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मां का ममत्व और त्याग



*नीरज मिश्रा

भारत में मां को शक्ति का रूप माना गया है। हिंदू धर्म में देवियो को मां कहकर पुकारा जाता है। धन की देवी लक्ष्मी ,ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी, दुर्गा को माना जाता है। नवरात्रों में मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है ।वेदों में मां को पूज्यनीय कहा गया है ।महर्षि मनु कहते हैं 10 उपाध्याय के बराबर एक आचार्य होता है । सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है ।और 1000 पिताओ से अधिक गौरवपूर्ण मां होती है।

तैतृयोपनिषद में कहा गया है। "मातृ देवो भव: "इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठिर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है ? तो उन्होंने जवाब दिया "माता गुरुतरा भूमे: "अर्थात मां इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती है। रामायण में श्री राम कहते हैं "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है ।बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है। मां बच्चे को 9 माह अपनी कोख में रखती है। प्रसव पीड़ा सह कर उसे इस संसार में लाती है ।सारी सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है ।हम अनेक जन्म लेकर भी मां की इस कृतज्ञता को प्रकट नहीं कर सकते हैं।

मां की ममता असीम है ।आनंत और अपरंपार है ।मां और बच्चों का रिश्ता अटूट होता है ।मां बच्चे की पहली गुरु होती है। उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताकतवर इंसान बनता है। हर व्यक्ति अपनी मां से भावात्मक रूप से जुड़ा होता है ।वह कितना ही बड़ा क्यों ना हो जाए लेकिन अपनी मां के लिए हमेशा एक छोटा बच्चा ही रहता है। मां अपने सर्वस्व अपने बच्चों पर न्योछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है ।मां बनकर ही हर महिला खुद को पूर्ण मानती है। कहते हैं एक व्यक्ति बहुत तेज घुड़सवारी करता था 1 दिन भगवान ने उससे कहा कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो ,जब उस व्यक्ति ने भगवान से इसकी वजह पूछी तो भगवान ने कहा अब तुम्हारे लिए दुआएं मांगने वाली तुम्हारी मां जिंदा नहीं है ।जब तक वह जिंदा थी तब तक उसकी दुआओं से तुम बचते रहे ,लेकिन अब उस की दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है। सच मां इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है ।जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफूज रखती हैं।

माता कैकेई के पुत्र प्रेम की वजह से श्री राम जी को वनवास भोगना पड़ा ,जबकि माता कैकेई श्री राम जी से अपने स्व पुत्र भरत से भी अत्यधिक प्रेम करती थी। राजा उत्तानपाद की प्रथम पत्नी रानी सुनीति के कारण ही ध्रुव को एक ऐसा स्थान प्राप्त हुआ जो आज तक किसी को नहीं प्राप्त हुआ। माता सुनीति ने अपने पुत्र के अंदर भौतिक सुख को छोड़कर आध्यात्मिक सुख के लिए अलख जगाई परिणाम आप सबके सामने हैं, जो अमिट है।

इस पूरे ब्रह्मांड में मां के प्रेम को तौलने वाला कोई पैमाना नहीं बना है। वह अपनी संतान मोह में अपना वर्चस्व तक दांव पर लगा देती है। वह स्वयं अपने लिए सारे दुख सह लेगी ,हर अत्याचार बर्दाश्त कर लेगी और मुख से कुछ भी नहीं कहती ।लेकिन जब बात अपने बच्चों की आती है, तो वह दुर्गा, चंडी का रूप धारण करके अपने बच्चों की ढाल बन जाती है ।क्योंकि मां तो मां है मां के जैसा कोई नहीं है।

चित्तौड़गढ़ अपने आप में कई कहानियां समेटे हुए है ।इसने रानी पद्मावती जैसी वीरांगना दी तो दूसरी ओर ममता की मूर्ति और त्याग बलिदान करने वाली वीरांगना पन्नाधाय मां दी ।जिस की गाथा युगो युगो तक लोगों के दिल दिमाग में रहेगी ।जिसने अपने चित्तौड़ के चिराग को बचाने के लिए राजकुमार उदय सिंह की जगह अपने पुत्र की बलि दे दी और यह सब उसकी आंखों के सामने हुआ धन्य है, वह मां जिसने पन्ना जैसी पुत्री को जन्म दिया और धन्य है वह पुत्र जिसने पन्ना जैसी मां की कोख से जन्म लिया । हमारे बुंदेलखंड की वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का त्याग किसी से छिपा नहीं है। जिसने अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अपने दासी के पुत्र को अपने पुत्र का स्थान दिया। आज भी (भारत )आर्यों की भूमि में देवियों का अवतरण होता है ।यहां की हर स्त्री में ममता की एक अनोखी झांकी देखने को मिलती है।

 

*नीरज मिश्रा, उरई-जालौन, उ.प्र

 


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