कोरोना संकट के दौरान की तालाबन्दी कई अर्थों में जीवन के सकारात्मक पक्षों को उभारनेवाली सिद्ध हुई ।मैं बरसों से यह सोचता था कि नवरात्र में नौ दिन की अवधि अत्यंत सिद्धिप्रदायक होती है, अतः यदि मन से अनुष्ठान किया जाये तो अत्यन्त श्रेयस्कर हो सकता है । परंतु नौकरी की विवशताओ के कारण ऐसा सुयोग कभी भी न बन पाया । इस बार अनायास ही कुछ ऐसा सुयोग ईश्वर कॄपा से बन गया कि नवरात्र के समय से ही लॉकडाउन हो गया । ऐसे लगने लगा कि जैसे जीवन ठहर ही गया हो ! अन्तर्यात्रा करने के लिए ऐसा श्रेष्ठ वरद अवसर मैं चूकना नहीं चाहता था। मैंने यह उपक्रम शुरु किया और आत्मसाक्षात्कार की परतें खुलती गयीं। मैं भीतर अपने भीतर तक पूरी तरह उतरता गया ! ध्यान की एक ऐसी अप्रतिम लौ लगी, जिसके आगे संसार के समस्त सुख धूल लगने लगे ! शान्ति , परम शाति या अमोघ स्थितप्रज्ञता क्या इसी को तुरीयावस्था कहते हैं ? मैं नहीं जानता कि तुरीयावस्था किसको कहते हैं लेकिन प्रणव के नाद का गुंजार मैंने अवश्य अनुभव किया। कबीर के शब्दों में - " रस गगन-गुफा में अजर झरै , अजपा सुमिरन जाप करै वाली दिव्य अनुभूति मुझे अवश्य हुई । उसका व्यावहारिक तौर पर दीखनेवाला चमत्कार यह हुआ कि जो कुछ मैं बोलता या लिखता , वह काव्य में परिणत हो जाता ! इस अवधि में जो कवित्त लिखे, वे अन्य दिनों की अपेक्षा खरा सोना थे। न कहीं जाने की चिंता, न लौकिक या सामाजिक दायित्वों का बोझ, न किसी की तरफ़ से साधना में व्यवधान ! सचमुच तालाबन्दी का 60-65 दिन का यह समय मेरे लिए तो वरदान बनकर आया ! व्यक्ति को अपने आप से मिलने का समय कब मिलता है ? लाख जतन करने पर भी जो नहीं मिल पाता , वह कोरोना -पीरियड ने कर दिखाया ! परम दयालु प्रभु का लाख - लाख धन्यवाद कि उसने मेहर की यह बरसात मेरे ऊपर कर दी और भरपूर कर दी !
*रविकान्त सनाढ्य,भीलवाड़ा ( राज.)
इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख
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