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विश्व पर्यावरण दिवस का भावार्थ



*डॉ० सिकन्दर लाल

अक्षयवट का तात्पर्य है संसार रूपी पावन धाम में विराजमान् जितने भी वट( बरगद का वृक्ष) वृक्ष हैं उनका क्षय अर्थात् बरगद के वृक्ष को नष्ट होने से बचाया जाए क्योंकि ये वृक्ष मानव एवं जीव-जन्तु को छाया प्रदान करते हैं साथ ही प्रर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाते हैं इसलिए बरगद इत्यादि जैसे वृक्षों को संरक्षित करना  जनमानस एवं सरकार का धर्म है आज वर्तमान समय में हमारे देश रूपी पावन धाम में बरगद का वृक्ष बहुत कम रह गये हैं कैसे हम अपने देश रूपी पावन धाम में और बरगद इत्यादि जैसे वृक्षों को लगाये ताकि हमारा देश रूपी पावन धाम पर्यावरण प्रदूषित होने से बचा रहे। इस संदर्भ में आम जनमानस एवं सरकार द्वारा ठोस कदम उठाने से मानों हम सभी भारतवासी अक्षयवट(बरगद का वृक्ष) का यथार्थ रूप में दर्शन कर रहे हैं।

लेकिन कुछ मूर्ख,पाखण्डी एवं न समझ लोगों द्वारा माँ गंगा के पावन तट को कब्जा करके और उसमें अपना मैल धोकर एक तरफ माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन जल को दूषित कर रहे हैं और वहीं दूसरी ओर माँ गंगा का दर्शन करने आये लोगों से अक्षयवट अर्थात् बरगद के वृक्ष को देखने से, मुक्ति की बात कर रहे हैं। इन कुछ मूर्ख एवं कुछ न समझ लोगों को यह नहीं मालूम कि माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन जल में शरीर का मैल धोने से न तो माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों का पावन जल स्वच्छ होगा और न ही अक्षयवट अर्थात् एक पावन बरगद के वृक्ष को लाखों लोगों द्वारा एक ही स्थान पर एक बरगद का वृक्ष दखने से अन्य जगहों पर विराजमान् बरगद का वृक्ष बच जायेंगे और न ही और बरगद का वृक्ष तैयार हो जायेंगे। माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों का जल तब स्वच्छ होगा जब इनके पावन तटों को धर्म के नाम पर कब्जा करने वाले कुछ असुरों को , इनके पावन तटों से हटाया जाए और कुम्भ मेला के नाम पर माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों के पावन जलों में अपने शरीर के मैल धोने वाले कुछ मूर्ख एवं अधिक से अधिक भोले-भाले मानव को मना किया जाए। इसी तरह अक्षयवट अर्थात् पावन बरगद के वृक्षों में तब  बढ़ोत्तरी होगी जब आम जनमानस एवं सरकार के सहयोग से इन बचे हुए बरगद आदि वृक्षों को संरक्षित कर और अधिक से अधिक लगाए जायें। वैसे भी उपनिषद् इत्यादि पावन ग्रन्थों में कुम्भ मेला इत्यादि के नाम पर माँ गंगा इत्यादि जैसी महान् नदियों में नहने-धोने की बात नहीं है और न ही धर्म के नाम पर इनके पावन तटों पर सरिया सीमेंट एवं बालू से बड़े-बडे पक्का घाटों का निर्माण करके अनावश्यक धन की बरबादी करके  इनकी (माँ गंगा इत्यादि महान् नदियाँ) प्रवाहित होने वाली स्वतन्त्र जल धारा को रोकने की बात है तथा न ही धर्म के नाम पर जल-जंगल-जमीन इत्यादि को कब्जा करने की बात है। वेद एवं उपनिषद् आदि पावन ग्रन्थों में सिर्फ मानव एवं जीव-जन्तु का सुरक्षित जीवन एवं प्रकृति- संरक्षण के संदर्भ में दिव्य संदेश है। अतएव विश्व पर्यावरण का भावार्थ बरगद आदि वृक्ष एवं माँ गंगा इत्यादि महान् नदियों का संरक्षण- संवर्धन करना मानवों का दृढ़ संकल्प है|

*ढिंढुई, प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

 


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