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यह कैसा पड़ाव




*मीरा सिंह 'मीरा'
प्यार है ना सद्भाव है
यह कैसा पड़ाव है।

दर्द सा दिल में होता है
महसूस सबको होता है ।
महफिल के कहकहों में
दिल छिप छिपकर रोता है।।
स्नेह में पगे बोल नहीं है,
संवेदनाओं का अभाव है।

अपने भी अपनों से अब
खींचे -खींचे से रहते हैं ।
एहसासों के पर भी
कुतरे हुए से लगते हैं ।।
रिश्तो के नाम पर यूं
मिलता नित नया घाव है।

सुख दुख  साथ बांटे
कहां हैं वो रिश्तेनाते ।
खुशियों के मौसम में
दर्द होठों पर मुस्काते।।
दो घड़ी जहां थे सुस्ताते
गया कहां वह छांव है।

गर्मियों का मौसम है
रिश्तो पर बर्फ जमी है।
अपने ही साए से मीरा
सहमा हर आदमी है
न एहसासों में गर्मी जरा
न अपनेपन का अलाव है।
यह कैसा  पड़ाव है?
*डुमरांव जिला बक्सर बिहार


 


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