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प्रतिभा का सबसे बड़ा दुश्मन हैं नेपोटिज्म



✍️दशरथ प्रजापत

अक्सर कहा जाता है कि 'किसी की प्रतिभा छप जाती हैं और किसी की छिप जाती हैं' लेकिन यथार्थ में बहुत सारी प्रतिभा को छिपा दिया जाता है। ये केवल एक क्षेत्र में नहीं होता है बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में होता हैं।  बॉलीवुड व राजनीति ने तो भाई भतीजावाद की नींव में सीमेंट डाल कर बहुत मजबूत कर दिया है।बहुत सारे नवयुवक अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नेपोटिज्म के कारण नहीं कर पा रहे हैं अथवा उन्हें उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है। इसके कारण वो अवसाद में चले जाते हैं और हानिकारक कदम उठा लेते हैं।

नेपोटिज्म को मिटाना बहुत ही मुश्किल हैं क्योंकि जो शीर्ष पर बेठे है वो नेपोटिज्म के कारण ही बेठे है तो फिर नेपोटिज्म को कैसे मिटा सकते हैं। हालांकि नामुमकिन नहीं हैं। एक दृष्टि से देखा जाए तो बहुत सारे व्यक्तियों ने नेपोटिज्म में होते हुए भी बहुत पसीना बहाकर अपने आप को क़ाबिल बनाया हैं। बहुत लोगों ने नेपोटिज्म की कोई परवाह किए बिना अपना कॅरियर बनाया और बहुत बड़े बड़े पद हासिल किए।इसलिए खुद को इतना क़ाबिल बना दो की किसी भी तरह का नेपोटिज्म आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके।फिर भी प्रतिभा को उचित स्थान नहीं मिलने पर उनके अंदर का जुनून समाप्त हो जाता है और भविष्य की चिंता उन्हें अवसाद तक ले जाती हैं। 

राजनीति के पंजे भी पूर्ण रूप से नेपोटिज्म में लिप्त हो चुके हैं जो देश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। राजनीति एक नेतृत्व करने की सत्ता हैं पर जब इसमें नेतृत्व करने वाला ही असक्षम होगा तो फिर गम्भीर समस्या पैदा हो सकती हैं। जहां तक नेपोटिज्म की बात करें तो कभी कभी लगता है कि इसमें परीक्षा से पहले परिणाम सुरक्षित हो जाता हैं।आज के परिदृश्य में जहां भी देखों भाई - भतीजावाद अपनी नींव को मज़बूत करने में लगा हुआ है बहुत क्षेत्रों में नींव की मंज़िल भी बना दी गई हैं। अल्प बुद्धी वाले व्यक्ति का किसी बड़े स्तर पर पहुंचने में नेपोटिज्म का ही प्रमुख सहारा होता हैं।

राजनीतिक नेपोटिज्म देश के लिए ख़तरनाक साबित हो रहा है तुच्छ सोच वाला व्यक्ति जब शीर्ष पर पहुँच जाता है तब देश का गर्त में जाना अवश्यंभावी हैं। 

यहाँ पर कुछ नेपोटिज्म अथवा अन्य कारणों से मनुष्य के अवसाद को दूर करने के कुछ उपायों की बात की गई हैं। आधुनिकता का परिवेश मर्यादित जीवन को कोसों दूर ले जा रहा है।एक ओर जहां लोगों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर रिश्तों में बढ़ता खालीपन लोगों को अवसाद की ओर धकेलता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति सिर्फ मानसिक तौर पर ही परेशान नहीं होता, बल्कि वह स्वयं को शारीरिक रूप से भी परेशान करता है। इतना ही नहीं, इसके कारण कई बार व्यक्ति की जान पर भी आफ़त आ जाती है।आज मनुष्य छोटी छोटी बातों को लेकर चिंतित हो उठता हैं। संयम और धैर्य से कोसों दूर मनुष्य ने स्वार्थ के सभी रास्तों में जाकर खुद को तनावग्रस्त पाया हैं। अब मनुष्य की अल्प बुद्धी ने इस बीमारी को मानसिक रूप से विकसित तो कर लिया लेकिन इससे निजात पाना नहीं सीखा। अवसादग्रस्त व्यक्ति अपनी समस्त अच्छाइयों को भूल जाता हैं और बुराईयां का अपने मानसिक पटल पर पहाड़ पैदा कर देता है। 

