Subscribe Us

प्रकृति से संवाद 

पर्यावरण संरक्षण पर कहानी
डॉ वंदना गुप्ता
कोरोना लाॅक डाउन में आज  6 मई को हमारी शादी की 26 वीं सालगिरह है।इस सालगिरह को हमने छत के टेरेस गार्डन में मनाने का निर्णय लिया है। क्योंकि बहुत से मेहमान मेरे परिवार के सदस्य की तरह अब हमारे ही साथ रहते हैं ।इनके रहने की व्यवस्था  हमारे छत के बगीचे में ही है। यह सारे सदस्य आज हम दोनों को अपनी शुभकामनाएं, आशीर्वाद एवं उपहार देने को आतुर हैं।
पहले तो मैं इन सभी को आज के उत्सव में सादर आमंत्रित करती हूं।  मेरे ये मित्र प्रतिदिन सुबह से रात्रि तक हमारे चिंतन , मनन, लेखन, नव सृजन एवं आराधन में सहयोगी रहते हैं। और हों भी क्यों न? क्योंकि हम दोनों भी इनके अच्छे मित्रों में हैं ।जुही, बेला , चमेली, रात की रानी आज हमें हर दिन से अधिक प्रसन्न नजर आ रही हैं, और" मालती "के तो कहने ही क्या? झूम झूम कर सिर को ऐसे चूम रही है जैसे मेरे पूर्वज साक्षात सिर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद दे रहे हों। और "बेल" के पेड़ से साक्षात भगवान शिव, विश्व कल्याण की मुद्रा में  मंद मंद मुस्कुराते नजर आ रहे हैं। "अपराजिता"  विजय का आशीष दे रही है तो “ मदार” के पेड़ में विराजे गणपति बुद्धि विवेक का आशीष दे रहे हैं। “ गुड़हल” पेड़ से साक्षात महागौरी सर्व मांगल्य का आशीष दे रही हैं तो वहीं “ शमी ” के पेड़ से न्याय के देवता शनि हमेशा न्याय के साथ खड़े रहने का हमको संकल्प दिला रहे हैं। “ केले” के पेड़ से भगवान विष्णु “ अपने हाथ जगन्नाथ” यह कहते हुए आत्मनिर्भरता के साथ कर्म पथ पर डटे रहने का आशीर्वाद दे रहे हैं। झूमती “ बोगन बेलिया ” कह रही है सुनो गृहस्थ जीवन में फुल  व कांटे दोनों को हंसते हुए स्वीकारो।महकता “ गुलाब” हमसे कहता है सदा मुस्कुराओ ।कांटे तो क्या हुआ ?यह भी हममें  सजगता का भाव तो भरते हैं। हरी “ दूब” कहने लगी तुमसे सदा लोगों के जीवन में हरियाली आए। “ तुलसी ” कहने लगी तुम्हारा जीवन पवित्र हो। “ सदा सुहागन” बोली सदा सुहागिन रहो यही मेरा आशीष।  सिंदूर का पेड़ कहने लगा तुम्हारी मांग का “ सिंदूर” सदा चमकता रहे। अमरकंटक निवासी “ गुलबकावली” बोली तुम्हारे नेह की ज्योति हमेशा दमकती रहे। “ विधारा” बोला तुम्हें सदा स्वस्थ रहने का आशीष देता हूं।
तभी बगल में ऊपर की ओर दीवार पर चढ़ता “ मनी प्लांट” बोला तुम पर सदा शुभ -लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। तब तक में “ कमल” बोला मेरी तरह परिस्थितियों की निर्माता बनो उनकी गुलाम नहीं। मैं कीचड़ से जल के ऊपर कमल बन अपनी इच्छाशक्ति से निकलता हूं ।तभी हिमालय का मूल-निवासी “ ब्रह्मकमल” बोला मेरा भी आशीष तुम दोनों को ।जीवन में सदा शुभता को धारण करो ।मेरी तरह एक बनो नेक बनो। वर्षों में एक बार निकलता हूं पूरी आभा के साथ। तभी “ पीपल ” बोला तुम लोगों को पूर्वजों की कृपा के साथ-साथ  दीर्घायु यशस्वी जीवन  का आशीर्वाद देता हूं। मैं रात दिन प्राणवायु देता हूं। तभी सफेद, पीली, नीली, लाल ,गुलाबी और ना जाने कितने रंगों की “ लिली” एक साथ बोलीं मेरा भी आशीष स्वीकारो। उम्र का कोई भी पड़ाव आए तुम्हारा बचपन कभी ना जाए ।