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भगवान और भिखारी



✍️विनय मोहन 'खारवन'


धार्मिक प्रवृत्ति के राम लाल हर रोज साईकल से उस शिव मंदिर में पूजा करने आते थे। मंदिर के सामने ही एक भिखारी बैठता था। जिसे राम लाल रोज एक रुपया देता था। ये नियम सा बन गया था। उस दिन भी रामलाल साईकल से घर से चला, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही साईकल में पंचर हो गया।साईकल को पैदल ही लेकर पंचर की दुकान तक पहुंचा।पंचर लग गया। पैसे जेब से निकालने लगे तो पता चला पर्स ही घर रह गया।अब क्या करें। दुकानदार को सारी बात बताई पर दुकानदार नही माना। रामलाल ने इधर उधर देखा, सामने भिखारी पर नज़र पड़ी। भिखारी रामलाल को ही देख रहा था। रामलाल भिखारी के समीप गया। भिखारी ने बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे रामलाल को दस का नोट थम दिया। रामलाल समझ गया कि ये भिखारी सब देख चुका है। भिखारी नीचे मुँह करके अपना कटोरा खड़काने लगा। रामलाल ने दुकानदार के पैसे दिए व मंन्दिर की ओर बढ़ गया।मंदिर के अंदर भोलेनाथ की मूर्ति को देखा तो मुस्कराते नज़र आये।बाहर भिखारी की और देखा तो वहां भी वहीं मुस्कराहट थी।


*जगाधरी

 


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