✍️रश्मि वत्स
आज के युग में मोबाइल उतना ही जरुरी है जितना की खाना पानी ।आप एक टाइम बिना भोजन के व्यतीत कर सकते हैं परंतु मोबाइल केे बिना बिल्कुल भी नही ।और रही सही कसर इस करोना संकट ने पूरी कर दी ।मोबाइल के अतिरिक्त हमारे पास अब कोई और विकल्प रह ही नही गया है जिससे हम एक दूसरे से जुड़ सकें ।इस करोना संकट ने हर तरह से मानव को नुकसान पहुंचाया है फिर चाहे वो व्यापार हो,अर्थव्यवस्था पर लटकती तलवार हो या शिक्षा क्षेत्र हो ।करोना संकट की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो समस्याएं इससे उत्पन्न हुई हैं उनका पैरी हल ढूंढ पाना असंभव सा प्रतीत होता है।सबसे अधिक खामियाजा शिक्षा क्षेत्र को भुगतना पड़ रहा है।जहाँ अप्रैल में नए सत्र का शुभारंभ हो जाता था वहाँ क्या स्थिति है ये हम सभी को ज्ञात है।बच्चों की शिक्षा का माध्यम अब केवल मोबाइल बनकर रह गया है।निजी स्कूलों ने अपनी फीस वसूली की चिंता के चलते बच्चों को मोबाइल के जरिए पढ़ाई का विकल्प निकाल लिया है।करोना वायरस ने पढ़ाई को डिजिटल बना दिया है ।
सवाल यह आता है कि क्या वाकई बच्चों का डिजिटल पढ़ाई का माध्यम सही है ।बच्चों को सही से समझ आ रहा है,बच्चे कुछ सीख भी पा रहे हैं या नही ।शिक्षण सामग्री ठीक तरह से उन तक पहुंच भी पा रही है या नही ये विचार्णिय योग्य कथन है ।सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभिवाकवों के पास केवल एक मोबाइल फोन है और घर में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक ।अब एक ही समय में सभी की पढ़ाई हो पाना मुश्किल है।इस प्रकार से बच्चों के लिए मोबाइल शिक्षा प्राप्त कर पाना मुश्किल हो जाता है ।दूसरा शहरों और गावों में नेटवर्क की असुविधा का होना और शिक्षा में अवरुद्ध उत्पन्न करता है ।दूसरा बच्चों की सेहत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।जो अभिवाकव बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते थे वो मजबूरी वश उन्हें मोबाइल उपलब्ध करा रहे हैं क्योंकि इसके अलावा और कोई विकल्प रह ही नही गया है ।मोबाइल शिक्षा में सहयोग तो देता है और इस करोना काल में इसका महत्व और भी बढ़ गया है परंतु इसके दुश्प्रभावों से आप और हम भलीभांति परिचित भी हैं ।शिक्षा प्राप्त करने का और दूसरा कोई भी विकल्प अब इसके अलावा रह नही गया है हमारे पास। अब हम लोगों को ही मिलकर यह तय करना है कि यह सही है या गलत ।
*मेरठ(उत्तर प्रदेश)
आज के युग में मोबाइल उतना ही जरुरी है जितना की खाना पानी ।आप एक टाइम बिना भोजन के व्यतीत कर सकते हैं परंतु मोबाइल केे बिना बिल्कुल भी नही ।और रही सही कसर इस करोना संकट ने पूरी कर दी ।मोबाइल के अतिरिक्त हमारे पास अब कोई और विकल्प रह ही नही गया है जिससे हम एक दूसरे से जुड़ सकें ।इस करोना संकट ने हर तरह से मानव को नुकसान पहुंचाया है फिर चाहे वो व्यापार हो,अर्थव्यवस्था पर लटकती तलवार हो या शिक्षा क्षेत्र हो ।करोना संकट की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो समस्याएं इससे उत्पन्न हुई हैं उनका पैरी हल ढूंढ पाना असंभव सा प्रतीत होता है।सबसे अधिक खामियाजा शिक्षा क्षेत्र को भुगतना पड़ रहा है।जहाँ अप्रैल में नए सत्र का शुभारंभ हो जाता था वहाँ क्या स्थिति है ये हम सभी को ज्ञात है।बच्चों की शिक्षा का माध्यम अब केवल मोबाइल बनकर रह गया है।निजी स्कूलों ने अपनी फीस वसूली की चिंता के चलते बच्चों को मोबाइल के जरिए पढ़ाई का विकल्प निकाल लिया है।करोना वायरस ने पढ़ाई को डिजिटल बना दिया है ।
सवाल यह आता है कि क्या वाकई बच्चों का डिजिटल पढ़ाई का माध्यम सही है ।बच्चों को सही से समझ आ रहा है,बच्चे कुछ सीख भी पा रहे हैं या नही ।शिक्षण सामग्री ठीक तरह से उन तक पहुंच भी पा रही है या नही ये विचार्णिय योग्य कथन है ।सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभिवाकवों के पास केवल एक मोबाइल फोन है और घर में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक ।अब एक ही समय में सभी की पढ़ाई हो पाना मुश्किल है।इस प्रकार से बच्चों के लिए मोबाइल शिक्षा प्राप्त कर पाना मुश्किल हो जाता है ।दूसरा शहरों और गावों में नेटवर्क की असुविधा का होना और शिक्षा में अवरुद्ध उत्पन्न करता है ।दूसरा बच्चों की सेहत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।जो अभिवाकव बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते थे वो मजबूरी वश उन्हें मोबाइल उपलब्ध करा रहे हैं क्योंकि इसके अलावा और कोई विकल्प रह ही नही गया है ।मोबाइल शिक्षा में सहयोग तो देता है और इस करोना काल में इसका महत्व और भी बढ़ गया है परंतु इसके दुश्प्रभावों से आप और हम भलीभांति परिचित भी हैं ।शिक्षा प्राप्त करने का और दूसरा कोई भी विकल्प अब इसके अलावा रह नही गया है हमारे पास। अब हम लोगों को ही मिलकर यह तय करना है कि यह सही है या गलत ।
*मेरठ(उत्तर प्रदेश)
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