अवसाद से लड़ने के लिए जरूरी है कि आप खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाएं। इसमें मेडिटेशन और एक्सर्साइज आपकी बहुत मदद कर सकते हैं। व्यायाम आपको सिर्फ शारीरिक रूप से ही स्वस्थ नहीं रखता, बल्कि यह आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही जरूरी है। आजकल लोग अपने काम में इतने बिजी हो जाते हैं कि वह खुद को आराम देना जरूरी ही नहीं समझते। लेकिन ये छोटी सी बात आपको अवसाद की ओर ढकेल सकती हैं।  आज के समय में लोगों के पास अपने रिश्तों के लिए समय ही नहीं है। ऐसे में धीरे−धीरे व्यक्ति को अकेलापन सताने लगता है और फिर व्यक्ति अवसादग्रस्त हो जाता है।परिवार के साथ भी समय व्यतीत करें।  लेकिन आज की स्थिति को यथार्थ में देखा जाए तो मनुष्य का प्रकृति के साथ अत्याचार करना शरीर को मानसिक और शारीरिक रूप से गर्त में ढकेलना सिद्ध हो रहा हैं।

अनायास सब कुछ प्राप्त करने की चाह रखने वाले मनुष्य ने प्रकृति की नींव तक में प्रहार कर दिया है मनुष्य का अवसादग्रस्त होने का मुख्य कारण प्रकृति के खिलाफ़ कार्य करना हैं। उन्मुक्तता पक्षियों के लिए स्वर्ग होती है, मनुष्य के लिए यह कार्य संस्कृति करती है। अतः मनुष्य को शांत स्वभाव से प्रकृति की समस्त क्रियाविधि में सहायक बनकर खुद को अवसादग्रस्त होने से रोकना होगा। 

अब निष्कर्ष में यह प्रश्न अनवरत दिमाग में आ रहा हैं कि नेपोटिज्म को कैसे समाप्त कर सकते हैं? इसके लिए सर्वप्रथम हरेक उस क्षेत्र, जहां नेपोटिज्म से प्रतिभा का शिकार हो रहा हैं, में एक व्यावहारिक और व्यवस्थित तरीके से परीक्षा का आयोजन कराया जाए,लेकिन यहाँ एक बात और सामने आती हैं कि परीक्षा का परिणाम तो वो पहले ही सुरक्षित कर सकते हैं, तो इसके लिए एक प्रबंध ये करना पड़ेगा कि उनकी परीक्षा नेपोटिज्म के शिकार हुए प्रतिभावान व्यक्तियों के द्वारा ली जाए ताकि वो खुद का संघर्ष याद करते हुए भावी पीढ़ी के भविष्य का ध्यान रख सकें। 

राजनीति में तो हर हाल में परीक्षा का होना जरूरी है क्योंकि यहां पर तो देश का सम्पूर्ण वर्तमान और भविष्य विराजमान हैं। 

एक अन्य बात जब तक माता-पिता और बच्चे, चाचा-भतीजा और समाज, सभी मिलकर भाई- भतीजावाद को नकारते नहीं हैं और निजी रुचि तथा प्रतिभा को सम्मान नहीं देते हैं तब तक भारत के पेशेवर लोगों के परिदृश्य में बहुत अधिक बदलाव नहीं देखा जा सकेगा और बहुत सारी छिपी हुई प्रतिभा लोगों के सामने नहीं आ पाएँगी।

अतः देश की प्रतिभा को आगे लाने के लिए नेपोटिज्म जैसी तुच्छता को नकारना होगा और देश का भविष्य बुद्धिजीवी और प्रतिभावान व्यक्तियों के द्वारा सुरक्षित करना होगा। 

 

*पथमेड़ा, जालोर (राजस्थान)

 


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