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 फटी चादर 



*आशीष दशोत्तर


शहर अनलॉक होने के बाद उसकी दुकान के सामने से पहली बार गुज़रना हुआ।  वहां गाड़ी रोकी और उसकी दुकान की ओर देखा। दुकान के आगे लगे बड़े कांच पर बाहर की धूप से बचने के लिए उसने एक चादर टांग रखी थी, जो जगह-जगह से फटी हुई थी। गाड़ी से उतरकर उसकी दुकान में गया और हर बार की तरह मज़ाकिया लहजे में कहा, इतनी बड़ी दुकान के आगे यह फटी चादर ? उसने बिना वक्त गवाएं  कहा,  यार अब तो ज़िंदगी इस फटी चादर की तरह हो गई है।उसका यह अप्रत्याशित जवाब सुन मेरा मज़ाकिया लहजा गंभीरता में तब्दील हो गया। उसने जिस तत्परता से जवाब दिया था ऐसा लग रहा था कि ये शब्द उसकी ज़ुबान पर मौजूद थे । जब शब्द जुबान पर मौजूद होते हैं तो यकीनन भीतर की हालत भी ऐसी ही होती है। 
वह एक टेलर है ,यानी कपड़े सिलने वाला। बीती दीपावली पर उसने यह नई और बड़ी दुकान किराए पर ली। अपनी पुश्तैनी राशि को दांव पर लगाते हुए । इस यक़ीन के साथ कि बीच बाज़ार में अच्छी बड़ी दुकान होगी तो वहां ग्राहकी काफी होगी। वह पहले जहां से टेलरिंग का काम किया करता था वह बहुत छोटी दुकान थी और उसकी तमन्ना थी कि एक बड़ी दुकान हो जाए, ताकि निश्चिंतता रहे। उसने यह दुकान हासिल करने के लिए  काफी पापड़ बेले । यह लोकेशन उसे अपने व्यवसाय के लिए ठीक लगी इसलिए उसने दुकान तीन लाख रुपए पगड़ी यानी अग्रिम राशि और पच्चीस हज़ार रुपए  महीना किराया देन भी स्वीकार किया। 
जब उसने यह दुकान ली थी तब मैंने उसे आश्चर्य से यह पूछा था कि इतना पैसा यहां लगाने से क्या इसी अनुपात में आमदनी संभव होगी?  उसने कहा था कि यह क्रीम एरिया है।  यहां अपनी दुकान बेहतर चलेगी। दुकान लेने के बाद उसने करीबन दो से ढाई लाख रुपए का फर्नीचर बनवाया। दुकान में काम करने के लिए दो कारीगर भी रखे। इस तरह यह दुकान शुरू हुई। दीपावली के बाद विवाह का सीजन प्रारंभ हुआ और उसकी ग्राहकी बढ़ने लगी । उसकी दुकान में लटके कपड़े देख मुझे भी लगने लगा कि वाकई इसका निर्णय सही था और इसकी दुकान चल निकलेगी, मगर इस लाकडाउन  से उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दुकान का महीने का किराया और दूसरा रखरखाव, जो उसके लिए नितांत आवश्यक है । कारीगर को उसने काम की शर्त पर रखा था इसलिए उनकी उसे फिलहाल कोई चिंता नहीं है। परिवार का गुज़ारा भी करना है। हालात को देखते हुए सेनेटाइजर, एप्रन आदि ज़रूरी इंतज़ाम अपने और कारीगरों के लिए करना भी ज़रूरी है।
 अभी जब लॉकडाउन खत्म हुआ और उसने दुकान खोली तब उस पर दुकान का किराया 75 हजार रुपए बकाया हो चुका है। यह अब निरंतर बढ़ रहा है। अभी की स्थिति यह है की शहर अनलॉक होने के बाद से अब तक उसकी दुकान पर एक भी ग्राहक नहीं आया है । जिन ग्राहकों ने विवाह के सीजन के लिए कपड़े सिलने को दिए थे, वे सिले हुए कपड़े लेने भी नहीं आ रहे हैं । कुछ ग्राहकों को उसने फोन किया कि वे आकर अपने कपड़े ले जाएं, लेकिन ग्राहकों ने कहा कि वह बाद में ले लेंगे । अभी उन्हें कोई जल्दी नहीं है, कपड़े बाहर से लाने में ख़तरा भी है, इसलिए कपड़े दुकान में ही रहने दें। यानी हालात बड़े नाजुक हैं। उसकी बात सुन मैंने उस व्यस्त क्षेत्र के अन्य दुकानदारों की तरफ नज़र घुमाई तो मुझे हर एक दुकानदार मैं उसी की शक्ल नज़र आने लगी। किसी दुकान पर कोई ग्राहकी नहीं । जहां ग्राहक हैं तो इक्का-दुक्का । लोग इस वक्त बहुत ज़रूरी चीज़ों को ही खरीद रहे हैं। ग़ैरज़रूरी चीज़ों की तरफ उनका कोई रुझान नहीं है । मन में आशंका यही बनी है कि आने वाले वक्त में हो सकता है फिर से कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो, जिसके लिए वे आर्थिक रूप से तैयार रहें ।
सवाल यह है कि ऐसे कितने ही दुकानदार हैं, कितने ही व्यापारी हैं,  जो अपनी हैसियत से अधिक पूंजी लगाकर बाज़ार में बैठे हुए हैं । जिनके पास इस वक्त कोई आमदनी नहीं है। ऐसे दुकानदारों को किस श्रेणी में माना जाएगा? ये न तो मुआवजे के लिए किसी से कह सकते हैं ,न किसी सहायता के लिए कोई आवेदन दे सकते हैं, न अपने मकान मालिक को यह कह सकते हैं कि उनके ग्राहकी नहीं हो रही है इसलिए यह किराया नहीं दे सकते । इनका मकान मालिक इतना रहम दिल भी नहीं है कि वह इस दौरान का किराया माफ कर दे, क्योंकि किराये से ही उसकी गृहस्थी चल रही है। ऐसे दुकानदारों के सामने मौजूद इन सवालों की तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं है । लाखों  के पैकेज की घोषणाएं आए दिन अखबारों में पढ़ी जा रही है, मगर ऐसे हालात के शिकार लोगों के लिए कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है । इनकी फटी चादरों को कौन सिएगा, कब सिएगा,  किस तरह सिएगा और कितना सिएगा, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है।
*रतलाम (म.प्र.)

 


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