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कोरोना में भारतीय रेल के छुपे हुए योद्धा



भारतीय रेल यातायात नेटवर्क में विश्व में चौथे नम्बर पर और एशिया में दूसरे स्थान पर है। इस इतने बड़े रेल यातायात नेटवर्क  का पहिया पिछले 160 वर्षों से अनवरत हर स्थिति में चलायमान है वह चाहे युद्ध का समय रहा हो, इमरजेंसी का समय , भूकंप हो बाढ़ हो या कोई दुर्घटना का समय हो या अन्य किसी भी प्रकार की आपदा का समय रहा हो  भारतीय रेल अविचल चलती रही है। और भारतीय रेल का पहिया अनवरत चलता रहे , यह भरसक प्रयास भले ही पूरा रेल परिवार करता है परन्तु उसमें मुख्य भूमिका निभाता है नियंत्रण कार्यालय में कार्यरत गाड़ी नियंत्रक जो सप्ताह के सातों दिन चौबीसों घंटे 130 से 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से रेल गाड़ियों को रेल की पटरी पर सुचारू एवम् व्यवस्थित रूप से सेकेंड के सौंवे हिस्से जितने समय में निर्णय लेता है और अपने निर्णय को एक नियंत्रक जिसके पास एक खंड पर कम से कम 10 से 35 स्टेशन के स्टेशन मास्टर, ट्रेन कलर्क, परिचालन के अन्य कर्मचारियों को 6 से 8 घंटे लगातार बोलते हुए ना सिर्फ गाड़ियों के परिचालन संबंधी निर्देश देता है अपितु गाड़ी में सुचारू परिचालन पर पूरी मुस्तैदी से निगाह भी रखते हुए अविलंब माल गाड़ियों को और यात्रियों को उनके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाने का कार्य बड़े धैर्य और विवेक से कार्य करते हुए देश को अपनी उत्तम सेवा देता है।

आज जबकि कोविड-19  कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरा भारत देश 22 मार्च के एक दिन के लॉक डाउन से प्रारंभ हुआ और 24 मार्च से पुन: 14 अप्रैल तक 21 दिन का सम्पूर्ण भारत बंद का ऐलान जैसे ही माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया उसके साथ ही जैसे पूरा देश ठहर गया। जो लोग जहां थे उनको वहीं रहने को कहा गया । और ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहीं जाने वाली विश्व की दूसरे नम्बर की यातायात प्रणाली भारतीय रेल के यात्री परिवहन पर एकदम से ब्रेक लग गया और तमाम यात्री गाडियां रद्द कर दी गई। कोरोना जैसी विश्व व्यापक महामारी से निबटने के लिए भारत सरकार का यह कदम अवश्य ही सराहनीय और देश वासियों के लिए हितकर था। परंतु ऐसी भयावह महामारी से निबटने के लिए हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी की मुख्य चिंता और हमारे माननीय रेल मंत्री पियूष गोयल जी के कृत संकल्प को ये कंट्रोलर्स पूरा कर रहे हैं। इस आपदा के चलते आपात जैसी स्थिति में  देश में आवश्यक सामग्री को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाने के लिए सबसे त्वरित और सुगम कोई यातायात था तो वह मात्र रेलवे ही था। क्योंकि हवाई और सड़क परिवहन भी पूर्णतया बंद कर दिया गया था। 

कोरोना महामारी भयावह रूप लेती जा रही थी। जैसे जैसे यह महामारी विकराल हो रही थी वैसे वैसे ही जीवनोपयोगी आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई की विकराल समस्या देश के सामने मुंह बाए खड़ी थी। ऐसे में भारतीय रेल के मस्तिष्क, आंख ,कान, नाक कहे जाने वाले गाड़ी नियंत्रक, ट्रेन कंट्रोलर्स की भूमिका पर हमेशा की तरह भारतीय रेल ने विश्वास जताया और ट्रेन कंट्रोलर्स 130 करोड़ भारतीय जन मानस तक उनके भोजन के लिए उपयोगी गेहूं , दालें, चावल चीनी, सब्जियां , फल, दूध के साथ साथ जीवन रक्षक दवाइयां , इस महामारी से बचने के लिए मास्क, वेंटिलेटर, कुछ और चिकित्सीय उपकरणों को देश के हर हिस्से में त्वरित एवम् द्रुत गति से पहुंचाने के लिए यह 1700 कंट्रोलर्स जुट गए बिना इस बात की परवाह किए , जब कि पूरा भारत लॉक डाउन के चलते और वायरस के डर से अपने घरों में कैद है, ऐसे समय में उनके लिए राशन और दवाइयां पहुंचाने की योजना बनाने वाला तथा पहुंचाने वाला कंट्रोलर अपने घर परिवार को भूलकर और जान जोखिम में डाल कर जहां सामान्य दिनों में 8 घंटे कार्य करता है वो इन दिनों में सातों दिन 12-12 घंटे ड्यूटी करके अपने राष्ट्र के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है।

