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गुरु- शिष्य परम्परा



*उर्मिला शर्मा

गुरु की महत्ता प्राचीन काल से सर्वोपरी रही है। 'गुरु- गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय।'- पंक्तियां गुरु महिमा की प्रमाण हैं । भारतवर्ष एकलव्य- द्रोणाचार्य व गुरुभक्त आरुणि की कथा वाला देश है। पर वर्तमान में दोनों में से कुछ लोग अपनी पूर्व परम्परा की छवि को धूमिल करते नजर आते हैं। वे अपनी मर्यादाओं को लांघने में नहीं झिझकते। इस क्षेत्र में शिष्य से ज्यादा दायित्व गुरु का बनता है क्योंकि गुरु श्रेष्ठ है और अनुकरणीय भी। अगर वह क्षुद्र हित को त्याग कर्तव्यनिष्ठता के साथ छात्र के साथ स्नेहिल व्यवहार करेगा तो निश्चित ही उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। समाज में एक शिक्षक का बड़ा ही दायित्वपूर्ण और सम्मानजनक भूमिका होती है। वह देश के भविष्य बच्चों का गुरु होता है। इस बात को उसे गम्भीरता पूर्वक समझना होगा। साथ ही हम अभिभावकों को भी एक शिक्षक को समुचित सम्मान देकर बच्चों में यह संस्कार भरना चाहिए।

*हज़ारीबाग झारखण्ड


 


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