*सुनील कुमार माथुर
आजादी के बाद आजाद भारत के हर नागरिक पर पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का रंग चढता जा रहा है और हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे है यह कितने शर्म की बात है । हमारी संस्कृति हमें नाना प्रकार के आदर्श संस्कार सीखाती है और हमे राष्ट्र का आदर्श नागरिक बनाती है ।
कभी हम मदर्स डे मनाते है तो कभी फादर्स-डे । केवल एक दिन मदर्स डे व फादर्स-डे मना कर हम समाज को क्या संदेश दे रहे है । क्या एक दिन मदर्स डे व फादर्स-डे मना कर शेष 363 दिन का इनका मान सम्मान करना भूल जाये । ऐसा तो किसी भी समाज की सभ्यता और संस्कृति मे नहीं लिखा है । ये तो हमारे पालनहार है । जन्मदाता है । हमारे सच्चे मित्र व मार्गदर्शक है । इन्हें तो पूरे साल क्या पूरे जीवन भर मान सम्मान दे तो वह सभय भी कम है । इस वर्ष 21 जून रविवार को देश भर में फादर्स-डे मनाया जायेगा ।
आज हम अपने आपकों सभ्य समाज का नागरिक कहते नहीं थकते है लेकिन हकीकत यह है कि जब पुत्र पिता से पैसे मांगता है और किन्ही कारणवश पिता पुत्र को पैसे देने में अपनी असमर्थता व्यक्त करता है तो पुत्र पिता को न जाने कितनी खरी खोटी सुनाता है फिर भी मौन रहते है और चुपचाप बेटे की खरी खोटी सुनता है और मन ही मन यह कहता है कि अभी यह नादान है । पिता का मौन रहने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे पुत्र के सामने कमजोर है । मां और पिता के व्यवहार में सदा से अन्तर रहा है चूंकि माता ममता की मूर्त है और पिता घर परिवार की वह धुरी है जिस पर परिवार की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है । अतः पिता को बहुत कुछ सहन करना पडता है लेकिन वे कभी उसका आभास परिवार के सदस्यों को नहीं होने देते है । वे अपने अनेक शौकों का गला घोंटकर परिवार को चलाते है । उनका एक एक कदम नपा तुला होता है । यह बात केवल वे ही जानतें है ।
बच्चों के प्रति पिता के मन में कितना लाड प्यार है यह हमें उस दिन को याद रखते हुए ही समझ लेना चाहिए जब हमारा जन्म हुआ तब पिता कितने खुश हुए । मिठाइयां बांटी । लोगों को बधाइयां दी । जब हम कुछ बडे हुए तो उन्होंने हमे अपनी पीठ पर बैठाकर चल मेरे घोड़े टपाक टप । अतः हमारा कर्तव्य बनता है कि हम कोई भी ऐसा कृत्य न करें जिससे हमारे माता पिता की भावना को ठेस पहुंचे ।
पिता की आज्ञा का पालन करें व उनकी कभी भी उपेक्षा न करें ।
वे पूज्यनीय है, वंदनीय है । उनका आशीर्वाद हम पर सदा बना रहना चाहिए । उन्हें हमारी वजह से कभी भी दुःख नहीं होना चाहिए । व्हाइटसएप व नेट के चक्कर में लोग इतने अंधे हो गये है कि अपने पिता से बात करना भी औलाद को अच्छा नहीं लगता है और जब बात करतें है तो केवल अपने मतलब की बात करते हैं । जब कभी बच्चों से पूछते है कि पिता जी से बात क्यों नहीं करते हो तो वे जवाब देते है कि उनकी बातें हमारी समझ में नहीं आती । वे पुराने जमाने की बातें करतें है । उनकी बातें बकवास लगती है । सुनकर हृदय को गहरी ठेस पहुंचती है ।
पिता की भावनाओ को ठेस न पहुंचाये । अगर वे अनपढ है तो भी हमारे सच्चे हितैषी है , पथप्रदर्शक है , सच्चे मार्गदर्शक है । उनके पास अनुभव का अथाह भंडार है जिससे हमे सीख लेनी चाहिए । मां की तरह ही हम पिता का भी ऋण नहीं उतार सकतें उसे उतारने के लिए हमें न जाने कितने जन्म लेने पडें फिर भी वह ऋण नहीं उतर पायेगा । संतान को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उनके माता पिता को सिर झुकना पडें अपितु ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे उनका सिर गर्व से ऊंचा हो ।
पिता अपनी संतान के सुख व खुशहाली के लिए चुप रहता है उनकी इस चुप्पी मे पुत्र के प्रति पिता का कितना प्यार है , स्नेह है , वात्सल्य है , ममता है यह बात पुत्र नहीं पुत्री बखूबी जानती है । वास्तव में पिता हमारे सच्चे मित्र है व मार्गदर्शक भी है । उनके कठोर अनुशासन पर ही तो हमारे परिवार की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है । उनका रोकना , टोकना उनकी मनमानी नहीं है अपितु हमारे भविष्य के लिए समय रहते एक सही कदम है । वे हमारे भविष्य के प्रकाशपुंज है । वे हमें रोकते है , ठोंकते है तो उसके पीछे उनका ध्येय हमारी सुख समृद्धि व कल्याण की भावना ही होती है ।
वे हमें पढाते है लिखवाते है । हमारा भविष्य संवारते है । हमारा विवाह करते है । रोजगार दिलाने मे मदद करते है । हमारी नौकरी लगने पर , पदौन्नति होने पर जश्न मनाते है व हमें देश का आदर्श नागरिक बनाते है । इस सब के पीछे वे अपना कितना त्याग करते है शायद ही हमने इस बारे में कभी सोचा है । वे तो हमारे सच्चे मित्र है व मार्गदर्शक व पालनहार है । अतः माता पिता की सेवा करे । उनका कभी भी अनादर न करे । वे वंदनीय है पूज्यनीय है । अतः उनका एक दिन नहीं अपितु हर रोज मान सम्मान करें । चूंकि उनके चरणो में ही सभी तीर्थो जितना पुण्य है ।
*जोधपुर राजस्थान
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