तभी सुगंधित“ देवना” बोल पड़ा मैं सत्य श्री साईं बाबा का आशीर्वाद लेकर तुम्हें देने आया हूं। जीवन में सदा महको मेरी तरह। “ आंवले ” ने आवाज लगाई ।मैं अमृत फल त्रिदोष नाशक तुम्हें स्वस्थ सुंदर जीवन का आशीष देता हूं। तभी पीछे से एक और आवाज “ पारिजात” कि आई बोला मैं भी कब से तुम्हें आशीर्वाद देने की बाट जोह रहा हूं। अब नहीं रहा गया तो आवाज लगा दी। मेरी तरह तुम से हवाओं में सुगंध फैले ।तुम्हारे अपने दम पर दिग दिगंत महके। तभी नन्हा पौधा “ स्नेक हुड” सफेद छतरी ताने बोला ,सदा तुम्हें छाया मिले ईश  कृपा की ।तभी 10 से 12 सुंदर बेलों के साथ इठलाते हुए “ पान ” ने भी कहा ,शादी की सालगिरह की बधाई। एक कोने में खड़ा किस “ क्रिसमस ट्री” भी हमारी ओर देख कर मुस्कुरा रहा था पास जाने पर बोला ,स्वीकार करो मेरी भी बधाई। तभी बहुत से मौसमी फूलों के पौधे “ सेवंती ” को साथ ले आगे आए और कहने लगे  खिलो हमारी तरह तुम दोनों हँसते मुस्कुराते रहो। उतने में नवअंकुरित “ बादाम” बोला, आपने मुझे बीज से पौधा बनाया है इसलिए" कांग्रेचुलेशन टू माय मदर एंड फादर" तभी नवोदित “ नारियल” बोला सुनो दोस्त बादाम। तुम्हारी तरह इन्होंने हमें भी बाजार से लाकर पौधा बनाया है। इस सुंदर दुनिया को दिखाया है ।वर्ना  मैं तो कब का कहीं फोड़ा जा चुका होता। अतः मेरी ओर से भी "कांग्रेचुलेशन टू माय मदर एंड फादर"। तभी चारों तरफ से धीमी धीमी आवाज में सुनाई दिया "कांग्रेचुलेशन टू माय मदर एंड फादर" मैंने झुक कर थोड़ा देखा तो कई गमलों में से छोटे-छोटे पौधे ऐसा बोल रहे थे। मैंने उनसे कहा अरे छोटू क्या हुआ ?तो वह बोले आपने बीज बोए तभी तो हम सब आए। इसलिए "कांग्रेचुलेशन टू माय मदर एंड फादर"।
हम लोगों ने कहा तुम्हें असली माता पिता तो पेड़ हैं। तभी वह सभी अपनी बाल में आवाज में बोले क्या आपने यह नहीं सुना हुआ है कि "पैदा करने से पालने वाला बड़ा होता है" ।हम निरुत्तर हो गए तभी “ पल्सेटिया”  के ढेर सारे पौधों ने आवाज लगाई अरे दोस्त कहां खो गए हो?हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी। अपनी मुकुट मणि जैसी लाल पत्तियों के फूल के साथ सभी खिखिलखिलाने लगे। शाम का समय था सो “गुल दुपहरी” सो रहा था। सब की आवाज सुन  उसने भी अंगड़ाई ली। बोला मैं तो सुबह से ही खिलकर बधाई देने के लिए इंतजार कर रहा था पर आप मेरे पास अब आए हैं, जब मैं थक कर थोड़ा विश्राम करने लगा ।कोई बात नहीं। आपको बधाई।जीवन की कड़ी धूप में भी मेरी तरह प्रफुल्लित रहो।अचानक राजगीर का पौधा बोला नवरात्रि व्रत में तो तुम हमारा ही सेवन करते हो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे जीवन के सभी व्रत पूर्ण हों।   ओ हो मेरे इतने प्यारे दोस्त, मैं सोच ही रही थी कि तभी “ चेंजिंग रोज” ने कहा तुम्हें सादगी और शौर्य का आशीष देता हूं। तभी “ बर्ड ऑफ पैराडाइस” के पेड़ ने फूलों के साथ बधाई देते हुए कहा तुम्हारे जीवन में स्वर्ग सा आनंद छाये और तुम दोनों जहां भी जाओ साथ साथ आनंद आए ।