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आज के वरिष्ठ नागरिक



✍️राजेंद्र श्रीवास्तव


अभी जो वरिष्ठ नागरिक हैं,वे बीसवीं शताब्दी के मध्य में पैदा हुए लोग हैं,भारत की आज़ादी के आसपास के।उस समय जो दुनिया थी,और आज जो दुनिया है,इसमें बहुत कुछ बदल गया है।रहन सहन,बात व्यवहार,जीवन मूल्य और संचार सुविधाएँ।


हमारे हमउम्र देखते देखते बच्चे से बूढ़े हो गए और अपने अतीत की यादों को दिल में संजोये कभी आँसू बहा लेते हैं,कभी मुस्कुरा देते हैं।पुरानी यादें दिमाग़ में उसी तरह घूमती रहती हैं,जैसे कल की बात हो।पुरानी यादों की फ़िल्म चलती रहती है,और हम बैठ कर देखते रहते हैं।इस फ़िल्म को देखने सिनमा हॉल नहीं जाना पड़ता,टिकट नहीं कटानी पड़ती।इस फ़िल्म को ना देखना चाहो तो भी देखनी पड़ती है,क्योंकि पिक्चर अभी लगातार चालू है।


आज के बच्चों और नौजवानों को पता ही नहीं होगा कि उस ज़माने के संयुक्त परिवारों का क्या आनंद होता था।तब हर घर में 5-6 बच्चे होना सामान्य बात थी।स्कूल सरकारी होते थे।स्लेट पेन्सल लेकर टाट पट्टी में बैठ कर पढ़ने की तो आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते।पढ़ाई में कोई प्रतियोगिता नहीं थी,जो जहाँ तक पढ़ना चाहे प्रवेश मिल जाता था।टूइशन वही बच्चे पढ़ने जाते थे,जो पढ़ाई में कमज़ोर होते थे।कैल्क्युलेटर भी नहीं थे,इंजनीरिंग कॉलेज में भी लॉग टेबल और स्लाइड रूल से बड़े बड़े कैल्क्युलेशन होते थे।फ़ोटो कापी एक कल्पना थी। घरों में लकड़ी का चूल्हा या कोयले की सीडी जलती थी,गैस तो 1970 के बाद सामान्य लोगों को उपलब्ध हुई। मनोरंजन के लिए केवल रेडीओ और सिनमा।


लोग टेलिविज़न और मोबाइल  के बिना भी ख़ुशी का जीवन जीते थे। घर के कामों के लिए,मिक्सी,वॉशिंग मशीन ,फ़्रिज , माइक्रोवेव नहीं थे। रोक सुबह शाम चाय नहीं बनती थी। टेलेफ़ोन बहुत कम घरों में होते थे।दूसरे शहर में बात करने के लिए ट्रंक काल लगाकर घंटों इंतज़ार करना पड़ता था , टेलीफ़ोन एक्सचेंज के चक्कर लगाना होता था। टेलिविज़न 1980 के बाद आया,जब राकेश शर्मा पहली बार अंतरिक्ष में गए थे,तो लोगों ने देखा।पर तब भी केवल दूरदर्शन आता था।हर घर की छत पर अंटीना लगा होता था,कार्यक्रम सही ना दिखने पर लोग ऊपर जाकर उसकी दिशा ठीक करते थे। सामान्यतः दो कार उपलब्ध थी,फ़ीयट और ऐम्बैसडर।1985 में मारुति आइ तब विदेश जाना जीवन कि बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। पर महँगाई के लिए तब भी उतना ही रोते थे।पेट्रोल का भाव जब 3/- से 3.30 किया गया तो एकदम से 10% बढ़ने के कारण तहलका मच गया,तब मेरे एक मित्र बोले कि अपनी ज़िंदगी में शायद 10/- लीटर में पेट्रोल भराना पड़ेगा। उस समय अनाज का उत्पादन कम था,1965में खाद्य समस्या के हल के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सोमवार शाम को उपवास रखने की सलाह दिए थे अब  जनसंख्या ढाई गुणी हो गई पर कहीं भी अनाज , दूध ,फल , सब्ज़ी की समस्या नहीं दिखती,यह बड़ी उपलब्धि है देश की।


*दुर्ग


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