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विश्ववाणी हिंदी संस्थान का आत्मावलोकन पर्व 



जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर की प्रतिष्ठित संस्था विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के 30 वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान आत्मावलोकन पर्व के अंतर्गत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्ति 'हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी' को केंद्र में रखकर वर्तमान परिपेक्ष्य में विचारोत्तेजक विमर्श संपन्न हुआ। विमर्श का श्री गणेश शारद-पूजन तथा बुंदेली भाषा-साहित्य की विशेष हस्ताक्षर प्रभा विश्वकर्मा 'शील' द्वारा बुंदेली महाकवि ईसुरी तथा स्वयं द्वारा रचित चौकड़ियों में सरस्वती वंदना के गायन से हुई। संस्था तथा कार्यक्रम के संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए 'मैं' और 'तुम' को 'हम' में विलीन कर, 'स्व' को 'सर्व' में विलीन कर समष्टि के हित में कार्य करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। सपना सराफ ने काव्यमय विचाराभिव्यक्ति करते हुए 'अन्तर्मन की शुचिता' का महत्व प्रतिपादित कर ऋचाओं की आवृत्ति कर मन्त्रों की सुकृति बनने का आव्हान किया। कोरबा से पधारी गायत्री शर्मा जी ने  भौतिकता और आध्यात्मिकता में समन्वय और सामंजस्य को आवश्यक बताया। इंजी अरुण भटनागर ने काव्यांजलि में में मर्यादा और नैतिक मूल्यों को  समाज के लिए आवश्यक बताते हुए स्त्री-शक्ति को उन्नति हेतु श्रेय दिया। 


सागवाड़ा राजस्थान से सहभागी विनोद जैन 'वाग्वर' ने परिवार के बिखराव पर चिंता व्यक्त करते हुए 'मैं' और 'तुम' को 'हम' बनाने पर बल दिया। मनोरमा जैन 'पाखी' भिंड ने साहित्यकार को समय का पारखी तथा बदलाव को जीवन का सत्य बताते हुए विदेश जीवन शैली के अंधानुकरण को वर्तमान विसंगतियों हेतु जिम्मेदार बताया। छाया सक्सेना 'प्रभु' ने सरस काव्याभिव्यक्ति करते हुए प्रकृति जे जुड़ाव को समस्याओं का हल बताया। ग्वालियर से पधारी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संतोष शुक्ला ने गौरवपूर्ण इतिहास का उल्लेख करते हुए उज्जवल भविष्य के प्रति आशावादिता दर्शायी। दतिया के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' ने गतागत पर चिंतन हेतु प्रेरित करते विषय को वर्तमान समय और परिस्थितियों में उपयुक्त बताया। दिल्ली निवासी सुषमा शैली ने 'अब विष पीने से डरकर क्या होगा? / हमने ही भरा था इस गागर में विष / तो अमृत कहाँ से होगा?' कहते हुए आत्मावलोकन और आत्मालोचन पर बल दिया।    


पलामू झारखण्ड से पधारे छंदशास्त्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने पद्य में विचार व्यक्त करते हुए ओजस्वी स्वर में अतीत के गौरव का गान किया। सिरोही राजस्थान के छगनलाल 'विज्ञ ने उपनिषदों की कथाओं  से किताबी शिक्षा को 'तथ्यान्वेषण' मात्र बताया तथा 'आत्मान्वेषण' को आवश्यक बताया। जबलपुर की डॉ. मुकुल तिवारी ने संसार के रहस्यों के बीच में जीव के आने-जाने की गूढ़ता को व्याख्यायित किया। जपला झारखंड की प्राध्यापक रेखा सिंह ने मानव संस्कृति को जीविकीय रूप से अधिक व्यापक बताया।  उन्होंने विकास हेतु परिवर्तन को अपरिहार्य बताया। दमोह का प्रतिनिधित्व कर रही बबीता चौबे 'शक्ति' ने पारिवारिक विघटन पर चिंता व्यक्त करते हुए सात्विक आहार को अपनाने पर बल दिया। आगरा से पधारे बृज कवि नरेंद्र कुमार शर्मा 'गोपाल' ने काव्याभिव्यक्ति की। युवा चिंतक सारांश गौतम ने विमर्श को ऊँचाई की ओर ले जाते हुए धर्म और आध्यात्मिकता के अंतर को स्पष्ट कर, धर्म की आड़ में दिशाहीन कर्मकांड पर प्रश्न उठाते हुए कबीर, विवेकानंद, महर्षि रमन, महर्षि अरविन्द, ओशो आदि को पढ़ने और समझने को आवश्यक बताया। वेद विजान का उपहास करने की साम्यवादी सोच की आधारहीनता को उद्घाटित करते हुए वक्ता ने 'स्वार्थ के लिए न जीने' के जीवनादर्श को अपनाने पर बल दिया।  विख्यात उपन्यासकार डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे ने वैदिक आर्य संस्कृति की महत्ता प्रतिपादित की। मुखिया पुष्पा अवस्थी 'स्वाति' ने इसकी उपादेयता तथा सहभागियों की प्रस्तुतियों को सार्थक बताया।चंदादेवी स्वर्णकार ने धनार्जन की लक्ष्य मानकर पारिवारिक दायित्वों से विमुख हो रही पीढ़ी को इसके दुष्परिणामों के प्रति सचेत किया।


मुखिया की आसंदी पर सुशोभित युवा शिक्षिका-गायिका मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति करते हुए जीवन को शून्य से निर्गमित शून्य में विलीन होनेवाल मार्ग बताया। उन्होंने जीवन मार्ग चुनने के प्रति सजग करते हुए अपने-अपने कार्य संपादन को सुखानुभूति और संतोष का पाथेय पाने का एकमात्र उपाय बताया। एक माह तक निरंतर चली इस दैनंदिन रचनात्मक श्रृंखला की परिकल्पना, संयोजन तथा क्रियान्वयन हेतु आधार उपलब्ध करने के लिए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभी वक्ताओं को उनकी सारगर्भित प्रस्तुतियों तथा सरस काव्यपंक्तियों द्वारा कार्यक्रम को गतिशील और रुचिपूर्ण बनाये रखनेवाले संचालक डॉ. आलोकरंजन के प्रति आभार ज्ञापित किया संस्था की सचिव छाया सक्सेना ने।


 


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