंदी के पुस्तको में सिमट कर नहीं रह गई है। हमारे देश में आप हर जगह हिंदी को पाते हैं। दूरदर्शन की बात करें सबसे अधिक हिंदी भाषा में आने वाले कार्यक्रम और समाचार चैनल सहित अन्य कार्यक्रमों का भी प्रसारण हिंदी में मिलता है। हिंदी एक सरल और सहज भाषा है। यह भाषा वैज्ञानिक स्तर पर सब से सही है। इस भाषा में स्वर और व्यंजन दोनों के होने के कारण प्रत्येक वस्तु या स्थिति के लिए अलग अलग शब्द हैं। हिंदी में प्रत्येक शब्द को जैसा बोला जाता है वैसे ही लिखा जाता है, जिसके कारण शब्दों को समझने में समस्या नहीं आती हैं।


हिन्दी भारत में 10वी शताब्दी से बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा हमेशा अपने विकास के लिए अग्रसर रहीं हैं। हिंदी में मिलने वाला साहित्य बहुत ही अधिक है। यह भाषा जहां एक ओर प्रेम की मीठा सा को प्रदर्शित कर सकतीं है, वहीं दूसरी ओर समाज के वह गंभीर मुद्दे जिनका हमारे जीवन से जुड़ाव है उनको भी सभी के समक्ष रख सकतीं हैं।


इस सबके बावजूद भी आज हिंदी की स्थिति उस स्त्री की तरह हो गई है जो‌ अपने ही घर में पराई कहलाती है। हिंदी को राजभाषा होने का अधिकार तो है, किंतु राष्ट्रभाषा होने का अधिकार नहीं है। हिंदी में वह सभी खुबियां है जिसके चलते उसे राष्ट्रभाषा होने का अधिकार मिलना चाहिए। किंतु हिंदी को हमारे देश में कुछ उच्च पद बैठे लोगों के कारण यह स्थान नहीं मिल पा रहा है। अंग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ बनाएं रखने के लिए भारत में हिन्दी को उसकी जगह नहीं दी जाती है।


हमारे देश में भाषा का व्यापार बहुत पूराना है। हमारे देश में आप उच्च स्तर की शिक्षा में हिंदी का चयन तो कर सकते हैं किंतु आप के अध्यापक और साथी जन का सहयोग ना हो सकने के कारण आप अपनी पढ़ाई हिंदी में पूरी करने में कठिनाइयों का सामना करेंगे। इतना ही नहीं आप को नौकरी के लिए भी अंग्रेजी की परीक्षा देनी होगी। अंग्रेजी सीखने के नाम पर जगह-जगह चल रहा व्यापार हम सभी की जेबों को‌ खाली कर रहा है। ऐसे में हम एक दिन हिंदी के नाम कर खुद की आंखों में धूल झोंक रहे हैं और कुछ नहीं।


हिंदी हमारी मातृभाषा है। जब तक हम हिंदी को उसका स्थान नहीं देंगे। तब तक हम कैसे अपने देश के विकास को संभव बना पाएंगे। भारत में 75 प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती और समझती है, लेकिन फिर भी हम 20 प्रतिशत आबादी द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेजी को महत्त्वपूर्ण समझते है। हम एक पराई भाषा को वह अधिकार दें रहें हैं जो हमें अपने यहां की भाषाओं को‌ देना चाहिए। सरकारी या निजी किसी भी क्षेत्र में जा कर देखें हिंदी आप को बोलचाल में नाममात्र मिलेंगी और कार्य में कहीं भी नहीं। हिंदी को हम शिक्षा में केवल एक विषय बना कर रख देते हैं। जिसे एक समय तक पढ़ना ज़रुरी समझा जाता है। हिंदी भाषा से हम वैसा जुड़ाव ही नहीं महसूस करते हैं जैसा हमें अपने देश और राज्य से होता है। मातृभाषा केवल नाम के लिए बन कर रहने ‌वाली अपना अस्तित्व ख़ोज नहीं रहीं हैं। हम अपना अस्तित्व खो रहे हैं अपनी हिंदी से दूर हो कर।



*बदरपुर (नई दिल्ली)

 


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