तभी हमने देखा भाँति भाँति के रंग-बिरंगे आकर्षक पत्तों वाले “ क्रोटन ” एक साथ एक कोने से आवाज लगाने लगे ।अरे वंदना सुनो हम भी  तुम्हें सुखी गृहस्थ जीवन की बधाई देते हैं। तभी“ शतावरी” की बेल हवा में लहराते हुए बोली शक्तिवान और सामर्थ्यवान बनो। उसी क्षण किसी ने मेरा दुपट्टा पीछे से पकड़ लिया। मुड़कर देखा तो “ घृत कुमारी ” अर्थात “ एलोवेरा” ने अपने कांटे से पकड़ लिया था। मैं हँसने लगी ।मैंने पूछा क्या बात है? नाराज हो क्या?बोली-नहीं, मैं भी अपनी शुभकामनाएं तुम्हें देना चाहती हूँ ।मुझे अपने चेहरे पर लगाओ, स्वस्थ सुंदर त्वचा पाओगी, फिर कभी हमें नहीं भुला पाओगी ।बार बार मेरे ही पास आओगी। तभी “ अजूबा” का पेड़ अपने खूबसूरत फूलों के गुच्छे को सजाकर आगे आया। बोला, आप दोनों को बधाई lआप जीवन में नित नये मुकाम हासिल करो l परिस्थितियां कैसी भी हों, आप सदा मुस्कुराएँ। वहीं ढेर सारे "मुर्गकेश" तब तक टोली बना चुके थे और हिल हिल कर हमें बुला रहे थे। इधर आओ हम सब की भी बधाई। तुम दोनों  सफलता के शिखर पर पहुँचो ,मगर पाँव हमेशा जमीन पर हो। इतना अपनापन कि कुछ पूछो नहीं ।क्षण भर के लिए भी बधाई का सिलसिला रुक नहीं पा रहा था। हम लोग कुछ सोंच पाते कि उसके पहले ही झूमते हुए "विद्या मोरपंखी" खुशी से झूमते हुए बोली दोनों की  बुद्धि पर सदा विवेक का राज हो, स्वीकारो मेरी बधाई। तभी किसी ने पुकारा "वंदना " मैंने कहा, किसने आवाज लगाई ?अरे नहीं पहचाना मुझे, मैं "चांदनी" तुम्हें मालूम है कुछ। ऊपर जरा चांद की तरफ देखो लगभग पूरा है क्योंकि कल बुद्धपूर्णिमा है ,कल सुपरमून होगा, इसलिए इसी चांदनी जैसा ही शीतलमय आनंदित जीवन की, अपने सफेद  फूलों के साथ बधाई देती हूं।  अचानक से कुछ पौधे मुरझा से गए। हमें लगा शायद यहां कोई दुखी है। तभी मैं जमीन पर उन पौधों के पास बैठ गई ,देखा कि वह तो "छुईमुई" है। हमने कहा सब खैरियत तो है? वह बोली हम लोग आनंदित हो झूम रहे थे आप दोनों को छूने की कोशिश कर रहे थे परंतु जैसे ही छुआ ,हम लजा गए ।क्या करें ?हमारे इसी गुण  के कारण हमारा नाम  "लाजवंती" है।हम सब भी आप दोनो को  शुभकामनाएं देते हैं ,कि जीवन में सदा मर्यादा का अनुसरण करो। तभी एक कतार में अनुशासन के साथ मार्च पास्ट करते खड़े हुए "क्रोचिया" के पौधों ने कहा, हम लोगों की भी बधाई, इस मंगल कामना के साथ कि जीवन की कड़ी धूप में भी सदा हरियालीमय  आपका जीवन हो। उतने में “ गोल्डन हेज” बोली सुनो वंदना रामानुज तुम्हारा जीवन हमेशा सोने सा खरा रहे, यही मेरी बधाई। तभी  ढेर सारे "डफनबेकिया" अपने बड़े -बड़े हरे सफेद चित्तीदार पत्तों के साथ हिलते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे ताली बजाकर हम दोनों का स्वागत कर रहे हों। हमने कहा तुम लोगों को तो देखकर भरी गर्मी में भी मेरा तन मन हर्षाने लगता है ।तब उन सब ने भी बधाई देते हुए कहा, तुममें करुणा- दया का भाव सदा विद्यमान रहे। यही हमारी शुभकामनाएं ।
