इस तालाबंदी में पुराने ख्याल के लोग कम और नवीन ख्याल के लोग अधिक दुखी रहे। "कम खाओ और गम खाओ, कल के लिए कुछ बचा कर रखो" का भाव ही काम आया। इन 66 दिनों में मेरा प्रयास रहा है कि समय का सदुपयोग हो। मैंने साफ-सफाई से लेकर लेखन,पठन और परिचितों से संपर्क में समय को बिताया । अपने विद्यार्थियों (वर्तमान और भूतपूर्व) की समस्याओं को यथासंभव दूर करने का प्रयास किया। इस तालाबंदी में एक बात और समझ में आई कि ऐसी परिस्थिति में जेब का पैसा, हाथ की ताकत, मित्रों और पड़ोसियों का सहयोग ही काम आता है। अतः इन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। एक सीख यह भी मिली कि किसी नजदीकी से सहयोग की उम्मीद तो करें पर यदि वह असहयोग करता है तो टूटें नहीं, अपना धैर्य व मनोबल बनाकर रखें। प्रायः विपत्ति में अपने वाले ही हमें अधिक परेशान करते हैं। समाज और परिवार में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो आपकी भावनाओं और परिस्थितियों से तालमेल रखते हैं। शेष तो बने के यार हैं। ऐसे- ऐसे वाक्य सुनने को मिले, ऐसा-ऐसा व्यवहार देखने को मिला, जिसकी कभी हमने कल्पना भी नहीं की थी। वह भी उनसे, जिन्हें हम अपना सबसे नजदीकी मानते थे। तुलसी बाबा की चौपाई 100% सही निकली, जिसमें उन्होंने कहा है- "मोह सकल व्याधिन कर मूला" अर्थात् सारी व्याधियों की जड़ मोह है। इस तालाबंदी में बहुतों के प्रति मोह टूटा, क्योंकि भावनाएं अत्यधिक आहत आहत हुईं। अंत में यही कहना है कि योग- व्यायाम से शारीरिक और मानसिक मजबूती पर प्रतिदिन ध्यान देना है। हमेशा हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना है। कितनी भी कठिन परिस्थिति आ जाए, धैर्य नहीं खोना है। धैर्यशाली व्यक्ति ही अंततः विजय को प्राप्त करता है।
*डॉ स्वामीनाथ पाण्डेय, उज्जैन (म.प्र)
इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख
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