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फिर से कर डाला मानव ने शर्मसार मानवता को



*विक्रम कुमार

गहरी पहुंची चोट है फिर से, एक बार मानवता को

फिर से कर डाला मानव ने , शर्मसार मानवता को

ज्यादती धरती पर हो गई, देख रहे क्यों नाथ नहीं ? 

अनानास देने जो आए, कांपे क्यों वो हाथ नहीं ? 

लाज-शर्म भी भूल गए थे, हया भी उनको न आई

दो जानों को खत्म कर दिया, दया भी उनको न आई

चंद पटाखों ने कर डाला तार-तार मानवता को

फिर से कर डाला मानव ने , शर्मसार मानवता को

सूखी शोक से नदियां सारी, कुंआ हो गया है प्यासा

पढे़-लिखों ने दे दी देखो जाहिलियत की परिभाषा

होता है विश्वास नहीं कि, हुआ है ऐसा भारत में

कुछ लोगों ने कर डाला कुकर्म ये कैसा भारत में

दिए हुए किसने आखिर ऐसे अधिकार मानवता को

फिर से कर डाला मानव ने , शर्मसार मानवता को

बोलता ये पूरा भारत है, इस घटना को सुन-सुनकर

दोषी चाहे जो भी हों वे टांगे जाएं चुन-चुनकर

कानूनों से और विधान से खंड कड़ा वे सब पाएं

अपनी इस करनी की खातिर दंड कड़ा वे सब पाएं

सख्ती से ही बचा सकेगी, सरकार मानवता को

फिर से कर डाला मानव ने , शर्मसार मानवता को 

*मनोरा, वैशाली

 


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