ट्रेन कंट्रोलर्स रात दिन इन्हीं योजनाओं में व्यस्त हैं कि देश के किस कोने से किस कोने में कौन सी सामग्री कैसे और कितनी जल्दी अविलंब पहुंचाई जा सकती है। करोना, जैसी महामारी ने एक दम से पूरे देश मै ऐसे पैर पसारे की अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह कम पड़ने लगी और फिर ऐसे में भारतीय रेल के मस्तिष्क, आंख , कान , नाक कहे जाने वाले कंट्रोलर्स यह छुपे हुए सिपाही जो पूरे देश में मात्र 1700 कंट्रोलर्स है। संख्या में नगण्य होते हुए भी एक नए प्रयोग कि और चल पड़े और जो रेल के यात्री डिब्बे , यात्री गाडियां रद्द होने के कारण शिथिल खड़े थे उनको अस्पतालों में परिवर्तित करा कर कोरोना मरीजों के लिए लगभग 1600 बिस्तरों का आवश्यकतानुसार  अस्पताल बना कर रातों रात तैयार कर दिया जिससे कि देश में कोई अस्पताल कि सुविधा के अभाव में ना मरे। और लोगों को उचित समय पर चिकत्सा सुविधा मुहैया कराई जा सके। भारतीय रेल के कंट्रोलर्स द्वारा किया गया यह प्रयोग पूरे विश्व में एक ऐसी अनूठी मिसाल कायम कर गया, जो विकसित देशों में और जिन देशों का रेल नेटवर्क हमारे भारतीय रेल से बड़ा नेटवर्क है वहां ना सोचा गया और ना ही ऐसा कोई प्रयोग हुआ। जहां इस भयावह महामारी से अस्पतालों में जगह ना मिलने के कारण और चिकित्सीय सुविधाओं के समय पर उपलब्ध ना हो पाने के कारण लाशों के ढेर लग गए। वहीं भारतीय कंट्रोलर्स की सूझ बूझ के कारण आज हमारे देश में मरीजों के लिए बिस्तरों की कोई कमी नहीं है और भारतीय रेल पूरी तरह से तैयार है। हमारा राष्ट्र इस महामारी से निपटने के लिए हर क्षेत्र में मजबूती के साथ खड़ा है, और पूरा विश्व हमारी सूझ बुझ को सराह रहा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी को पूरे विश्व ने सिर आंखों पर उठा रखा है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय रेल के 19 क्षेत्रीय रेलों के 68 मंडल है और हर मंडल का अपना नियंत्रण कार्यालय है और कुछ बड़े मंडलों के अपने सहायक नियंत्रण कार्यालय भी है जो लगभग 12 हैं और कोलकाता मेट्रो रेल और कोंकण रेल  भी इसमें शामिल है। विश्व के दूसरे सबसे बड़े रेल परिवहन को नियंत्रण करने के लिए मात्र 2700 कंट्रोलर्स का वर्ग है उसमे भी वर्तमान में रिक्तियां होने के कारण लगभग 1700 कंट्रोलर्स ही भारतीय रेल का परिचालन पूरी लगन और निष्ठा के साथ बिना किसी शर्त के सहर्ष प्रकृति के विपरित कार्य करते हुए आठ घंटे की  अपनी ड्यूटी के समय में चाय पीना और खाना तो दूर की बात है मल मूत्र त्याग करने के विषय में भी सोचने का समय नहीं निकाल पाता है आठ घंटे में उस फोन के माध्यम से अपने विवेक के अनुसार उसके खंड पर 10 से लेकर 35 स्टेशनों के स्टेशन मास्टर को गाड़ी के सुरक्षित परिचालन के लिए ना सिर्फ स्टेशन मास्टर को अपितु अन्य स्टाफ को भी निर्देश देने होते हैं क्योंकि कंट्रोलर के निर्देश ही गाड़ी परिचालन में   सर्वोपरि माने जाते हैं और स्टेशन मास्टर भी उसके निर्देशों को मानने के।लिए बाध्य है एक समय में लगभग चार पांच स्टेशन मास्टर्स को अपने विवेक से सेकेंड के सौंबे हिस्से में लिए गए निर्णय और लगातार 6 से आठ घंटे कुर्सी से चिपक कर बैठे रहना और लगातार बोलना एक चुनौती से कम नहीं है  फिर भी पूरी निष्ठा, लगन ,मेहनत,और ईमानदारी के साथ कंट्रोलर अपनी जिम्मेदारी पूरी पूरी निभाता है। कंट्रोलर्स की संख्या ना के बराबर होने के कारण उसके परिवार के लोग भी अपने दुख सुख के समय में अकेला मेहसूस करते हैं, क्योंकि कंट्रोलर अपना हर त्यौहार अपने कार्यस्थल पर अपने परिवार से दूर मनाता है और ऐसे छुपे हुए योद्धाओं को भारतीय रेल में सौतेले व्यवहार का सामना करना पड़ता है। क्योंकि यह वो योद्धा हैं जो दिखाई नहीं देते क्योंकि कंट्रोलर्स जनता का चेहरा नहीं है वो तो विषम परिस्थितियों में भी दूर एक कमरे बंद हो कर शांत भाव से सभी लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम करता है। आम जनता तो क्या रेलवे के भी बहुत से अधिकारी ऐसे है जिन्हें कंट्रोलर के बारे में पता नहीं है इसलिए कंट्रोलर्स रेलवे में   छुपे हुए योद्धा अपने कार्य को कुशलता से करते हुए अपने आप को उपेक्षित अनुभव करते हैं।कोरोना जैसी महामारी के चलते सच में भारतीय रेल के छुपे हुए चेहरे इस कंट्रोलर को, भारतीय रेल के इस योद्धा को हमारा शत शत  नमन वंदन अभिनन्दन...।


 

*सुशील कुमार शैली, दिल्ली

 


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