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तुम्हें पाकर तुम्हें खोना






*सरिता सरस

 

सुनो जाना

तुम्हें खोकर तुम्हें पाना

तुम्हें पाकर तुम्हें खोना

 

सुनो जाना

मोहब्बत भी गजब की शय है

दिल चाहता है

फ़ना होकर तुझमें, कबीर हो जाना

तेरे नाम पे अब तो फकीर हो जाना..

 

सुनो जाना

मेरी तन्हाईयाँ जब अल्फाज़ बनती हैं

तेरा ही अक्स बनता है.. 

जहां चाहो चले जाना

सांसो की तड़प भी साथ ले जाना..

 

सुनो जाना

तफ़रीह नहीं है मेरा इश्क

इबादत का दिया है

अब जलाना या बुझाना

मुझे तो

जल के भी मिट जाना

बुझ के भी मिट जाना...

 

सुनो जाना 

मुझमें हो के भी मुक्त हो तुम

तोड़ना चाहो तोड़ जाना

मेरा तो वजूद है मीरा हो जाना...

 

सुनो जाना

तफ़लीस क्या दूं मोहब्बत की

सोचती हूँ तफ़ावत सहूंगी कैसे

चलो फिर सांस में भरती तुम्हें हूं

के जबतक सांस है जीना

नहीं तो मर जाना....

 

सुनो जाना

न जाने मेरी पाकीजगी पे

कब - कब, कितना - कितना शक करोगे तुम

मेरे एहसास के सागर को

खुद में कितना भरोगे तुम

सोचती हूँ

उजड़ न जाए मेरे खामोशियों की बगिया.. 

कभी बंजर जो हो जाऊं

तेरे पावों से विनती है

आना मुझपर गुजर जाना

 

सुनो जाना

तुम्हें पाकर तुम्हें खोना

तुम्हें खोकर तुम्हें पाना.......

 

*सरिता सरस,रसूलपुर, गोरखपुर ,उत्तर प्रदेश 


 


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