ठंडी ठंडी हवा के झोंके के बीच "कैलेडियम" के पौधे पंखा झलते हुए बोले। स्वस्थ रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो। यही हमारी बधाई आपको। तभी मदमस्त पवन का झोंका आया और हमारे मन को खुशबू से सराबोर कर गया।  हमने मुड़कर देखा तो "रजनीगंधा" मुस्कुरा रहा था। वह बोला मजा आया? हमने कहा बहुत। तो फिर प्यार से बोला स्वीकारो मेरी भी शुभकामनाएं। बस ऐसे ही परोपकार की खुशबू के झोंके आपको आनंदित करें। तभी हवा के झोंके से"अजवाइन" की एक छोटी डाली टूट कर जमीन में गिर गई।मैं तुरत उसके पास पहुँची। ओ हो कहीं चोट तो नहीं लगी ?वह बोला अरे कोई बात नहीं। मैं तो हूं ही इतना नाजुक, दुखी मत हो ।मैं यूं ही टूट कर भी बढ़ता ही रहता हूं। अपनी टूटी डाली तुम्हें उपहार में देता हूँ। वादा करो, इसके पत्तों की आज तुम पकौड़ी बनाकर आपस में खाओगी।  तुम दोनों को स्वस्थ सुंदर जीवन  की बधाई देता हूं स्वीकार करो। "अजवाइन" का निःस्वार्थ  प्रेम देखकर मेरा दिल भर आया कि वह स्वयं टूट कर भी हमें खुशी देने की बात कर रहा है। इतना विशाल हृदय, इतनी करुणा, अद्भुत और तभी मेरे घर की दीवाल से लगे हुए  खुले मैदान से आवाज आई, "कांग्रेचुलेशन टू माय डियर मदर एंड फादर" मैंने झांका ,तो वह "अशोक" का पेड़ था। हाँ, यह वही अशोक है जिसकी बचपन में कई वर्षों तक बाढ़ रुकी रही। "अशोक" बोला, माँ  जल्दी से आओ मेरे भी पास। हम भी आतुर हैं कुछ कहने को।मेरे पास पहुँचते ही वह बोला, मैं आपका 16 वर्षीय पुत्र "अशोक" आपके चरणो में नमन करता हूं। हमने कहा यूं ही सदा हरे बने रहो ।तब वह कुछ खामोश हो गया, हमें लगा जैसे कहीं अतीत में खो गया। हमने कहा अचानक तुम चुप क्यों हो गए? तब वह बोला माँ आपको याद है, हम आठ भाई बहनों को आपने एक साथ कुछ कुछ दूरी पर रोपित किया था, मगर एक एक कर सभी मेरा साथ छोड़ गए। मैं भी कई बरसों तक लगभग मृत प्राय ही रहा लेकिन आपने मेरे जीवन की उम्मीद न छोड़ी और मुझे सींचती रहीं। हमने कहा तुम भी तो निरंतर संघर्ष करते रहे और सफल हुए, सक्षम हुए। आज तुम्हारी छाया कितनी प्यारी है, मैं प्रतिदिन जब तुम्हें देखती हूं तो मुझे भी तुम्हारे बंधुओं की याद आती है ।मैं उन सभी को तुम में ही देख लेती हूँ। अशोक बहुत ही खुश हुआ और बोला आपके जीवन में कभी शोक ना हो मां करो स्वीकार मेरी शुभकामनाएं। तभी नीम पर छाई "गिलोय" बोली मैं तो आज मायके पक्ष से हूं ।याद है मुझे आपने प्रयागराज से 25 वर्ष पहले सागर लाकर लगाया था ।बस तभी से मैं हमेशा आपके पास हूं ।मैं तो आपको स्वस्थ सुंदर जीवन की शुभकामनाएं प्रतिदिन सुबह-सुबह ही दे देती हूँ , जब आप लोग मेरा काढ़ा बनाकर पीते हो।तभी सबसे बुजुर्ग पौधा "नीम" बोला, मेरी भी आप दोनों को बधाई । मैं तो आपके  द्वार पर खड़ा दिन रात आप व आप के मरीजों के उत्तम स्वास्थ्य का ध्यान रखता हूं और अपनी हवा से निरंतर यहां के वातावरण को स्वस्थ रखता हूँ ।अशोक के बुलाने पर हम नीचे आ गए थे। बातचीत में देर हो गई।