*प्रो.शरद नारायण खरे
मां होती करुणामयी,मां सूरज का रूप ।
देती जो संतान को,सुख की मोहक धूप ।।
मां ईश्वर जैसी लगे,होती पालनहार ।
मां में पूरा है भरा,यह सारा संसार ।।
हरदम वंदन में रहे,मां का अनुपम त्याग ।
मां-महिमा गायन करें,सातों सुर औ' राग ।।
मां धरती जैसी लगे,मां होती आकाश ।
मां से बढ़कर सृष्टि में,ना दूजा विश्वास ।।
मां रोटी,मां नीर है,मां तो है संघर्ष ।
मां खुशियां,मां चैन है,मां से ही है हर्ष ।।
मां शुचिता,मां धर्म है,मां मीठा अहसास ।
मां लोरी,मां गीत है,मां जीवन की आस ।।
मां है ख़ुद में ताज़गी,हर लेती अवसाद ।
मां है तो निज झोंपड़ी,लगती है प्रासाद ।।
मां पूजा का थाल है,आलोकित इक दीप ।
मां है तो ना आ सके,विपदा कोय समीप ।।
मां प्रेयर,मां आरती,मां है वेद-कुरान ।
मां गुरुवाणी,कीर्तन,मां गीता की आन ।।
मां से ही सम्पन्नता,मां से ही उत्थान ।
मां से ही संतान का,बढ़ता है सम्मान ।।
*प्रो.शरद नारायण खरे, मंडला(मप्र)
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