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आजादी में कैद



*सुरजीत मान जलईया सिंह


ख्वाबों ने जैसे आज रानी के पैरों में पंख लगा दिये हों वह जमीं पर रहकर उड़ रही थी आसमानी बादलों के मध्य सफेद स्याह बादल उसे आनन्दित कर रहे थे । रानी आगरा के एक कालेज से शिक्षा में स्नातक की पढाई कर रही है आज जब वह कालेज पहुंची तो उसे बताया गया कि वह और उसकी साथी अनीता और कल्पना शैक्षिक यात्रा पर दस दिन के लिये भोपाल जा रही हैं और उन्हें आज शाम को ही निकलना है इतना सुनते ही ऐसा लगा कि रानी के मन ने क्षीर सागर छू लिया हो । वह दिन भर कालेज में एक तितली की तरह कल्पनाओं के रंगों से मडराती नजर आयी । शाम को वह ट्रेन के समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गयी स्टेशन जाते समय अनीता और कल्पना को भी जल्दी स्टेशन पहुंचने के लिये बोल दिया था स्टेशन पहुंचते ही तीनों दोस्त खुद को आजाद पा रहीं थीं। स्टेशन पर खड़ी तीनों सहेलियों का कौतुहल ऐसा लग रहा था जैसे वह भोपाल न जा कर चांद पर जा रही हौं। समय अपनी रफ्तार से दौड़ने लगा और शीघ्र ही उनकी ट्रेन ने आगरा स्टेशन को छोड़ दिया रात के अंंधेरे में सूने रास्तों से गुजरती ट्रेन से सांय - सांय की आवाज रानी के अंतसमन को प्रसन्न चित कर रही थी ।


रानी के स्वप्न रेलगाडी की गति के साथ - साथ बढ़ रहे थे । अनीता और कल्पना के होंठों की मंद मुस्कराहट ऐसी थी जैसे कि उन्हें किसी ने दे दी हो पारस मणी और हर एक सुख हो जायेगा उनका यह सब सोचते हुये वो ना जाने कब भोपाल पहुंच गयीं उन्हें पता ही नहीं चला कि आठ घण्टे का सफर कब गुजर गया । भोपाल स्टेशन पर उन्हें मिस भारती ने रिसीव किया मिस भारती उस कोलेज की अनुशासन प्रबन्धिका हैं जिस कालेज में इन तीनों दोस्तों को अपने शैक्षणिक कार्य हेतु भेजा गया है । प्रात: का समय आसमान में उगता सूरज भोपाल को सुनहरा कर रहा था ऐसी प्राकृतिक छटा ने रानी को वाह कहने के लिये जैसे बाध्य कर दिया हो । दस मिनट बाद वह कालेज परिसर में पहुंच गयी रविवार की छुट्टी होने के कारण कालेज की शान्ति देखते ही बन रही थी मिस भारती ने उन्हें एक कमरे में ठहरा दिया जो उनकी आवश्यकता की वस्तुओं पहले से ही तैयार था । 


तीनों दोस्तों ने जल्दी से अपने सामान को व्यवस्थित किया और फ्रेस हो  गयीं कुछ देर आराम करने के बाद उन्होंने भोपाल घूमने का मन बनाया छुट्टी के दिन को वह पूरी तरह जीना चाहती थीं । मिस भारती को फोन करके उन्होंने भोपाल घूमने की इच्छा व्यक्त की जिसे मिस भारती द्वारा स्वीकार कर लिया गया और तीनों दोस्त दिन भर भोपाल की गलियों, चौराहों और बाजारों में घूमती व मस्ती के पलों को जीती नजर आयीं इस मस्ती के बीच वह भूल गयीं कि उन्हें अपने कमरे पर भी पहुंचना है शाम को छ: बजे मिस भारती ने उन्हें फोन करके शीघ्र कमरे पर आने को कहा । रानी , अनीता और कल्पना एक डर के साथ जल्द ही कमरे पर पहुंच गयीं मिस भारती ने उन्हें कुछ नहीं कहा और प्यार से बोली कि चलो तुमको मैस दिखा दूं और तीनों मिस भारती के साथ मैस पहुंच गयीं खाना तैयार था  मिस भारती उनसे शीध्र खाना खा कर कमरे पर पहुंचने की कह कर चली आयीं ।


शाम के शाढे सात बजे थे रानी , कल्पना और आरती कमरे पर आ गयीं तभी मिस भारती ने आकर पूछा कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं है उनके मौन स्वर ने अपना जबाब दे दिया था तभी मिस भारती ने पास रखे बडे से ताले को उठाया किसी की कुछ समझ आता उससे पहले मिस भारती द्वारा उन तीनों लडकियों को कमरे में कैद कर दिया हिम्मत करके रानी ने पूछा मैम ये क्या कर रही हैं तो मिस भारती ने जाते हुये कहा कि तुम्हारी सुरक्षा के लिये यह जरुरी है । बंद कमरे की घुटन में रात को उनके अरमान कब ढेर हो गये उन्हें पता ही नहीं चला अगली सुबह से सुरक्षा के के नाम पर उनका घूमना बंद हो गया और रात की कैद में वह तीनों ऐसे कुम्हला गयीं जैसे कडी धूप में फूल रानी इक्कीसवीं सदी की वह लडकी है जिसे पुरषोंं के समान होने को तो कहा जाता है मगर सुरक्षा नाम के डर की कैद में ।


*सुरजीत मान जलईया सिंह


 


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