*रामगोपाल राही
भारतीय संस्कृति में उत्तम ,
गुरु शिष्य की परंपरा |
गुरु शिष्य के संबंधों से,
पावन थी यह वसुंधरा ||
ज्ञान का दाता भाग्य विधाता ,
सद् गरू मिलना मुश्किल है |
गुरु मिले तो ज्ञान मिले सच ,
दोनों मिलना मुश्किल है ||
आज गुरु की गरिमा घट गई ,
पहले जैसी बात नहीं |
जीवन शैली शिष्यों की भी ,
बदल गई वो बात नहीं ||
ईश्वर के प्रतिरूप गुरु ,
पाते थे सम्मान बड़ा |
चरित्रवान गुणवान गुरु का ,
घर घर में था मान बड़ा ||
निर्मल जीवन शैली वाले ,
गुरु अनोखे होते थे |
शिष्यों के हित साधन में ही ,
रहते वक्त ना खोते थे ||
नकली गुरु के रुप अनेकों ,
ठौर ठौर पर मिलते हैं |
कहीं पर देखो अपवादों से ,
घिरे गुरु भी मिलते हैं ||
ढोंगी साधु छले अनेकों ,
कैसे-कैसे ग्रुरू कहें |
वैभव के गुलाम अधिकतर ,
मन ना माने गुरु कहें ||
चार वेद के ज्ञाता खुद को ,
मान भागवत कथा करें |
गुरु बता कर खुद अपने को ,
भेंट अनेकों लिया करें ||
ज्ञान दीक्षा व मोक्ष का सच ,
पथ गुरू बतलाता था |
सच्चा गुरु शिष्य का समझो
पथ प्रदर्शक होता था ||
अंधे गुरु के अंध चेले ,
ज्ञान मिले तो कहाँ मिले |
हो दोनों का पतन मान लो ,
नैतिक पथ -छोड़ चले||
पहले जैसे गुरु वस्तुतः
आज खोजना मुश्किल है
जगा चेतना दे शिष्यों में ,
गुरु का मिलना मुश्किल है ||
गुरु पर्व पर गुरुओं का ,
सम्मान हुआ करता था |
सर्व समाज गुरुओं से ही
सच ज्ञान लिया करता था ||
*पो0लाखेरी,जिला बूँदी (राज)
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