*श्रीराम माहेश्वरी
आदिकाल से ही योग का महत्व सर्वविदित है। वेदों और उपनिषदों में भी योग और ध्यान की विस्तृत व्याख्या की गई है । भारत में प्राचीनकाल में गुरुकुल में वैदिक शिक्षा दी जाती रही है। योग और ध्यान इस शिक्षा के अंग रहे हैं। मनुष्य योनि में ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान है- योग। जो व्यक्ति योग, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यस्त होता है, उसका संपूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास हो जाता है। योग के विभिन्न अंगों का अभ्यास करते करते मनुष्य एक दिन आत्म साक्षात्कार का भी पात्र बन जाता है। योग का संबंध केवल व्यायाम तक सीमित नहीं है। यह हमें आचरण और व्यवहार में बदलाव भी सिखाता है। योग के अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा , ध्यान और समाधि । योग के इन अंगों का पालन करने हेतु योग्य शिक्षक का मार्गदर्शन लेना चाहिए।
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि हमें योग क्यों करना चाहिए। कुछ लोग व्यायाम के लिए योग करते हैं और कुछ लोग मानसिक शांति के लिए । व्यायाम के लिए हम शीर्षासन, सर्वांगासन हल्लासन, भुजंगासन तथा सुप्त वज्रासन कर सकते हैं। मानसिक शांति के लिए आसन है - सिद्धासन , स्वस्तिका सन, समासन और पद्मासन।
योग के इन आसनों के विषय में कई लोगों को भ्रम होता है। जैसे कि यह आसन उनके लिए उचित है या नहीं। हमें कौन से आसन करना चाहिए और कौन से नहीं। इस बारे में उत्तर है कि व्यक्ति पहले अपने उद्देश्य का स्मरण करें । पहले उसे यह विचार करना होगा कि योग के द्वारा वह किस पड़ाव या स्थिति तक पहुंचना चाहता है। योग के आसन मुख्य रूप से तीन तरह से व्यक्ति को लाभ पहुंचाते हैं। पहला शारीरिक, दूसरा मानसिक और तीसरा है- आध्यात्मिक। व्यक्ति को योग से लाभ कई बातों पर निर्भर करता है । पहले उसे यह देखना होगा कि उसका भोजन आहार कैसा है। उसकी दिनचर्या कैसी है । उसका एकाकी जीवन है या वह गृहस्थ है । आयु और पारिवारिक दायित्व पर भी विचार करना चाहिए। योग के लिए यह आवश्यक है कि वह सात्विक हो । शाकाहारी हो। उसका भोजन अल्प और संतुलित होना चाहिए । उसकी सोच सकारात्मक हो । विचारों में पवित्रता हो। योग अभ्यास के लिए शांत स्थान होना चाहिए । सबसे अच्छा है एकांत। स्थान ऊंचा हो और वहां का वातावरण शुद्ध हो। किसी नदी का तट वैसे सबसे उपयुक्त होता है परंतु गृहस्थ के लिए घर में ही किसी कमरे का चयन करना चाहिए । यह कमरा शांत और हवादार हो। योग के आसन सुबह और शाम को किए जा सकते हैं।
योग से जुड़कर मनुष्य के विचारों में रूपांतरण होने लगता है। मन में सत्य, अहिंसा, करुणा, दया और समानता जैसे गुणों का उद्भव होता है। यह सच है कि दुनिया में आनंद और खुशी से बढ़कर कोई भी चीज अनमोल नहीं है और योग से ये दोनों हमें सहज रूप से मिल जाते हैं। आप अनुभव करेंगे कि योग का साधक सदैव एक अलग तरह के आनंद में डूबा रहता है। इस तरह की प्रसन्नता ही साधक की सबसे बड़ी जीवन की सफलता है। योग के साधक को दूसरा सबसे बड़ा लाभ होता है चारित्रिक। योग के दौरान उसके आचरण में बदलाव आता है । बचपन में मिले संस्कार ही उसका आचरण कर्म बन जाते हैं। उसकी चाहत सदैव धर्म मार्ग पर चलने की हो जाती है । धर्म का अर्थ है -- धारण करना । मनुष्य के अंतः करण में सदाचरण, सद्विचार और नीति मार्ग पर चलने की प्रेरणा होना ही धर्म है। धर्म का क्षेत्र बहुत व्यापक है। उसे पूजा और उपासना तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है।
योग का सबसे बड़ा लाभ यह है, कि इससे हमारे शरीर में स्थित नाड़ियों का शोधन हो जाता है। नाडियों के शोधन से स्नायु तंत्र मजबूत होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। फेफड़ों और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है । शरीर में यह नाडियां मूलाधार से शुरू होकर मेरुदंड के अंदर मस्तिष्क तक जाती हैं। इडा, पिंगला और सुषुम्ना तीन प्रमुख नाडिया बताई गई हैं। कुंडलिनी जागरण के लिए इन तीनों का संतुलन आवश्यक होता है। सिद्ध योगीजन योग के तप से शरीर में स्थित सातों चक्रों का भेदन कर लेते हैं । ऐसे साधक की दृष्टि आंतरिक हो जाती है और एक दिन उसे आत्म साक्षात्कार भी हो जाता है। वास्तव में योग एक दिव्य अनुभूति है, जिसे साधक ही अनुभव कर सकता है।
*भोपाल (म.प्र.)
(लेखक 'मानव जीवन और ध्यान' पुस्तक के लेखक एवं पर्यावरणविद् हैं)
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