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बदलकर अपना व्यवहार, महामारी पर करेंगे प्रहार



*सुशील कुमार 'नवीन'

ना भाई ना। हमसे तो ये नहीं हो पाएगा। क्या कहा? क्यों भला? इसमें क्यों का प्रश्न उठाने वाले आप होते कौन हैं। हमारी मर्जी। हम चाहे ये करें,हम चाहे वो करें। आपके कहने पर थोड़े ही चलेंगे। सबसे पहले तो ये बता दें कि हम अपनी मर्जी के मालिक हैं। बिना मर्जी तो हम किसी की भी नहीं सुनते फिर दूसरे के कहने पर व्यवहार बदलना तो दूर की बात है। आप भी सोच रहे होंगे कि आज ये नकारात्मक विचार हमारे जेहन में क्यों घुस गया। ये मैंने अपने लिए थोड़े ही कहा है। शब्द हमारे हैं बाकि इशारा तो आपने ही किया था हमसे ऐसा कहने को। 

लोकडाउन के बाद सरकार ने अनलॉक1 शुरू किया है। लोगों में सकारात्मकता की सोच विकसित हो इसके लिए खिलाड़ी कुमार यानी अक्की पाजी का एक एड शूट करवाया है। इसका बार-बार प्रसारण कर लोगों को कोरोना विपदा के प्रति सकारात्मक विचारधारा विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें अक्षय कुमार कहते हैं कि यह घबराने का वक्त नहीं बल्कि एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने का वक्त है। कोरोना वायरस से हमें लड़ाई जारी रखनी पड़ेगी लेकिन इससे डरकर नहीं, पूरी सावधानी के साथ। 

अब मुद्दा यह है कि इसका हमारे साथ क्या सम्बन्ध। सम्बंध तो है कि महानुभाव। लंबा लोकडाउन आपने जिया है। लोग घरों में कैद होकर सरकार प्रशासन को पानी पी पीकर कोस रहे थे कि भला ये भी कोई तरीका है किसी बीमारी से लड़ने का। बीमारी पर रोक तो इससे हम लगा नहीं पाए पर बीमारी के साथ जीने की आदत तो डाल दी। सोचो भला। प्रधानसेवक जी। 24 मार्च की रात आपको कहते- भाइयो और बहनों। देश में कोरोना ने शुरुआत कर दी है। अब अपने आपको खुद ही सम्भालें। हमारे भरोसे मत रहें।  सामाजिक दूरी और मास्क पहनकर ही इससे बचा जा सकता। तो भला आप मान जाते। कहते ,इनकी तो आदत सी हो गई है। रोज नया शगूफा छोड़ देते हैं। चाइना की बीमारी हम तक थोड़े ही आएगी। न हम कभी चाइना गए न हमारे रिश्तेदार। और जब लोकडाउन हुआ तो धीरे धीरे हमनें न केवल इस बीमारी को स्वीकार किया अपितु इससे बचाव के उपायों को भी स्वीकार कर सहयोगात्मक रवैया अपनाना शुरू कर दिया। इस दौरान आप बाहर निकलना बंद हुए तो सरकार ने अपनी व्यवस्थाएं बढ़ानी शुरू कर दीं। जब अब तय हो गया है कि बीमारी रुकने वाली नहीं है। हमें इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी। तभी अनलॉक वन के नाम से छूट मिलनी शुरू हुई है। अब इस छूट को बरकरार तभी रखा जा सकता है जब हम अपने आपको बचाने का प्रयास करें। यदि कुआं देखकर भी रास्ता न बदला तो उसमें गिरने से आपको कोई नहीं रोक पायेगा। सड़क पार करते समय दाएं-बाएं वाहन न देखा तो कोई न कोई गाड़ीवाला आपको कुचलेगा ही। आग के पास जाओगे तो झुलसोगे,बिजली के स्विच में या किवाड़ में अंगुली डालोगे रस थोड़े ही टपकेगा। तो महानुभावों! यदि कोई बदलाव किसी नए युग का सूत्रपात करता है तो हमें भी उसके साथ हो जाना चाहिए। विष्णु शर्मा द्वारा रचित प्राचीन ग्रन्थ पंचतंत्र का नाम तो आपने सुना ही होगा। उसके इस प्रसिद्ध श्लोक को अपने साथ जोड़कर देखिए-

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा !

सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!

विष्णु शर्मा जी कहते हैं कि  किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है। तो अपने आपको बदलिए। न बदले तो वक्त आपको बदलने लायक नहीं छोड़ेगा। रहीम जी का भी एक प्रसिद्ध दोहा सामयिक बन रहा है। 

निज कर क्रिया रहीम कहि सिधी भावी के हाथ,

पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।

रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता है। तो अंत में यही गुजारिश अपने आपको बदलिए। जो होगा सो देखेंगे। 

*हिसार

 


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