*अमृता स्वामी शर्मा
हर बेटी अपने पापा की परी या राजकुमारी होती है । जिंदगी की भाग दौड़ में जैसे बचपन कहीं ऐसा गुम हुआ कि समय की के पीछे देखने का समय ही नहीं मिला । एक दिन किसी गीत की पंक्तियों ने जैसे मेरी आंखों के झरने खोल दिए - "बाबा मैं तेरी मलिका टुकड़ा हूं तेरे दिल का.. दहलीज दर्द की पार करा दे....."
इस गाने को सुनकर बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं। वह गलियां उबड़ खाबड़ रास्ते जहां से निकलते वक्त पापा हमारा हाथ पकड़ लेते थे और झूला झुलाते हुए एक ही हाथ से उबड़ खाबड़ रास्ते या किसी पुराने घर में बनी हुई पत्थर की ऊंची देहलीज पार करवा देते थे। पापा ने हमारे बचपन में अपने आचरण से हमें बहुत कुछ सिखा दिया था । वे घर में छोटी-छोटी बातों का भी बहुत ध्यान रखते थे। जब हम आश्चर्यचकित होकर पूछते थे कि पापा आपको कैसे पता चल जाता है कि हमें इस चीज की जरूरत है , तब पापा मुस्कुराकर हमारे सिर पर हाथ रख देते थे । हमारे घर में एक बड़ा सा आंगन था और आंगन के आगे की ओर बच्चों के कमरे तथा पीछे की ओर बड़ों के कमरे थे । मई -जून की तपती दोपहर में जब किसी की कूलर की ठंडक से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी ,तब पापा हमारे लिए फल काटकर लाते और बड़े प्यार से हमें खिलाते , सर्दियों की ठंडी रातों में जब रजाई में दुबके रहने में ही हमें परम सुख प्राप्त होता था तो हमारे मन को भांपने वाले पापा वही आंगन पार करके हमारे लिए गर्म दूध का गिलास लेकर आते थे ।दूध की गर्माहट के साथ पापा स्नेह की गर्माहट ने हमें ऐसी ऊर्जा दी कि आज भी हम उसके स्मरण मात्र से ही स्फूर्ति से भर जाते हैं। आज यदि मैं अपनी संतान के लिए कुछ कर पाती हूं तो उसके मूल में पापा का वही समर्पित स्नेह समाया हुआ है । वही हमारे समस्त शुभ कर्मों की प्रेरणा है। आज जीवन में जब कभी कोई बड़ी उलझन होती है उसे सुलझाने में भी पापा की किसी न किसी सीख से रास्ता मिल ही जाता है। मेरे लिए एक दिन नहीं जीवन का हर दिन 'फादर्स डे 'है क्योंकि मेरे पापा... मेरे आदर्श हर पल मेरे साथ हैं । पापा हमेशा कहते थे भावना से कर्तव्य प्रधान है उनका यह वाक्य मेरे जीवन का मूल मंत्र बन गया है।ऐसी दृष्टि तथा दृष्टिकोण रखने वाले पिता को मेरा शत शत नमन।
*भोपाल म.प्र.
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