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रामचरितमानस में पारिवारिक व सामाजिक मूल्य बोध



“परिवार ही हमारे सामाजिक जीवन की आधारशिला है,जिसमें हमारे जन्म  से लेकर मृत्यु तक सारी गतिविधियाँ संचालित होती हैं। हिन्दू परिवार का जीवन-दर्शन पुरूषार्थ पर आधारित है जो विश्व के अन्य समाजों के परिवारों का जीवन दर्शन नहीं है । अतः परिवार मनुष्य के सभ्य और सुसस्ंकृत होने का स्वाभाविक तारतम्य है जिसके माध्यम से मानव जीवन का उन्नयन होता हैं। ”      
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में परिवार के आदर्श और मर्यादा को स्थापित करने का सुन्दर प्रयास किया है यह प्रयास इतना प्रभावी है कि आचार्य शुक्ल लिखते हैं कि-
“यदि भारतीय शिष्टता और सभ्यता का चित्र देखना हो तो इस राम समाज में देखिए। कैसी परिष्कृत भाषा में कैसी प्रवचन पटुता के साथ प्रस्ताव उपस्थित होते है किस गंभीरता और शिष्टता के साथ बात का उत्तर दिया जाता है छोटे-बड़े की मर्यादा का किस सरलता के साथ पालन होता है। ”     
‘मानस’  में राम कैकेयी संवाद में कैकेयी की कठोर आज्ञा पर श्री राम मीठी वाणी में शिष्टता  से कहते है।–
"सुनु जननी सोइ सुत बड़भागी।
जो पितु मातु वचन अनुरागी। 
तनय मातु पितु तोष निहारा।
दुर्लभ जननि सकल संसारा। ’’ 
तुलसीदास जी ने परिवार में केवल आदर्श चरित्रों को ही नही अपितु यथार्थ चरित्रों को भी प्रस्तुत किया है। कैकयी,मंथरा ऐसे ही यथार्थ पात्र हैं,जो हर कुटुम्ब में मिल जाते हैं। राम वनवास के बाद भरत सिंहासन ग्रहण नहीं करते ,  भरत राम मिलाप की हृदयस्पर्शिता  ‘मानस'  के पाठकों को भाव विभोर कर देती है। सीता का राम के साथ वन जाना ,वहीं सीता हरण के बाद राम द्वारा व्याकुल होकर सीता को ढूंढना ये सब वृतांत आदर्श कुटुम्ब की निर्मिति दर्शाते हैं।  ‘'मानस ’' में रचित 'आदर्श' आज भी समाज व परिवार के  विकास के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने की सोलवीं शती में थे।
गुरू शिष्य सम्बंध:-
मानस में गोस्वामी जी ने  ‘ गुरू महिमा ’  की महत्ता की असंख्य स्थानों पर चर्चा की है। बालकाण्ड के प्रारम्भ में ही ईश वन्दना के बाद  गुरू महाराज की वन्दना करते हुए कहते हैं कि-  ‘‘ श्री गुर पद नख मनि गन जोति/सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ।"
हर एक मंगल कार्य पर गुरू को दान देने और आशीर्वाद लेने का वर्णन मानस में किया गया है। राजा दशरथ की गुरू के प्रति भक्ति को वर्णित करते हुए कवि कहते है कि-  ‘‘ जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं। ते जनु सकल विभव बस करहीं। ”
भारतीय समाज में गुरू शिष्य सम्बंध बहुत ही घनिष्ठ था। समाज में उसकी स्थिति सर्वोच्च थी, अतः गोस्वामी जी ने भारतीय समाज में गुरू को प्राप्त आदरभाव,गरिमा और प्रतिश्ठा को ही मानस में प्रतिबिम्बित किया है ।
नारी का स्थान:-  हिन्दू समाज में नारी के लिए सम्मान व मर्यादायुक्त दृष्टि रखी जाती थी।रामचरितमानस में लगभग हर वर्ग के प्रति प्रगतिशीलता दिखाई देती है,अतः तुलसी के स्त्री सम्बन्धी दृष्टिकोण को संकीर्ण कहना ,हमारा एकांकी दृष्टिकोण होगा। वस्तुतः हर लेखक अथवा कवि अपने युग के सापेक्ष रचना लिखता है। युग और सन्दर्भ बदल जाने पर उसके साहित्य के मूल्यांकन के आधार भी दोबारा बदल जाते है। यह सत्य है कि तुलसी के काव्य में नारी ,नारी धर्म अथवा पति सेवा में ही शोभा पाती है,किन्तु नारी की परतन्त्रता की पीड़ा तक पहुँचना भी , उस युग में प्रगतिशीलता थी। जो प्रमाणित करता है कि समाज में नारी की स्थिति व दशा को लेकर भी गोस्वामी में चेतना थी। 
अंतत: कह सकते है कि पर्यावरण अर्थात जो हमारे चारों ओर विद्यमान है ,मनुष्य समाज में भी सामाजिक मूल्य व आदर्श चारों ओर मनुष्य को घेरे रहते हैं। गोस्वामी जी के सामाजिक मूल्यों के आदर्श का जीवन्त प्रतीक ‘ मानस ’ है जिसमें सामाजिक पर्यावरण चेतना अद्भुत रूप में मुखर हुई है।
"मानस सच में है'शरद',सामाजिक श्रंगार ।
तुलसी बाबा ने दिया,हम सबको उपहार ।।"


*प्रो.शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)


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