तभी टेरेस गार्डन में हमारा इंतजार कर रहे आम, मुसम्मी ,अनार, नागर मोथा,  गेंदा सहित तमाम पौधों ने एक साथ कहा, आप दोनों को शादी की सालगिरह मुबारक हो। मैं हतप्रभ थी। इतनी देर से सभी इतनी आत्मीयता के साथ हम दोनों को अपनी शुभकामनाएं ,आशीष व बधाई देने के लिए तैयार खड़े हैं ,वह भी बिना थके। हमने कहा आप थके नहीं? वह बोले हम थके नहीं हैं ,हम पहले से भी अधिक और ऊर्जान्वित  हुए हैं। शादी की सालगिरह में सम्मिलित होकर हमें बहुत खुशी हुई।  आपसे हम लोगों का अटूट रिश्ता है, क्योंकि आप हमें टेरेस गार्डन की छत पर प्रचंड ग्रीष्म  में भी जिंदा रखते हैं।  इस छत पर यदि हमें 2 दिन भी पानी ना मिले तो हम में से कितनों का जीवन ही नहीं रहेगा। हमने कहा नहीं, यह तो तुम सबका प्यार है जो ऐसा बोल रहे हो और हमें मान दे रहे हो। शायद तुम्हें मालूम नहीं कि तुम हमें कितना कुछ देते हो। शुद्ध वातावरण, सुंदर फूल, पक्षियों का बसेरा, प्रातः गौरैया की चह-चहाहट,अपनी खूबसूरती से आकर्षित करती बुलबुल व उसका घोसला ,कोयल की कूक, टेलर बर्ड की प्यारी बोली व सुन्दर घोसला, कबूतर की गुटरगू,झुंड के झुंड तोते का नीम पर बैठ कर नीमकौड़ी खाना मिट्ठू की आवाज़ लगाना,कौवे की काँव काँव ,काली-हरी-नीली-सफेद-सुन्दर  सुन्दर चिड़ियाँ,फुदकती गिलहरियाँ मन को आनंदित व हर्षित करती हैं। और तो और सुंदर फूल मन को खुश तो रखते ही है और जब मैं इनमें से कुछ फूल भगवान पर चढ़ाती हूं तो तुम्हारी ही वजह से हमें इश कृपा भी मिलती है। कितने जीवो को तुम बसेरा,भोजन ,पोषण व खुशियां देते हो। तितली का फुदकना, मोरो का गुंजन मधुमक्खी का पराग लेना सब तुम सब की ही बदौलत है ।धन्य हो तुम सब। तब सभी ने एक साथ आशीर्वाद देते हुए कहा कि जैसा हमारे फूलों के जीवन का उद्देश्य है वही तुम्हारे जीवन का भी हो।
मेरे फूल कह रहे मुरझाना फिर भी,मुस्काओ जब तक जीवन। 
खुशबू सबके हृदय समा दो,ऐसा तुम कुछ करो जतन।।
 सभी का इतना प्रेम ,इतनी आत्मीयता इतना स्वागत ,इतना आशीर्वाद, इतनी बधाई इतनी शुभकामनाएं पाकर हम अभिभूत हो गए और इनका धन्यवाद तक कहना भूल गए। तब धीरे से मेरे जीवन साथी ने  हमसे कहा, अरे इनका धन्यवाद नहीं दोगी क्या? क्या सोच रही हो? प्रेमाश्रु मेरी आंखों में छलक आए थे। मैं भी भावविह्वल हो गई थी । मेरे पास शब्द कम पड़ रहे थे। मैंने कहा -
आप यूं ही सदा आबाद रहें, आप यूं ही सदा मेरे साथ रहें।
 इस एक ही जन्म में क्या ,जन्म-जन्मांतर तक आप मेरे साथ रहें।।
 तभी  मेरे जीवन साथी  ने भी बड़ी कृतज्ञता के साथ उन सभी को शादी की 26वी सालगिरह पर सम्मिलित होने व अपनी शुभकामनाएं देने के लिए आभार व्यक्त  किया और कहा -
 अंतः करण से आप सभी का आभार,आप हैं सभी जीवों के जीवन का आधार।
 देते हैं सदा स्वस्थ जीवन की बयार, हम दोनों का आप सभी को नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार।।
 *सागर म.प्र. 
 (लेखिका स्वच्छ भारत मिशन की ब्रांड एम्बेसडर  है)
 

अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।

साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com

यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