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कोरोना ने सिखाया पंचविकारों पर नियंत्रण








गोस्वामी तुलसीदास जी ने जीवन के पथ-प्रदर्शक ग्रंथ रामचरितमानस में कहा है--"काम क्रोध मद लोभ मोह नाथ नरक के पंथ"अर्थात काम, क्रोध, मद यानि अहंकार,लोभ अर्थात लालच और मोह याने व्यक्ति या वस्तु से बहुत अधिक मोह रखना |ये पांच विकार त्यागने चाहिए क्योंकि ये सब नरक की ओर ले जाते हैं|

जन सामान्य में इन पांच विकारों में से "मद"अर्थात अहंकार सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द है |गाहे-बगाहे, येन-केन-प्रकारेण इसका प्रयोग चलन में ज्यादा है |फिर चाहे वह खुद को संतुष्ट करने के लिए हो या फिर किसी को दर्पण दिखाने के लिए |परंतु लोग इसका  सर्वाधिक प्रयोग करते हैं और वह भी दूसरों के लिए| लेकिन इसी समय वे भूल जाते हैं कि काम,क्रोध,लोभ और मोह अन्य चार विकार भी उतने ही खतरनाक और बुरे हैं जितना कि "मद"|

गत दो माह में  कोरोना ने जीवन के मूल्यों,मानसिकता,प्रवृत्तियों और विचारों में एक क्रांति सी ला दी है |यह एक युग परिवर्तन का दौर है| युगांतर है| इसमें सभी लोग अपने जीवन की रक्षा को प्राथमिकता देते हुए मन में कुछ न कुछ अवश्य सोचते हैं| गत दो माह में मैं भी इसी प्रकार की उधेड़बुन और विभिन्न प्रकार के विचारों से गुजरा हूँ| किंतु एक चीज जो मैंने इस कालावधि में की और जिसे जीवन में अपनाने के लिए भी दृढ़ संकल्पित हूँ,वह है इन पांच विकारों से स्वयं को जितना हो सके दूर रखना |

बहुत अधिक कामनाएं करना ,अधिक महत्वाकांक्षाओं को पालना जीवन में छोड़ना होगा |इसी प्रकार से छोटी-छोटी चीजों को लेकर के आवेश में आ जाना, अचानक भड़क जाना,क्रोध करना और बहुत अधिक सोचना भी त्यागना होगा| कोरोना वायरस ने यह सीखा दिया है कि जीवन जीने के लिए दो समय की रोटी और घर की छत ही पर्याप्त है| बहुत अधिक धन संग्रह करना,धन के पीछे-पीछे भागना,पैसा कमाने अपना देश छोड़कर विदेश जाना,भौतिकवाद की अंधी दौड़ में लगातार भागते रहना जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए क्योंकि जीवन उस प्रकार भी व्यतीत किया जा सकता है जैसे हम गत दो माह से कर रहे हैं |

न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ आनंद पूर्वक जीवन जिया जा सकता है|दूसरों के हक पर डाका डाल कर या गरीब एवं निर्धन वर्ग के लोगों से गलत तरीके से कमाकर और जरूरत से ज्यादा कमा कर भी एक प्रकार से हम मानवता के प्रति अन्याय ही कर रहे होते हैं| लालच से दूर रहकर स्वयं को अत्यधिक  सीमित संसाधनों के साथ में आनंदपूर्वक परोपकार में लगाते हुए जीवन जीना ही श्रेयस्कर है |

कोरोना वायरस के दौरान संक्रमित लोगों की मृत्यु हुई और संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके पास किसी परिजन को भी नहीं जाने दिया गया|यहाँ तक कि उसका अंतिम संस्कार भी प्रशासन ने ही किया जो यह प्रकट करता है कि हमें अपने रिश्ते अपने प्रियजनों या चीजों के प्रति भी मोह में भी अतिरेक नहीं रखना चाहिए| सांसारिक बंधनों का और सांसारिक मोहमाया की स्थिति अति के पार नहीं होना चाहिए| अति सब चीजों की बुरी है|गोस्वामी जी द्वारा बताया गए इन पांच विकारों पर जितना हम नियंत्रण कर सकते हैं ,करना चाहिए |कोरोनाकाल से मैंने इन पांच विकारों को ही यथासंभव नियंत्रित करने की कोशिश की है|अहंकार के बारे में तो सदैव बहुत कुछ कहा जाता है कि "अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा", इसलिए बेहतर यह होगा कि हम अहंकार से स्वयं को बचाने के लिए आत्मसंतोष हेतु ही अपना काम करें |ना किसी से तुलना करें ना किसी को आगे बढ़ते हुए देख ईर्ष्या का भाव मन में लाएं| अधिक से अधिक लोगों को प्रोत्साहित करें| अधिक से अधिक लोगों का भला करें| उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें और अपनी योग्यताओं और कर्म के साथ आत्मलीन होकर संतुष्ट रहे |ये सभी बातें अपनायी जाती है तो यह इस समय का एक महत्वपूर्ण सबक होगा जो जीवन को पूरी तरह बदल कर रख देगा और यदि मनुष्य इन विकारों को छोड़कर आगे बढ़ता है तो एक क्रांतिकारी परिवर्तन भविष्य में हमारे समाज में दिखाई देगा|मैं तो इन पर चलने की यथासंभव कोशिश कर रहा हूँ|

*कारुलाल जमडा़,जावरा,जिला-रतलाम






 




इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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