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अकेलापन


✍️विजय जोशी 'शीतांशु'


प्रभात के जीवन की प्रभात उसके  अंशदाता के साथ आरम्भ हुई। प्रभात का समय उनके वात्सल्य में गुजरा। वक्त की रफ्तार ने प्रभात को सुबह और जीवन की दोपहर तक आते आते आत्मनिर्भर बना दिया था। जीवन के दोपहर की तेज रोशनी ने उसके सारे सपने साकार कर दिये थे। उसकी जीवन बगियाँ में हर रंग,रूप, आकार के फल फूल फिल उठे थे। प्रभात उन्हें पाकर बहुत खुश था। लेकिन जीवन की  शाम होते होते, उसकी बगियाँ के सारे पुष्प उसे छोड़ वैश्विक बाजारवाद की शिक्षा के साथ उसके जीवन से दूर हो चले गये थे। उसे अपनी व बच्चों की सफलता पर बड़ा गुमान हो रहा था। प्रभात को बड़ी जल्दी थी, जीवन को दौड़ में आगे निकलने की,सो वह निकल भी गया।  लेकिन प्रभात जीवन की सांझ व अंधियारी रात से अंजान था। जैसे ही सूरज ने करवट बदली। प्रभात के जीवन की सांझ ढल गई। जल्द ही रात का अंधेरा पसरने लगा। इस काले स्याह अँधेरे से लड़ने के लिए प्रभात अकेला पड गया था। प्रभात के जीवन में संध्या भी साथ छोड़ गई थी। प्रभात को अकेले  रात का सन्नाटा असहनीय लगने लगा। प्रभात का अकेलापन प्रभात को ही लील गया।


*महेश्वर,जिला खरगोन म प्र


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