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किन्नर केन्द्रित आलोचना-विमर्श पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार 



मुंगेली। किन्नर आलोचना विमर्श पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार- डॉ.विनय कुमार पाठक के प्रथम प्रामाणिक किन्नर केंद्रित "किन्नर विमर्श: दशा एवं दिशा" आलोचना ग्रंथ का विमोचन एवं चर्चा संगोष्ठी अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् बिलासपुर द्वारा आयोजित किया गया । 

डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला, विभागाध्यक्ष हिन्दी, वर्सा विश्वविद्यालय (पोलैण्ड) ने मुख्य अतिथि के रूप में वक्तव्य में कहा- बहुत दिनों  बाद ऐसा ग्रंथ पढ़ने को मिला, जिसकी समीक्षा करते हुए उन्हीं के शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है । यह ग्रंथ गीता ही है जो विमर्श के लिए मील का पत्थर प्रमाणित हुआ है । 21वीं सदी के दो नव्य‌ विमर्शों पर सार्थक समीक्षा करके डॉ पाठक अत्यंत महत्वपूर्ण हो गए हैं । सारस्वत अभ्यागत प्रो. डॉ. मोहकांत गौतम, पूर्व कुलपति (नीदरलैंड) ने कहा-  डॉ. पाठक ने किन्नर विमर्श पर इतना महत्वपूर्ण कार्य किया है कि इसका अंग्रेजी, फ्रांसीसी एवं  स्पेनिश में अनुवाद होने चाहिए, जिससे वहां के लोगों को भी इस देश के किन्नरों की वास्तविकता से अवगत किया जा सके । दूसरे  देशों की किन्नरों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करके जो भी अच्छा हो उसे आदान-प्रदान करना भी इस विमर्श के वैश्विक फलक के दृष्टि से उपादेय होगा ।

प्रमुख वक्ता उपन्यासकार एवं समाजसेवी श्री महेंद्र भीष्म, निबंधक सह प्रधान न्यायपीठ सचिव उच्च न्यायालय इलाहाबाद, लखनऊ पीठ ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि डॉ. पाठक ने मौलिक समीक्षात्मक कृति लिखकर विमर्श को उत्कर्ष पर पहुंचा दिया है । उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक ने किन्नर शब्द को स्थापित करके और उसके पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भों के प्रमाण देकर 'गागर में सागर' भरने का प्रयास किया है । किन्नर शब्द के प्रचलन को मैं भी सार्थक मानता हूं तथा हिजड़ा शब्द के प्रयोग को खारिज करता हूं । डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, राजकीय मॉडल डिग्री कॉलेज  (अरनियां- बुलंदशहर) ने कहा कि डॉ पाठक का प्रस्तुत ग्रंथ किन्नर साहित्य इतिहास को उसकी पीठिका के साथ प्रस्तुत करने का उत्कृष्ट उद्दम है । उन्होंने कविता केंद्रित अध्याय को अत्यंत महत्वपूर्ण निरूपित करते हुए मौलिक उद्भावना का प्रतीक निर्दिष्ट किया । प्रो. डॉ. राहुल मिश्रा, केन्द्रीय बौद्ध संस्थान (लेह- लद्दाख) ने कहा कि भारतीय समाज ने किन्नर को कभी भी अपमानित नहीं किया ।‌ किन्नौर से जुड़े किन्नर अलग-  अलग विषय है । इसे एक में मिलाने से आक्रोश पनपता है । हिजड़ा शब्द हिकारत का द्योतक है, अतः डॉ.  पाठक द्वारा निर्दिष्ट 'लैंगिक विकलांगता या विकृति' से समस्या का निदान हो जाता है ।

डॉ चंद्रशेखर सिंह, विभागाध्यक्ष हिंदी (मुंगेली) ने डॉ.पाठक की मौलिक और अद्वितीय आलोचना ग्रंथ का टिप्पणी करते हुए कहा कि- यह ग्रंथ किन्नर आलोचना का नया और‌ मानक ग्रंथ सिद्ध हुआ है, जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा थी और इस अभाव की पूर्ति डॉ. पाठक जैसे समर्थ और प्रज्ञावान समीक्षक से संभव थी । अध्यक्षता की आसंदी से उद्बोधित उदगार के उपक्रम में डॉ. पाठक ने कहा कि-  किन्नर शब्द सांस्कृतिक इतिहास का द्योतक है, अतः इसका प्रचलन ही इस विमर्श को उत्कर्ष पर पहुंचा सकता है । उन्होंने कहा निरअपराध किन्नर संतान को अपमानित करने, निष्कासित करने और संपत्ति के अधिकार से बेदखल करने वाले अभिभावकों पर जिस दिन दंडात्मक कार्यवाही शुरू हो जाएगी, विमर्श अपने ध्येय पर सफल हो जाएगा । कार्यक्रम के आरंभ में श्री मदन मोहन अग्रवाल, राष्ट्रीय महामंत्री,  अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् ने आस्था मंत्र पठन,  स्वागत भाषण एवं विषय प्रवर्तन करते हुए 21वी सदी के दो नव्य विमर्शों  की आवश्यकता को युग की मांग निरूपित किया । इस कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. नीना शर्मा (आनंद- गुजरात) ने किया तथा तकनीकी होस्ट के रूप में श्री श्याम लाल मौर्य ने वेब का व्यवस्थित संचालन किया । प्रतिक्रिया/ प्रश्नोत्तर में डॉ. अनिता सिंह (व्याख्याता-बिलासपुर) ने विचार रखा ।  श्री राजेंद्र अग्रवाल 'राजू',  राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् ने आभार प्रदर्शन किया । 

 


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